. शोध छात्र राहुल सिंह राजभर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी उत्तर प्रदेश स्वतंत्रता की लड़ाई का चौरी-चौरा काण्ड और भर जाती का बलिदान
चौरी-चौरा विद्रोह की पृष्ठभूमि में एक ओर 1857 के विद्रोह की ऊर्जा है तो दूसरी ओर जमींदारों के शोषण और ब्रिटिश पुलिश के जुल्म की इंतहा का जबाब भी. चौरी-चौरा विद्रोह का सम्बन्ध जहां सीधे तौर पर डुमरी खुर्द (छोटकी डुमरी ) के किसानों और वहाँ पर 4 फ़रवरी, 1922 को बुलाई गई किसान सभा के बाद खेलावन भर के नेतृत्व में 500 की संख्या में ग्रामीण लोगों द्वारा “भारत माता की जय” के उद्घोस के साथ ब्रिटिश पुलिश पर हमला है. इस हमले में खेलावन भर पुलिश की गोली द्वारा मौत के घात उतार दिए जाते हैं और बाकी लोगों को अभियुक्त बनाया जाता है. 4 फरवरी के हमले की योजना बुधवार, 1 फरवरी, 1922 की शाम को शिकारी के घर एक आवश्यक बैठक में बनी. इस बैठक में चौरा के महादेव भर के पुत्र ठग भर, खेलावन भर, भगवान् अहीर, लाल मुहम्मद सेन, मुंडेरा बाजार के रामस्वरूप बरई और डुमरी खुर्द के नज़र अली तथा कुछ अन्य लोगों ने भाग लिया था. असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ में स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई उसी के क्रम ने अनेक कमेटियों का गठन किया जिसमें पत्र पहुंचा कर विभिन्न जगहों से क्रांतिकारियों को गोरखपुर में बुलाने की जिम्मेदारी नाजाय अली, पहाड़ी भर, चिनगी तेली, खेली भर, जगलाल केवट, को दिया गया था. पहाड़ी भर के माध्यम से भेजा गया पत्र पडरी क्षेत्र के लिए था. उपरोक्त पाचों स्वयंसेवक की क्रान्ति जमींन तैयार करने में मुख्य भूमिका भी थी. 4 फ़रवरी के कार्यक्रम में जलपान की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी पहाड़ी भर और लाल मुहम्मद की थी. भरटोलिया के छेदी भर, गणेश प्रसाद कलवार और जगदेव भर ने चौरा बाजार के गोपीराम की दूकान के मुनीम विश्वनाथ कलवार से 1 रुपया 10 पैसा के उधार पर एक टीन किरासन तेल खरीदा और उन्होंने सूप और एक बोझ सरपट जुटाया; फिर इन सामानों को बिरजा तथा जोगी भर के साथ चौरा थाना के गेट पर पहुच गएन और थाने में आग लगा दिए. सरपट/खर का एक बोझा भगवान् अहीर भी लेकर आये थे. रामफल भी सूखी घास बटोर लाये थे और वे भी थाना जलाने में सामिल थे. देखते ही देखते थाना धधकने लगा. थाना जल रहा था तथा स्वयं सेवकों ने 5 सिपाही को पिट कर मार चुके थे तथा उनके सवों को जलते थाने डाल दिए. अन्य सिपाहीयों को भी भीड़ ढूँढ-ढूंढ के पिट रही थी लेकिन दारोगा गुप्तेश्वर सिंह का कहीं पता न था. भीड़ की निगाह उसी की तलास में थी. उसी जालिम दरोगा ने अनेक क्रांतिकारियों को अकारण पिटा था तथा लाठीचार्ज और गोलिचार्ज कर कई लोगों की ह्त्या की थी. जब कुछ क्रांतिकारी थाने के चारों ओर लगी बांस की बाड़ को तोड़ रहे थे तभी गुप्तेश्वर सिंह (हेड कांस्टेबल) बाहर आया. इसके बाहर आते ही रघुपति भर, बद्री भर और मेघू तिवारी ने पिट-पिट कर उसे मार डाला और उसकी लाश को घसीट कर दरोगा के घर के पीछे, पश्चिम दरवाजे तक ले गए. इस आन्दोलन में मारे गए लोगों की संख्या को लेकर आज तक भी स्पष्ट आकडे नहीं मिल पाए हैं. सरकारी गवाह शिकारी ने 23 जून, 1922 को सेशन कोर्ट में जो बयान दिया उसके अनुसार खेलावन भर (ग्राम-भरटोलिया) और और बुध अली जुलाहा (ग्राम-चौरा) पुलिश की गोली से मारे गए. डॉ. अनिल श्रीवास्तव के अनुसार खेलावन भर, नज़र अली जुलाहा तथा भगवान् तेली भी पुलिश गोली में मारे गए. एक अन्य इतिहासकार के अनुसार पुलिस गोली से 26 सत्याग्रही मारे गए परन्तु किसी ब्रिटिश अभिलेख से इसकी पुष्टि नहीं होती. बंदूकधारियों द्वारा लगातार गोली चलाने पर 3000 की भीड़ में मात्र 2 या 3 व्यक्तियों के मारे जाने की बात संदेहास्पद लगाती है. चौरी-चौरा काण्ड सामिल लोगों का जातीवार आंकड़ा इस प्रकार है – भर/राजभर – 32, केवट- 27, पासी- 21, चमार- 21, अहीर- 18, कहार- 17, कुर्मी- 16, सैथवार- 6, ब्राह्मण- 6, कलवार- 6, तेली-4, बरई- 4, बिन्द- 4, लोहार- 4, लुनिया/लोनिया- 02, मल्लाह- 02, धोबी- 02, कंडू- 02,भूमिहार- 01, सुनार- 01, गोसांई- 01
