हमे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
न देते अर तुम तो पाते कहां से।
ए दुनिया को नगमे सुनाते कहां से।
मेरी आरजू तुमने पूरी किया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
तुम्हारी इबादत से सब कुछ मिला है।
सरोवर मे सरसिज तुम्ही से खिला है।
न होते अगर तुम बुलाते ही किसको?
ए दिल की मुरादें सुनाते ही किसको?
प्रकाशित हृदय पुंज तुमने किया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
ए नगमों की बरसात तुमसे हुई है।
ए दिन भी हुआ रात तुमसे हुई है।
बिना तेरे किसको मयस्सर निवाला?
तुम्ही से है रोशन हमारा शिवाला।
जो आया तेरे द्वार बनकर भिखारी।
सभी की यहाँ झोलिया भर दिया है।
हमे तुमने-----------------‐------।
तेरा शुक्रिया -------------------------।
बिभीषण की कुटिया तुम्हे रास आई।
दशानन की लंका तुम्ही ने जलायी।
सिकंदर भी हारा कलंदर भी हारा।
अहंकार को तुमने चुन -चुन के मारा।
जो विद्वान उनको बिभूषित किया है।
तेरा शुक्रिया----------------------।
हमे तुमने--------------------------।
रचयिता-अशोक कुमार यादव।
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हमे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
न देते अर तुम तो पाते कहां से।
ए दुनिया को नगमे सुनाते कहां से।
मेरी आरजू तुमने पूरी किया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
तुम्हारी इबादत से सब कुछ मिला है।
सरोवर मे सरसिज तुम्ही से खिला है।
न होते अगर तुम बुलाते ही किसको?
ए दिल की मुरादें सुनाते ही किसको?
प्रकाशित हृदय पुंज तुमने किया है।
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है।
ए नगमों की बरसात तुमसे हुई है।
ए दिन भी हुआ रात तुमसे हुई है।
बिना तेरे किसको मयस्सर निवाला?
तुम्ही से है रोशन हमारा शिवाला।
जो आया तेरे द्वार बनकर भिखारी।
सभी की यहाँ झोलिया भर दिया है।
हमे तुमने-----------------‐------।
तेरा शुक्रिया -------------------------।
बिभीषण की कुटिया तुम्हे रास आई।
दशानन की लंका तुम्ही ने जलायी।
सिकंदर भी हारा कलंदर भी हारा।
अहंकार को तुमने चुन -चुन के मारा।
जो विद्वान उनको बिभूषित किया है।
तेरा शुक्रिया----------------------।
हमे तुमने--------------------------।
रचयिता-अशोक कुमार यादव।
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सियासत के खातिर वतन मत जलाओ।
वतन जल गया तो कहाँ जाइएगा ?
न जुल्मों सितम अन्नदाता पे ढाओ।
वही गर न होगा तो क्या खाइएगा?
तुम्हें कितनी हसरत से मां पालती है?
तेरी भूख उसको सदा सालती है।
अगर मां न होगी तो जीवन न होगा।
बिना मां के ममता कहाँ पाइएगा?
सियासत के खातिर--------------।
वतन गर न-----------------------?
जहर भाइयों के न दामन में घोलो।
कौन बांह रण में पुजाएगा बोलो ?
यहीं पर मिलेगा तुम्हें भाईचारा ।
भरत सा तूँ भाई कहाँ पाइएगा?
सियासत के खातिर ----‐-------।
वतन जल गया ------------?
पितामह है अम्बर व माता मही है।
यही बात पुरखों ने अपने कही है।
न संस्कृति मिलेगी कहीं इतनी प्यारी।
सजी सात रंगों से धरती हमारी ।
ये उपवन हमारा भी गुलजार होगा।
यहाँ हिन्दू मुस्लिम में जब प्यार होगा।
जो इंसानियत मिट गई इस धरा से ।
तो इंसान बनकर के क्या पाइएगा ?
सियासत के खातिर ----------।
वतन जल गया ---------------------?
है नफरत की आँधी में गाँधी को मारा।
ये फिरकापरस्ती ने गुलशन उजारा ।
सियासत से ऊपर उठो तुम उठाओ।
धरम के लिए अब लहू मत बहाओ।
न सद्भाव दुर्भाव से तुम बिगाड़ो।
शहीदों का अहले वतन मत उजाड़ो।
भगत सिंह के मां की यही आरजू है।
किसी की भी मां को न तड़पाइएगा ?
सियासत के खातिर ------------।
वतन जल गया-----------------?
