वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक
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mo-9721764379
सपनों में क्यों दौडी चली आयी हो
जब रोज-रोज करती मेरी बुराई हो
फिर सपनों में क्यों दौड़ी चली आई हो
रातों की सिल्वटों से मुझे जगाई हो
खुली रह गई पलकें नींद ना आई हो
नहीं जानता था मैं तू इतनी हरजाई हो
झूँठा वादा करके जीवन बर्बाद कराई हो
मैं तो सच समझता था जीवन के सपनों में
छल कपट धोखा नहीं जाना था अपनों में
तेरी धोखेबाजी ने बतला दिया यह मुझको
असली चेहरा क्या था तेरा दिखला दिया यह मुझको
नहीं लगती तुझमें कोई सच्चाई हो........... ।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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तेरी मीठी-मीठी बातें
जब-जब याद आती हैं
तेरी मीठी-मीठी बातें
क्या पता था मुझको
तेरी झूँठी हैं ये बातें ।।2।।
मैं तो सच समझता था
तेरी बड़ी छोटी बातें
क्या पता था मुझको
तेरी झूँठी हैं ये बातें.....।
पता चल गया मुझको
तेरी काली-काली बातें ।।2।।
ब्वॉयफ्रेंड को लेकर
होटल-होटल वाली बातें ।।2।।
जब-जब याद आती हैं
तेरी मीठी-मीठी बातें
क्या पता था मुझको
तेरी झूँठी हैं ये बातें ।।2।।
मैं तो सच समझता था
तेरी सारी-सारी बातें
मुझे क्या पता था
तेरी सारी बातें झूँठी.......।
क्यों किया तूनें ऐसा
बतला जरा तू साकी
मेरे साथ खेला ऐसा
खेल क्यों ये साकी
मेरी क्या गलती थी
मैं तो सच्चा था हमराही
लिखा पढ़ा इक उच्च
विचारों,वाला, जीवन राही.......।
बना दिया मुझको पागल सा
धरती वाला राही
मुंह मोड़ कर ईर्ष्या से
गु़ंमराहों वाला राही.......।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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गौरैया ने छत पर अब आना छोड दिया है
गौरैया ने छत पर अब
आना छोड़ दिया है
भँवरों ने कलियों से अब
नाता तोड़ दिया है
बागों-बागों में घूम रहे हैं
बनके शिकारी मानव
डर के मारे कोयलिया ने
गाना छोड़ दिया है
अभी चिड़िंया ने पंख सँवांरा
अभी नोच कर खायी......... ।
जब कोयलिया ने देखा तो वो
बेदर्दी से गाई.................आयी............।
कैसी बेहयाई........आई......
कैसी बेहयाई...................।।2।।
गुलाबों ने बागों में अब
महकना छोड़ दिया है ।।2।।
सुगंधों के प्यासों को अब
सपना दिखा दिया है...
हवाओं से कलियाँ हिलें तो
पेड़ भी अब काँपें..............।
जहां घोंसले थे वहां.......अब
वीरान बना दिए हैं
कैसे बनेगा घोंसला अब तो
कोई सरम ना आयी.......... आई........।
कैसी बेहयायी............ आई........
कैसी बनाई..........................।।2।।
जहाँ पंछियाँ दाना पातीं
अक्सर वहीं वो जाती...
पंछी का जीवन बचाने....
ईश्वर भी आ जाते..... ।
जहां मिट्ठू की बातें सुनकर
गूंजती हैं किलकारी ........।
पंछी पकड़ने वालों से......ये.....
धरती भी सरमाती...............।
वहां गौरैया के जीवन को
लोगों ने वीरान बनाई ....आयी..........।
कैसी बेहयाई .........आयी...........
कैसी बेहयायी..................।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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यादें
यादें ..............................।
आती है तेरी.....................।
मुझको सताती हैं.....।।2।।
बहुत रुलाती है
क्या तुम नहीं सुनोगे...........
मेरी यह बातें.....................।।2।।
यादें ..............................।
आती है तेरी.....................।
मुझको सताती हैं.....।।2।।
बहुत रुलाती है...............।
यादें ही तेरा सहारा हैं
यादें ही तेरा बसेरा हैं
यादें ही तेरा ये जीवन हैं
यादों पर तेरा ही पहरा है
क्या तुम नहीं सुनोगे...........।
मेरी यह बातें.....................।।2।।
यादें ..............................।
आती है तेरी.....................।
मुझको सताती हैं.....।।2।।
बहुत रुलाती है..............