चौरी-चौरा काण्ड में सामिल भर जाति का विवरण
1. खेलावन भर (गोली मारकर हत्या)
2. पहाड़ी भर (फ़ासी की सजा )
3. दुधई भर (फ़ासी की सजा), उम्र - 38 चौरा
4. बल्ली भर, पुत्र- जिउलाल भर, उम्र- 28, ग्राम - कुशामी
5. छेदी भर, पुत्र- सुखाई भर, उम्र- 28, ग्राम- भारटोलिया
6. छोटक भर, पुत्र- बनारसी भर, उम्र- 16, ग्राम- भुसारी
7. छोटक भर, पुत्र-विशेषर भर, उम्र-17, ग्राम- कुसमही
8. रघुपति भर, उम्र 38, ग्राम- चौरा
9. फ़क़ीरे भर, पुत्र- वन्शु भर, उम्र- 50, ग्राम- बाले
10. घुलम भर, पुत्र- रामफल भर, उम्र- 40, ग्राम- भरटोलिया
11. गोपी भर, पुत्र- काशी भर, उम्र- 16, ग्राम- चौरा
12. जगदेव भर, पुत्र- वैजनाथ उम्र- 25, ग्राम- रामपुर रकवा
13. जगदेव भर, पुत्र- जय श्री भर, उम्र- 19, ग्राम- चौरा
14. जानकी भर समझावन भर 22 चौरा
15. जोगी भर, पुत्र- फ़क़ीर भर, उम्र- 22, ग्राम- बाले
16. महादेव भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 22, ग्राम- चौरा
17. ठग भर, पुत्र- भैरू भर, उम्र- 42, ग्राम- चौरा
18. मनोज भर, पुत्र- मनोरथ भर, उम्र-40, ग्राम- सथरी
19. रघुवीर भर, पुत्र- मथुरा भर, उम्र- 23, ग्राम- धोंनसरा
20. सहदेव भर, पुत्र- बुधई भर, उम्र- 19, ग्राम- कुसमहि
21. सहदेव भर, पुत्र- गट्टी भर, उम्र- 23, ग्राम- जोधपुर सुखई
22. सरूप भर, पुत्र-अचंभित भर, उम्र- 30, ग्राम- चौरा
23. शंकर भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 25, ग्राम- चौरा
24. शेषधर भर, पुत्र- द्वारका भर, उम्र- 25, ग्राम- धोनसरा
25. तपसी भर, पुत्र- पदरथ भर, उम्र- 21, ग्राम- कुशमाही
26. ठाकुर भर, पुत्र- छोटू भर, उम्र- 24, ग्राम- बाले
27. तिहुल राजभर, पुत्र- सोभित राजभर, उम्र- 45, ग्राम- चौरा
28. तुलसी भर, पुत्र- भोला भर, उम्र- 27, ग्राम- जोधपुर
29. बरन भर, पुत्र- जगदाल भर, ग्राम -कुशमाही चौरा
30. दुक्खी भर, पुत्र- रामपति भर, ग्राम- दरसनवा चौरा
31. रामजीत भर, पुत्र- शिनारायण भर, ग्राम- दुडरहा चौरा
32. . बद्री भर
नाम खोजने की प्रक्रिया अभी जारी है...........।
स्वतंत्रता की लड़ाई का चौरी-चौरा काण्ड और भर जाती का बलिदान
चौरी-चौरा विद्रोह की पृष्ठभूमि में एक ओर 1857 के विद्रोह की ऊर्जा है तो दूसरी ओर जमींदारों के शोषण और ब्रिटिश पुलिश के जुल्म की इंतहा का जबाब भी. चौरी-चौरा विद्रोह का सम्बन्ध जहां सीधे तौर पर डुमरी खुर्द (छोटकी डुमरी ) के किसानों और वहाँ पर 4 फ़रवरी, 1922 को बुलाई गई किसान सभा के बाद खेलावन भर के नेतृत्व में 500 की संख्या में ग्रामीण लोगों द्वारा “भारत माता की जय” के उद्घोस के साथ ब्रिटिश पुलिश पर हमला है. इस हमले में खेलावन भर पुलिश की गोली द्वारा मौत के घात उतार दिए जाते हैं और बाकी लोगों को अभियुक्त बनाया जाता है. 4 फरवरी के हमले की योजना बुधवार, 1 फरवरी, 1922 की शाम को शिकारी के घर एक आवश्यक बैठक में बनी. इस बैठक में चौरा के महादेव भर के पुत्र ठग भर, खेलावन भर, भगवान् अहीर, लाल मुहम्मद सेन, मुंडेरा बाजार के रामस्वरूप बरई और डुमरी खुर्द के नज़र अली तथा कुछ अन्य लोगों ने भाग लिया था. असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ में स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई उसी के क्रम ने अनेक कमेटियों का गठन किया जिसमें पत्र पहुंचा कर विभिन्न जगहों से क्रांतिकारियों को गोरखपुर में बुलाने की जिम्मेदारी नाजाय अली, पहाड़ी भर, चिनगी तेली, खेली भर, जगलाल केवट, को दिया गया था. पहाड़ी भर के माध्यम से भेजा गया पत्र पडरी क्षेत्र के लिए था. उपरोक्त पाचों स्वयंसेवक की क्रान्ति जमींन तैयार करने में मुख्य भूमिका भी थी. 