रचयिता-अशोक कुमार यादव।
इं प्रधानाध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय कूम्ही बनपुरवा
कादीपुर सुल्तानपुर।
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चला खेलई बृज कै होली गोरी चला खेलै बृज के होरी ।2
सकरी गली बरसाना नगरिया।
राधा के संगवा में खेलई साँवरिया।
पिचकारी रंगवा में बोरी गोरी चला खेलई बृज के होली गोरी ।2
चला खेलई बृज के होरी।2
बहै फगुनवा बसंती बयरिया।
पहले पहल अयनी पिया की नगरिया।
देवरा करे जोरा- जोरी गोरी चला खेलई बृज के होरी गोरी ।2
मनवा मगन भौजी के अंगनवा।
अंग -अंग बेधई ला पापी मदनवा।
आइल दुल्हन नई बा नवेली गोरी ।
चला खेलई बृज के होली गोरी चला खेलई ब्रृज के होली गोरी ।2
ढखवा के फुलवा के रंग अलबेला।
खेलई सिवनिया में होली ग़देला।
बुढ़वउ भिगोवय ला चोली गोरी ।
चला खेलई ब्रिज के होली गोरी चला खेलई बृज के होरी।2
उड़ई अबीर गुलाल भवनवा।
भीगै बदनिया तो हरषै ला मनवा। बोलै कबीरा कै सरा रर बोली गोरी।
चला खेलई बृज के होली गोरी।2
अशोक यादव
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एक मां फिर जली घर जलाया गया।
हर सितम एक अबला पे ढाया गया।
साथ बेटी जली फिर बचाओगे क्य़ा?
बोलोअब तुम बहाना बनाओगे क्या?
फिर हलाहल उन्हें क्यों पिलाया गया?
एक मां --------------------‐--‐----।
हर सितम ------------------------।
वक्त के वो शहंशाह बोलो जरा।
आंख मूदी हुइ इसको खोलो जरा।
कैसा यह राज है कैसा तेरा धर्म?
क्यों सियासत तेरी इतनी है बेरहम?
खौफ की नींद में क्यों सुलाया गया?
एक मां फिर ------‐------------‐--।
हर सितम-------‐--------------।
जो चलाया वही चल रहा सिलसिला।
तुझसे कोई करे भी तो कैसे गिला ?
तुमने धारा धरा की कहाँ मोड़ दी?
लाज की शर्म की हर हदें तोड़ दी।
ख़ाक में ज़िंदगी को मिलाया गया।
एक मां फिर ---------------------‐।
हर सितम---------‐-------------'।
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वो ख्वाबों का वतन मेरे बता किसने उजाड़ा है?
यहाँ सद्भाव भारत का बता किसने बिगाड़ा है?
ए गंगा और यमुना की लिए तहजीब जीता था।
यहाँ पर न्याय का प्रहरी हमारा ग्रंथ गीता था।
समादर भाव धर्मों में जहां विस्वास पलता था।
अहिंसा धर्म था अपना उसी पर देश चलता था।
दिशाएं मौन हैं सारी सियासत के गुनाहों से।
यहाँ पर मूक जनता ने किसी का क्या बिगाड़ा है?
वो ख्वाबों--------------------------?
ए बिगड़ा देश अपना है न गोरों से न कालो से।
यहां बिगड़ा हुआ आलम है नफरत के ख्यालों से।
मजहबी देवता बसते यहाँ इंसां की बस्ती में।
लगाया दाग जिसने है यहाँ भारत की हस्ती में।
कभी इंसानियत का राज कायम कर नहीं पाए।
हरा है घाव बिघटन का अभी तक भर नहीं पाए।
यहाँ माहौल उल्फत का बता किसने बिगाड़ा है?
गड़ा मुर्दा सियासत ने यहाँ पग-पग उखाड़ा है।
वो ख्वाबों-------------------------?
यहाँ बदला है नेता और ए परिवेश बदला है।
बहुत बदली सियासत पर न भारत देश बदला है।
बदलना था जिन्हे खुद को बदलकर भेष चलते है।
इन्हीं के छांव मे कातिल हजारों आज पलते हैं।
सियासत मे शराफत का कहां अब भाव होता है?
बिजेता के लिए चलना यहाँ हर दांव होता है।
हुआ नैतिक पतन नेता ने वह हालात कर डाले।
ए नेता रात -दिन सबको पढ़ाता बस पहाड़ा है।
वो ख्वाबों------------------------?
रचयिता-अशोक कुमार यादव।