कल की तेरी यह जो बातें हैं
आज मुझे याद आती हैं
रह-रहकर मुझको सताती हैं
दिन-रात मुझको जगाती हैं
क्या तुम नहीं सुनोगे.....................।
मेरी यह बातें...............................।।2।।
यादें ..............................।
आती है तेरी.....................।
मुझको सताती हैं.....।।2।।
बहुत रुलाती है..............।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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नजरे निगाहो से टकरा रही है
नजरें निगाहों से टकरा रही हैं
धड़कन मेरी ये बढ़ा.... रही हैं
काली घटाओं सा छाया है बादल
जुल्फें तेरी ये बदला रही हैं ।।2।।
प्यारी घटायें, सुनहरा है मौसम
हवायें भी चल रही हैं .........
पाँव की पायल कानों में गूँजे
छन-छन-छन कर रही हैं....।
नजरें निगाहों से टकरा रही हैं
धड़कन मेरी ये बढ़ा.... रही हैं
काली घटाओं सा छाया हैं बादल
जुल्फें तेरी ये बदला रही हैं ।।2।।
आँखें तेरी ये, शराबी-शराबी
निगाहों से कुछ कह रही हैं
ये पलकें झुकायें जरा मुस्करायें
गजब का ये सरमा रही हैं ।
नजरें निगाहों से टकरा रही हैं
धड़कन मेरी ये बढ़ा.... रही हैं
काली घटाओं सा छाया है बादल
जुल्फें तेरी ये बदला रही हैं ।।2।।
दांतों तले ये अंगुलियां दवाये
खिल-खिल-खिला रही हैं
जुल्फों को अपने गालों से झटके
क्या अंदाज, दिखा रही हैं......।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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जल बिन मछली जिये कैसे
जल बिन मछली जिए कैसे
जिए कैसे
पनिया है दूषित रहे कैसे ।।2।।
नदियों में नाला, बह-बह आयै
कूड़ा करकट,सबही बहायै
धोती कुर्ता,जनता काचारै
लुगरिया में बांधी,गठरिया बहायै
नदिया है दूषित रहे कैसे
रहे कैसे
जल बिन मछली जिए कैसे
पनिंया है दूषित रहे कैसे
रहे कैसे
जल बिन मछली जिए कैसे
जिए कैसे
पनिया है दूषित रहे कैसे ।।2।।
मीलों से पानी,नदिया में आयै
केमिकल मिलि-मिलि,दूषित बनावे
गाय भैंस सब,मलि मलि नहायै
गोबर माटी,ओही में बहायै
नदिया के पानी सफाई कैसे
सफाई कैसे
जल बिन मछली जिए कैसे
जिए कैसे
पनिया है दूषित रहे कैसे ।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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मेरी नजर से बँहकना जो चाहें
कँण-कँण बूँदें, बरसना जो चाहें
मेरी नजर से,बँहकना जो चाहें
रोकूँ उन्हें मैं.........., कैसी नजर से...........।
आती नहीं हैं.........., खुशियां उधर से.........।।2।।
आँखें कहीं ये,टकरा ना जाये
होंटो की बातें,निगाहों पे आये
दाँतों तले ये,अंगुलियां दबाये
निगाहें सरम से,कहीं झुँक ना जाये
रुकना...... जो चाहें, कहीं रुक ना पाये
कँण-कँण बूँदें, बरसना जो चाहें
मेरी नजर से,बँहकना जो चाहें
रोकूँ उन्हें मैं.........., कैसी नजर से...........।
आती नहीं हैं.........., खुशियां उधर से.........।।2।।
सुहाना है मौसम,नजर उठ ना जाये
बिजली तड़प कर,कहीं गिर ना जाये
खयालों की बातें,खयालों में आये
निगाहों से कहीं,.......गजब हो ना जाये
मौसम की बातें,ये मन ही तो जाने
निगाहों से टकरा के,कहीं मुँड ना जायें
कँण-कँण बूँदें, बरसना जो चाहें
मेरी नजर से,बँहकना जो चाहें
रोकूँ उन्हें मैं.........., कैसी नजर से...........।
आती नहीं हैं.........., खुशियाँ उधर से.........।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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अपना जमाना भूल गये
मैंनें...... सुना....... था ,जिंदगी....... में
वो.... याद........ आना..... भूल.... गये....।
प्यार... सिखाना......., दूर... रहा..... वो
अपना...... जमाना......., भूल.... गये....।।2।।
मैंनें ......सुना....... था ,....जिंदगी....... में