4 फ़रवरी के कार्यक्रम में जलपान की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी पहाड़ी भर और लाल मुहम्मद की थी. भरटोलिया के छेदी भर, गणेश प्रसाद कलवार और जगदेव भर ने चौरा बाजार के गोपीराम की दूकान के मुनीम विश्वनाथ कलवार से 1 रुपया 10 पैसा के उधार पर एक टीन किरासन तेल खरीदा और उन्होंने सूप और एक बोझ सरपट जुटाया; फिर इन सामानों को बिरजा तथा जोगी भर के साथ चौरा थाना के गेट पर पहुच गएन और थाने में आग लगा दिए. सरपट/खर का एक बोझा भगवान् अहीर भी लेकर आये थे. रामफल भी सूखी घास बटोर लाये थे और वे भी थाना जलाने में सामिल थे. देखते ही देखते थाना धधकने लगा. थाना जल रहा था तथा स्वयं सेवकों ने 5 सिपाही को पिट कर मार चुके थे तथा उनके सवों को जलते थाने डाल दिए. अन्य सिपाहीयों को भी भीड़ ढूँढ-ढूंढ के पिट रही थी लेकिन दारोगा गुप्तेश्वर सिंह का कहीं पता न था. भीड़ की निगाह उसी की तलास में थी. उसी जालिम दरोगा ने अनेक क्रांतिकारियों को अकारण पिटा था तथा लाठीचार्ज और गोलिचार्ज कर कई लोगों की ह्त्या की थी. जब कुछ क्रांतिकारी थाने के चारों ओर लगी बांस की बाड़ को तोड़ रहे थे तभी गुप्तेश्वर सिंह (हेड कांस्टेबल) बाहर आया. इसके बाहर आते ही रघुपति भर, बद्री भर और मेघू तिवारी ने पिट-पिट कर उसे मार डाला और उसकी लाश को घसीट कर दरोगा के घर के पीछे, पश्चिम दरवाजे तक ले गए. इस आन्दोलन में मारे गए लोगों की संख्या को लेकर आज तक भी स्पष्ट आकडे नहीं मिल पाए हैं. सरकारी गवाह शिकारी ने 23 जून, 1922 को सेशन कोर्ट में जो बयान दिया उसके अनुसार खेलावन भर (ग्राम-भरटोलिया) और और बुध अली जुलाहा (ग्राम-चौरा) पुलिश की गोली से मारे गए. डॉ. अनिल श्रीवास्तव के अनुसार खेलावन भर, नज़र अली जुलाहा तथा भगवान् तेली भी पुलिश गोली में मारे गए. एक अन्य इतिहासकार के अनुसार पुलिस गोली से 26 सत्याग्रही मारे गए परन्तु किसी ब्रिटिश अभिलेख से इसकी पुष्टि नहीं होती. बंदूकधारियों द्वारा लगातार गोली चलाने पर 3000 की भीड़ में मात्र 2 या 3 व्यक्तियों के मारे जाने की बात संदेहास्पद लगाती है. चौरी-चौरा काण्ड सामिल लोगों का जातीवार आंकड़ा इस प्रकार है – भर/राजभर – 32, केवट- 27, पासी- 21, चमार- 21, अहीर- 18, कहार- 17, कुर्मी- 16, सैथवार- 6, ब्राह्मण- 6, कलवार- 6, तेली-4, बरई- 4, बिन्द- 4, लोहार- 4, लुनिया/लोनिया- 02, मल्लाह- 02, धोबी- 02, कंडू- 02,भूमिहार- 01, सुनार- 01, गोसांई- 01
चौरी-चौरा काण्ड में सामिल भर जाति का विवरण
1. खेलावन भर (गोली मारकर हत्या)
2. पहाड़ी भर (फ़ासी की सजा )
3. दुधई भर (फ़ासी की सजा), उम्र - 38 चौरा
4. बल्ली भर, पुत्र- जिउलाल भर, उम्र- 28, ग्राम - कुशामी
5. छेदी भर, पुत्र- सुखाई भर, उम्र- 28, ग्राम- भारटोलिया
6. छोटक भर, पुत्र- बनारसी भर, उम्र- 16, ग्राम- भुसारी
7. छोटक भर, पुत्र-विशेषर भर, उम्र-17, ग्राम- कुसमही
8. रघुपति भर, उम्र 38, ग्राम- चौरा
9. फ़क़ीरे भर, पुत्र- वन्शु भर, उम्र- 50, ग्राम- बाले
10. घुलम भर, पुत्र- रामफल भर, उम्र- 40, ग्राम- भरटोलिया
11. गोपी भर, पुत्र- काशी भर, उम्र- 16, ग्राम- चौरा
12. जगदेव भर, पुत्र- वैजनाथ उम्र- 25, ग्राम- रामपुर रकवा
13. जगदेव भर, पुत्र- जय श्री भर, उम्र- 19, ग्राम- चौरा
14. जानकी भर समझावन भर 22 चौरा
15. जोगी भर, पुत्र- फ़क़ीर भर, उम्र- 22, ग्राम- बाले
16. महादेव भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 22, ग्राम- चौरा
17. ठग भर, पुत्र- भैरू भर, उम्र- 42, ग्राम- चौरा
18. मनोज भर, पुत्र- मनोरथ भर, उम्र-40, ग्राम- सथरी
19. रघुवीर भर, पुत्र- मथुरा भर, उम्र- 23, ग्राम- धोंनसरा
20. सहदेव भर, पुत्र- बुधई भर, उम्र- 19, ग्राम- कुसमहि
21. सहदेव भर, पुत्र- गट्टी भर, उम्र- 23, ग्राम- जोधपुर सुखई
22. सरूप भर, पुत्र-अचंभित भर, उम्र- 30, ग्राम- चौरा
23. शंकर भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 25, ग्राम- चौरा
24. शेषधर भर, पुत्र- द्वारका भर, उम्र- 25, ग्राम- धोनसरा
25. तपसी भर, पुत्र- पदरथ भर, उम्र- 21, ग्राम- कुशमाही
26. ठाकुर भर, पुत्र- छोटू भर, उम्र- 24, ग्राम- बाले
27. तिहुल राजभर, पुत्र- सोभित राजभर, उम्र- 45, ग्राम- चौरा
28. तुलसी भर, पुत्र- भोला भर, उम्र- 27, ग्राम- जोधपुर
29. बरन भर, पुत्र- जगदाल भर, ग्राम -कुशमाही चौरा
30. दुक्खी भर, पुत्र- रामपति भर, ग्राम- दरसनवा चौरा
31. रामजीत भर, पुत्र- शिनारायण भर, ग्राम- दुडरहा चौरा
32. . बद्री भर
नाम खोजने की प्रक्रिया अभी जारी है...........।
राहुल राजभर - शोध छात्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी मोबाइल नंबर 9198227608Rahul shing rajbhar
चौरी-चौरा विद्रोह की पृष्ठभूमि में एक ओर 1857 के विद्रोह की ऊर्जा है तो दूसरी ओर जमींदारों के शोषण और ब्रिटिश पुलिश के जुल्म की इंतहा का जबाब भी. चौरी-चौरा विद्रोह का सम्बन्ध जहां सीधे तौर पर डुमरी खुर्द (छोटकी डुमरी ) के किसानों और वहाँ पर 4 फ़रवरी, 1922 को बुलाई गई किसान सभा के बाद खेलावन भर के नेतृत्व में 500 की संख्या में ग्रामीण लोगों द्वारा “भारत माता की जय” के उद्घोस के साथ ब्रिटिश पुलिश पर हमला है. इस हमले में खेलावन भर पुलिश की गोली द्वारा मौत के घात उतार दिए जाते हैं और बाकी लोगों को अभियुक्त बनाया जाता है. 4 फरवरी के हमले की योजना बुधवार, 1 फरवरी, 1922 की शाम को शिकारी के घर एक आवश्यक बैठक में बनी. इस बैठक में चौरा के महादेव भर के पुत्र ठग भर, खेलावन भर, भगवान् अहीर, लाल मुहम्मद सेन, मुंडेरा बाजार के रामस्वरूप बरई और डुमरी खुर्द के नज़र अली तथा कुछ अन्य लोगों ने भाग लिया था. असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ में स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई उसी के क्रम ने अनेक कमेटियों का गठन किया जिसमें पत्र पहुंचा कर विभिन्न जगहों से क्रांतिकारियों को गोरखपुर में बुलाने की जिम्मेदारी नाजाय अली, पहाड़ी भर, चिनगी तेली, खेली भर, जगलाल केवट, को दिया गया था. पहाड़ी भर के माध्यम से भेजा गया पत्र पडरी क्षेत्र के लिए था. उपरोक्त पाचों स्वयंसेवक की क्रान्ति जमींन तैयार करने में मुख्य भूमिका भी थी. 4 फ़रवरी के कार्यक्रम में जलपान की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी पहाड़ी भर और लाल मुहम्मद की थी. भरटोलिया के छेदी भर, गणेश प्रसाद कलवार और जगदेव भर ने चौरा बाजार के गोपीराम की दूकान के मुनीम विश्वनाथ कलवार से 1 रुपया 10 पैसा के उधार पर एक टीन किरासन तेल खरीदा और उन्होंने सूप और एक बोझ सरपट जुटाया; फिर इन सामानों को बिरजा तथा जोगी भर के साथ चौरा थाना के गेट पर पहुच गएन और थाने में आग लगा दिए. सरपट/खर का एक बोझा भगवान् अहीर भी लेकर आये थे. रामफल भी सूखी घास बटोर लाये थे और वे भी थाना जलाने में सामिल थे. देखते ही देखते थाना धधकने लगा. थाना जल रहा था तथा स्वयं सेवकों ने 5 सिपाही को पिट कर मार चुके थे तथा उनके सवों को जलते थाने डाल दिए. अन्य सिपाहीयों को भी भीड़ ढूँढ-ढूंढ के पिट रही थी लेकिन दारोगा गुप्तेश्वर सिंह का कहीं पता न था. भीड़ की निगाह उसी की तलास में थी. उसी जालिम दरोगा ने अनेक