यादों...... से...... बढ़कर......, न यार..... रहा
अपनों..... से..... बढ़कर, ना कोई रहा
दुनिया....... जहां,घूम..... . लिया... मैं
अपनों........ जैसा..... कोई..... ना... रहा
झूठी... हैं.... सब ,जग.... की..... प्रीति
मैंने.... सब.... ये...... जान .......लिया ......।
मैंनें....... सुना..... था..... जिंदगी..... में......।
मैंनें...... सुना....... था ,जिंदगी....... में
वो.... याद........ आना..... भूल.... गये....।
प्यार... सिखाना......., दूर... रहा..... वो
अपना...... जमाना......., भूल.... गये....।।2।।
मैंने ......सुना....... था ,....जिंदगी....... में
पल....पल.... की.... खुशियाँ ,मोती... बनें ...तो
शबनम....... सा....... पानी...... बरसे.........।
यादों....... की.... दरिया, हकीकत.... हो... जब
खुशियाँ..... ही......खुशियाँ..... बरसे.......।
अफसानों.... की, डोरी..... में... अब... ।
याद..... आना, भूल.... गये............।
मैंनें..... सुना...... था, जिंदगी..... में... ।।
मैंनें...... सुना....... था ,जिंदगी....... में
वो.... याद........ आना..... भूल.... गये....।
प्यार... सिखाना......., दूर... रहा..... वो
अपना...... जमाना......., भूल.... गये....।।2।।
मैंनें ......सुना....... था ,....जिंदगी....... में
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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एक छोटी सी चिंडिया
एक छोटी सी चिड़िया
फुदक-फुदक कर आती ।।2।।
घर में मेरे चीं-चीं कर वो
विखरे दाने खाती
एक छोटी सी चिड़िया
फुदक-फुदक कर आती ।।2।।
रोज नहाती टब में मेरे
सब दिन पानी पीती
मम्मी,पापा,दादा ,दादी
के संघ-संघ वो जीती
चह-चह करती घर में जब वो
लगता गाना गाती ।।2।।
एक छोटी सी चिड़िया
फुदक-फुदक कर आती।।2।।
उड़-उड़ चिड़ियाँ घर में आवै
चीं चीं कर के जगावै
जैसे बसंती बयार बा आईल
सुन-सुन मनहर हरसाये
अपनी बोली की मिठास से
सबका दिल बहलाती ।।2।।
एक छोटी सी चिड़िया
फुदक-फुदक कर आती।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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एक छोटी सी चिड़िया
तिनके चुन-चुन लाती ।।2।।
कभी इधर से कभी उधर से
फुदक-फुदक कर आती
एक छोटी सी चिड़िया
तिनके चुन-चुन लाती ।।2।।
डाली पर वह बैठकर
आशियां अपना बनाती
एक छोटी सी चिड़िया
तिनके चुन-चुन लाती
साज संवारती घर को अपने
जैसे महल हजारी
एक छोटी सी चिड़िया
तिनके चुन-चुन लाती।।2।।
जाड़ा,गर्मी या हो बरखा
कभी नहीं घबडाती
एक छोटी सी चिड़िया
तिनके चुन-चुन लाती।।2।।
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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मेरी अभिलाषा है
मैं पढ़ना चाहती हूँ
लगाकर पंख
इस जहाँ को घूँमना चाहती हूँ
आसमा की ऊंचाई पर
पहुंचना चाहती हूँ
दुनिया के दर्द को
हरना चाहती हू़ँ
मेरी अभिलाषा है
मैं पढ़ना चाहती हूँ
दुनिया को मा़ँ के आँचल सा
सँवारना चाहती हूँ
बेटी हूँ
सब का सम्मान
बढ़ाना चाहती हूँ
माँ का आँचल
सवारना चाहती हूँ
मेरी अभिलाषा है
मैं पढ़ना चाहती हूँ
मैं आजाद पंछी सा
उड़ना चाहती हूँ
इस जगत को कुछ नया
देना चाहती हूँ
गुलामी की बेड़ियों को
तोड़ना चाहती हूँ
बेटी हूँ इसलिए सम्मान
बढ़ाना चाहती हूँ
मेरी अभिलाषा है
मैं पढ़ना चाहती
बनकर सूरज मैं
चमकना चाहती हूँ
अंधेरों को खालना चाहती हूँ
आडम्बरों को तोड़ना चाहती हूँ
कुछ अच्छा सा
जगत को बनाना चाहती हूँ
अपने हुनर से
इस जगत को सजाना चाहती हूँ
बेटी हूँ
बेटी का मान
बढ़ाना चाहती हूँ
मेरी अभिलाषा है
मैं पढ़ना चाहती हूँ
लेखक व गीतकार
चद्रपाल राजभर
mo-9721764379
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