क्रांतिकारियों को अकारण पिटा था तथा लाठीचार्ज और गोलिचार्ज कर कई लोगों की ह्त्या की थी. जब कुछ क्रांतिकारी थाने के चारों ओर लगी बांस की बाड़ को तोड़ रहे थे तभी गुप्तेश्वर सिंह (हेड कांस्टेबल) बाहर आया. इसके बाहर आते ही रघुपति भर, बद्री भर और मेघू तिवारी ने पिट-पिट कर उसे मार डाला और उसकी लाश को घसीट कर दरोगा के घर के पीछे, पश्चिम दरवाजे तक ले गए. इस आन्दोलन में मारे गए लोगों की संख्या को लेकर आज तक भी स्पष्ट आकडे नहीं मिल पाए हैं. सरकारी गवाह शिकारी ने 23 जून, 1922 को सेशन कोर्ट में जो बयान दिया उसके अनुसार खेलावन भर (ग्राम-भरटोलिया) और और बुध अली जुलाहा (ग्राम-चौरा) पुलिश की गोली से मारे गए. डॉ. अनिल श्रीवास्तव के अनुसार खेलावन भर, नज़र अली जुलाहा तथा भगवान् तेली भी पुलिश गोली में मारे गए. एक अन्य इतिहासकार के अनुसार पुलिस गोली से 26 सत्याग्रही मारे गए परन्तु किसी ब्रिटिश अभिलेख से इसकी पुष्टि नहीं होती. बंदूकधारियों द्वारा लगातार गोली चलाने पर 3000 की भीड़ में मात्र 2 या 3 व्यक्तियों के मारे जाने की बात संदेहास्पद लगाती है. चौरी-चौरा काण्ड सामिल लोगों का जातीवार आंकड़ा इस प्रकार है – भर/राजभर – 32, केवट- 27, पासी- 21, चमार- 21, अहीर- 18, कहार- 17, कुर्मी- 16, सैथवार- 6, ब्राह्मण- 6, कलवार- 6, तेली-4, बरई- 4, बिन्द- 4, लोहार- 4, लुनिया/लोनिया- 02, मल्लाह- 02, धोबी- 02, कंडू- 02,भूमिहार- 01, सुनार- 01, गोसांई- 01
चौरी-चौरा काण्ड में सामिल भर जाति का विवरण
1. खेलावन भर (गोली मारकर हत्या)
2. पहाड़ी भर (फ़ासी की सजा )
3. दुधई भर (फ़ासी की सजा), उम्र - 38 चौरा
4. बल्ली भर, पुत्र- जिउलाल भर, उम्र- 28, ग्राम - कुशामी
5. छेदी भर, पुत्र- सुखाई भर, उम्र- 28, ग्राम- भारटोलिया
6. छोटक भर, पुत्र- बनारसी भर, उम्र- 16, ग्राम- भुसारी
7. छोटक भर, पुत्र-विशेषर भर, उम्र-17, ग्राम- कुसमही
8. रघुपति भर, उम्र 38, ग्राम- चौरा
9. फ़क़ीरे भर, पुत्र- वन्शु भर, उम्र- 50, ग्राम- बाले
10. घुलम भर, पुत्र- रामफल भर, उम्र- 40, ग्राम- भरटोलिया
11. गोपी भर, पुत्र- काशी भर, उम्र- 16, ग्राम- चौरा
12. जगदेव भर, पुत्र- वैजनाथ उम्र- 25, ग्राम- रामपुर रकवा
13. जगदेव भर, पुत्र- जय श्री भर, उम्र- 19, ग्राम- चौरा
14. जानकी भर समझावन भर 22 चौरा
15. जोगी भर, पुत्र- फ़क़ीर भर, उम्र- 22, ग्राम- बाले
16. महादेव भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 22, ग्राम- चौरा
17. ठग भर, पुत्र- भैरू भर, उम्र- 42, ग्राम- चौरा
18. मनोज भर, पुत्र- मनोरथ भर, उम्र-40, ग्राम- सथरी
19. रघुवीर भर, पुत्र- मथुरा भर, उम्र- 23, ग्राम- धोंनसरा
20. सहदेव भर, पुत्र- बुधई भर, उम्र- 19, ग्राम- कुसमहि
21. सहदेव भर, पुत्र- गट्टी भर, उम्र- 23, ग्राम- जोधपुर सुखई
22. सरूप भर, पुत्र-अचंभित भर, उम्र- 30, ग्राम- चौरा
23. शंकर भर, पुत्र- ठग भर, उम्र- 25, ग्राम- चौरा
24. शेषधर भर, पुत्र- द्वारका भर, उम्र- 25, ग्राम- धोनसरा
25. तपसी भर, पुत्र- पदरथ भर, उम्र- 21, ग्राम- कुशमाही
26. ठाकुर भर, पुत्र- छोटू भर, उम्र- 24, ग्राम- बाले
27. तिहुल राजभर, पुत्र- सोभित राजभर, उम्र- 45, ग्राम- चौरा
28. तुलसी भर, पुत्र- भोला भर, उम्र- 27, ग्राम- जोधपुर
29. बरन भर, पुत्र- जगदाल भर, ग्राम -कुशमाही चौरा
30. दुक्खी भर, पुत्र- रामपति भर, ग्राम- दरसनवा चौरा
31. रामजीत भर, पुत्र- शिनारायण भर, ग्राम- दुडरहा चौरा
32. . बद्री भर
नाम खोजने की प्रक्रिया अभी जारी है...........।
राहुल राजभर - शोध छात्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी मोबाइल नंबर 9198227608Rahul shing rajbhar
सुपर knowladge
ReplyDeleteजय महाराजा सुहेलदेव राजभर जी जय राजभर समाज बहुत बहुत धन्यवाद लेकिन भाई कोई भी इतिहास या काण्ड में भर का कही भी उल्लेख नहीं किया गया है यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है जिस जाति के नाम से भारत पङा उस जाति को लोग जानते तक नहीं
ReplyDeleteBest
ReplyDeleteजय भारत सपूत भर/राजभर कुल के क्रांतिकारी आप सभी को नम आंखो से श्रधान्जली देता हू।
ReplyDeleteमगर आज जो देश भक्त राजपूत सिंह कहे जाते है उन्ही के हाथो अन्ग्रेज के चमचो द्वारा क्रांतिकारियों का हत्या करते है। आज देश के अमर शहीद हो गये।मगर इतिहास के पन्नो से गायब कर दिया गया।
Very good knowledge
ReplyDeleteब्रिटिश विद्रोही भारत के ज्ञात अज्ञात उन तमाम वीर सपूतों को शत शत नमन
ReplyDeleteAap kab tak apne ko chhupaoge, aap sab bhi paasi ki hi upjati hain, bhar yah pasi ki upjati hai, aur yah sab krantikari pasi the
ReplyDelete*प्रेस प्रकाशनार्थ* ------------ - --------
ReplyDeleteसुहेलदेव स्मृति मासिक पत्रिका के पूर्व सम्पादक डॉ पंचम राजभर ने माननीय,प्रधानमंत्री जी, मा मुख्यमंत्री,मा संस्कृति/उच्च शिक्षा मंत्री जी को प्रामाणिक अभिलेखों के आधार पर महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय आज़मगढ़ का नाम विधिक रूप से संशोधित करने तथा विश्वविद्यालय प्रांगण में महाराजा सुहेलदेव की एक आदमकद प्रतिमा अधिष्ठापित कर उसके साइनेज बोर्ड/शिलापट्ट पर *राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर* अंकित किये जाने का अनुरोध किया है ! डॉ राजभर ने सरकार द्वारा देश,समाज व सनातन धर्म सहित उसकी अखंडता,संस्कृति,
सभ्यता व की रक्षा करने वाले तमाम राष्ट्रभक्तों,महापुरुषों,अमर सपूतों,के राष्ट्रीय योगदान को दृष्टिगत रखते हुए उनकी स्मृति में आमजनमानस को प्रेरणा हेतु सरकारी संस्थानों आदि का नामकरण करने के लिए सरकार के कार्यों की सराहना की है ! उसी कड़ी में जनपद आज़मगढ़ में 11वीं सदी के राष्ट्रनायक तत्कालीन श्रावस्ती के सम्राट भारशिव नागवंश के *भर* समाज में जन्में* महाराजा सुहेलदेव राजभर जी के नाम से राज्य विश्वविद्यालय स्थापित किया जाना अत्यंत सराहनीय है ! डॉ राजभर ने प्रामाणिक साक्ष्यों सहित सरकार को लिखित प्रत्यावेदन प्रेषित कर मांग की है कि राष्ट्र के प्रति समर्पित महापुरुष तो देश की धरोहर हैं उन्हें किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता है ! परन्तु भारतीय समाज में प्रचलित सामाजिक व्यवस्था के विधान में संचालित चतुष्वर्णीय वर्णाश्रम की बहुप्रथा के अनुसार लोग वंशों,जातियों आदि में बिखण्डित हैं, तदनुसार उनका जातीय नामकरण ,संबोधन, लेखन का प्रचलन भी किया जाना सुनिश्चित है ! उसी तरह जिस तरह से अन्य वीर सपूतों का नामकरण किया गया है ! उदाहरण स्वरूप जनपद जौनपुर में वीर बहादुर *सिंह* पूर्वांचल विश्वविद्यालय, एवं उमानाथ *सिंह* राज्य मेडिकल जौनपुर, उमानाथ *सिंह* जिला चिकित्सालय जौनपुर, राजा महेन्द्रप्रताप *सिंह* राज्य विश्वविद्यालय अलीगढ़,
डॉ शकुंतला *मिश्रा* राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ आदि का नामकरण किया गया है ! उसी तरह महाराजा सुहेलदेव जो कि तमाम प्रामाणिक,अभिलेखों,
गजेटियर,लगभग 30 ऐतिहासिक स्वदेशी,
विदेशी इतिहासकारों,
दार्शनिकों,मानवविज्ञान शास्त्रियों की पुस्तकों, साहित्यों,साक्ष्यों,किवदंतियों,कथाओं आदि के आधार पर मुख्यतः भारत की मूलतः निवासरत बहादुर शासक कौम *भर* synonyms *राजभर* जाति का बताया गया है जिन्होंनें विदेशी आक्रांताओं से तत्समय राष्ट्र व सनातन धर्म की रक्षा की थी ! ऐसी परिस्थिति में महाराजा सुहेलदेव राजभर के नाम का *सम्बोधन,उदबोधन, व लेखन* किया जाना सर्वथा न्यायोचित एवं जनाकांक्षा के अनुतुप है !
डॉ राजभर ने शासन,प्रशासन से अनुरोध किया है कि जनपद आज़मगढ़ में अधिष्ठापित महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय का नाम *विधिक रूप* से संशोधित कर *महाराजा सुहेलदेव राजभर राज्य विश्वविद्यालय आज़मगढ़* करते हुए विश्वविद्यालय परिसर में शासकीय तौर पर महाराजा सुहेलदेव की एक प्रतिमा स्थापित कर उसके साइनेज बोर्ड/शिलापट्ट पर *राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर* किया जाना सुनिश्चित करने का कष्ट करें !
डॉ पंचम राजभर-
drprajbhar1962@gmail.com -9889506050
drprajbhar1962@gmail.com - Email--26/12/2019-
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1118-
by drprajbhar(Dr Pancham Rajbhar)
आदरणीय श्री अजय देवगन जी ,साभिवादन
महोदय,
यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि आप जैसे प्रसिद्ध फ़िल्म कलाकार एक चर्चित लेखक श्री अमिश त्रिपाठी जी द्वारा लिखित पुस्तक बैटिल ऑफ बहराइच कहानी के आधार पर एक ऐसे महापुरुष के बारे में फ़िल्म बनाने के लिए तत्पर हैं जो 11 वीं सदी के भारतीय राष्ट्रनायक तत्कालीन श्रावस्ती राज्य के सम्राट भारशिव नागवंशी भर समाज के कुलगौरव महाराजा सुहेलदेव राजभर जी जिन्होंने तत्समय पूरे भारत के लिए धर्मान्धता व आतंक का पर्याय बना विदेशी दुर्दांत आक्रांता सैयद सलार मसऊद ग़ाज़ी मियाँ का लगभग एक लाख सैनिकों सहित अपनी विशेष युद्धनीति व रणकौशल से सेना सहित उसका भी बध किया ,वह भी ऐसे समय जब सलार मसूद पूरे देश के राजाओं को परास्त करते हुए अपने तलवार के बल पर इस्लाम धर्म को कबूल न करने वालों लोगो का सरेआम कत्लेआम कर अधीनता स्वीकार करने वालों को धर्म परिवर्तन कराते पूरे देश में हाहाकार मचाये था ! ऐसे आततायी का श्रावस्ती नरेश ने क्षेत्रीय राजाओं को एकजुट कर उनका नेतृत्व करते हुए निर्णायक युद्ध जीतकर राष्ट्रधर्म मानव धर्म व सनातन धर्म की रक्षा किया ! परंतु खेद है कि ऐसे महान शूरवीर पराक्रमी मानवीय धर्म रक्षक राष्ट्रभक्त के राष्ट्रीय योगदान की भारतीय समाज व इतिहासकारों/साहित्यकारों/लेखकों द्वारा उन्हें यथोचित सम्मान न देकर उनके वास्तविक जीवन वृतान्तों को दबाया व छिपाया गया !
लेकिन यह प्रसन्नता का विषय है कि आप द्वारा ऐसे परम प्रतापी,कुशल देशभक्त के जीवन चरित्र सहित उनके सुकृत्यों को समाज के पटल पर आमजनमानस को देश भक्ति व समाजसेवा की प्रेरणा हेतु सबके समक्ष रखे जाने का सुंदर प्रयास किया जाना अत्यंत हर्ष का विषय है ! जिसके लिए आप साथियों सहित बधाई के पात्र हैं और निश्चित रूप से महाराजा सुहेलदेव राजभर के वंशज करोङो करोङों उनके अनुयायियों में प्रसन्नता की लहर है !
आपसे सिर्फ एक अनुरोध है कि महाराजा सुहेलदेव जी के जीवन परिचय की कड़ी में कुछ अपुष्ट प्रमाणों के आधार पर कुछ भ्रांतियां पैदा करने की कोशिश अवांछनीय तत्वों द्वारा की गई है फिर भी वैसे तो किसी राष्ट्र के महापुरुष/राष्ट्रभक्त तो उस मातृभूमि सहित देश की धरोहर होते हैं तथा उन्हें किसी विशेष वर्ग,जाति के परिधि में नही रखा जा सकता है ऐसा विभक्त करना उनके राष्ट्रीय कद का अपमान है परंतु प्राचीन काल से ही इस देश मे वर्ण व्यवस्था के आधार पर जातियों में विखंडित प्रचलित मान्य प्रथाओं के अनुसार भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विधान के अनुरूप उनके माता, पिता ,राज्य क्षेत्र , कुल,वंश ,जाति सामाजिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक संरचना आदि के बारे कहीं कहीं साजिशन जानबूझकर कुछ अप्रामाणिक रूप से भिन्नता पैदा कर सामाजिक विद्वेष पैदा किया गया है जैसे कि महाराजा सुहेलदेव जी के जाति के संबंध में सभी प्रामाणिक अभिलेख में भारशिव नागवंशी भर/राजभर जाति का स्पष्ट रूप से उल्लेख कर बताया गया है लेकिन कुछ चंद चालक मगर धूर्त लोगो ने उन्हें बिना प्रमाण के ही कहीं कहीं अन्य जाति बताने का कुत्सित प्रयास कर समाज मे विघटन पैदा करने का दुस्साहस व भ्रम पैदा किया हैं ! जो कि अत्यन्त निंदनीय है !
अतः आपसे आग्रह है कि प्रस्तावित फ़िल्म का निर्माण वास्तविकता के आधार पर करें हमारे जैसे उनके तमाम वंशजों की हार्दिक शुभकामनाएं आपके साथ इस आशय के साथ हैं कि वास्तविकता के आधार पर जीवन वृतान्तों का चित्रण करें !कृपया अपना कॉन्टैक्ट नंबर व ईमेल आईडी पुनः प्रदान करने का कष्ट करें ,जिससे कि आपको महाराजा के जीवन वृतान्तों के सम्बंध में प्रामाणिक अभिलेखों की प्रतियां भेजकर वस्तुस्थिति से आपको अवगत कराया जा सकें ! जिससे निर्विवाद रूप से कार्य संचालित होता रहे !इन्ही आशा व उम्मीद सहित सहयोग की अपेक्षा में, सद्भावना सहित
भवदीय
डॉ पंचम राजभर -सोशल एक्टिविष्ट/Ex- राष्ट्रीय महासचिव-अखिल भारतीय राजभर संगठन @पूर्व संपादक - सुहेलदेव स्मृति (मासिक पत्रिका)- आवास- कुरथुवा सोनहरा आज़मगढ़ उ प्र 276301/ मो 9889506050/9452292260 एमएल drprajbhar1962@gmail.com
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*अनुस्मारक पत्र*
ReplyDeleteसेवामें,
माननीय मुख्यमंत्री जी,
उ प्र शासन ,लखनऊ
विषय-शासनादेश सं 1470/14-4-2002-824/2002 दिनांक 8 जुलाई 2002 के वन विभाग बलरामपुर द्वारा पूर्णतः लेखन,उदबोधन,संबोधन आदि किये जाने के संबंध में -
महोदय,
सादर आपका ध्यान उ प्र वन विभाग के अधीनस्थ जनपद बलरामपुर में स्थित *सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग बलरामपुर* के नाम को शुद्धिकरण हेतु मा जनप्रतिनिधियों एवं मेरे द्वारा भी कई बार किया जा रहा है ! परंतु अभी स्थानीय प्रशासन द्वारा दिनांक 8 जुलाई 2002 के आदेश जिसमें स्पष्ट रूप से सोहेलवा के स्थान पर सुहेलदेव लिखा गया है,लेकिन विभाग द्वारा अभी भी सोहेलवा ही लिखा जा रहा है ! सूच्य है कि 11 वीं सदी के राष्ट्रनायक एवं तत्कालीन श्रावस्ती के सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी के नाम से वन विभाग द्वारा शासनादेश सं *5299/14-3-74-83 दिनांक 14/11/1988* सोहेलवा वन्य जीव विहार नाम बलरामपुर/श्रावस्ती/बहराइच वन स्थित में अस्तित्व में आया ! जो कि पूर्व में ही किया गया नामकारण अशोभनीय,अमर्यादित,त्रुटिपूर्ण है !
उक्त नामकरण सोहेलवा को शुद्ध कर सुहेलदेव किये जाने का अनुरोध अनवरत किया जा रहा है ! मेरे द्वारा भी दिये गए प्रत्यावेदन के प्रतिउत्तर में उपप्रभागीय वनाधिकारी सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग बलरामपुर श्री नीरज कुमार आर्य के कार्यालय पत्र सं *250/16-1-दिनांक 30/04/2021* द्वारा स्पष्ट रूप से बताया गया है कि शासकीय आदेश सं *1470/14-4-2002-824/2002 दिनांक 8 जुलाई 2002* द्वारा अशुद्ध नाम सोहेलवा के स्थान पर नाम परिवर्तित कर शुद्ध नामकरण *सुहेलदेव वन्य जीव बिहार* बलरामपुर किया गया है ! परंतु अद्यतन भी विभाग द्वारा उक्त शासनादेश दिनांक 8 जुलाई 2002 का अनुपालन नहीं किया जा रहा है और विभाग अभी भी सुहेलदेव के स्थान पर सोहेलवा नाम से ही उदबोधन,संबोधन व लेखन कर पत्राचार आदि किया जा रहा है ! जबकि मा प्रधानमंत्री जी,मा मुख्यमंत्री जी द्वारा उनकी जन्मस्थली/कर्मस्थली में समीपस्थ जनपद में महाराजा सुहेलदेव जी की स्मृति में कई योजनाएं संचालित हैं ! ऐसी स्थिति में सुहेलदेव के स्थान पर अशुद्ध नाम सोहेलवा लिखा जाना स्पष्ट रूप से उच्च स्तरीय आदेश का उल्लंघन है !
अतः आपसे प्रबल अनुरोध है कि जनभावनाओं का समादर करते हुए विभागीय शासकीय आदेश सं *1470/14-4-2002-824/2002 दिनांक 08/07/2002* का लेखन,उदबोधन, संबोधन किये जाने का त्वरित *अनुपालन* कराये जाने हेतु तत्सम्बन्धित को आदेशित करते हुए वस्तुस्थिति से हमें भी अवगत कराने की कृपा करें !
संलग्नक -यथोपरि -
सम्मान सहित
प्रतिलिपि-माननीय वन मंत्री जी उ प्र सरकार,मुख्यसचिव जी उ प्र शासन,प्रमुख सचिव वन विभाग उ प्र शासन,प्रमुख वन संरक्षक उ प्र
भवदीय
डॉ पंचम राजभर
Ex -सम्पादक, सुहेलदेव स्मृति (मा प)
आवास-दुबरा बाजार,बरदह जनपद आज़मगढ़ उ प्र-276301 -मो 9889506050/6393750624