Tuesday, January 16, 2024

काव्य रचना संग्रह (आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर)

--------------------------------------------------------------

मेरी अभिलाषा 
     कविता

मेरी अभिलाषा है
 मैं पढ़ना चाहती हूँ
 लगाकर पंख 
इस जहां को घूँमना चाहती हूँ
आसमा की ऊंचाई पर
 पहुंचना चाहती हूँ 
दुनिया के दर्द को 
हरना चाहती हू़ँ
मेरी अभिलाषा है 
मैं पढ़ना चाहती हूँ

दुनिया को मा़ँ के आंचल सा
सँवारना चाहती हूँ
बेटी हूँ 
सब का सम्मान 
बढ़ाना चाहती हूँ
माँ का आँचल 
सवारना चाहती हूँ
मेरी अभिलाषा है 
मैं पढ़ना चाहती हूँ

मैं आजाद पंछी सा 
उड़ना चाहती हूँ 
इस जगत को कुछ नया 
देना चाहती हूँ 
गुलामी की बेड़ियों को
 तोड़ना चाहती हूँ 
बेटी हूँ इसलिए सम्मान 
बढ़ाना चाहती हूँ
 मेरी अभिलाषा है 
मैं पढ़ना चाहती

बनकर सूरज मैं
चमकना चाहती हूँ 
अंधेरों को खालना चाहती हूँ
आडम्बरों को तोड़ना चाहती हूँ
कुछ अच्छा सा 
जगत को बनाना चाहती हूँ
अपने हुनर से
 इस जगत को सजाना चाहती हूँ 
बेटी हूँ 
बेटी का मान 
बढ़ाना चाहती हूँ 
मेरी अभिलाषा है 
मैं पढ़ना चाहती हूँ

            रचना
आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर 
सहायक अध्यापक 
प्राथमिक विद्यालय रानीपुर 
कायस्थ कादीपुर 
जनपद-सुल्तानपुर
email-chandrapal6799@gmail.com
mo-9721764379

------------------------------------------------------
कैसे करें दिल की बात
         कविता
कैसे करें दिल की बात 
वो दिल दुःखाना चाहते है
फँसा के दामने उल्फत में
मुँझे हर रोज सताना चाहते हैं,
आज उनके साथ
कल उनके साथ 
घूँम-घूँम कर मुझे 
मोहब्बत सिखाना चाहते है

कैसे करें दिल की बात
 वो दिल दुःखाना चाहते है
अक्सर वो कन्फ्यूजन में पडकर
मुँझे दोसी ठहराना चाहते है
कानों में जहर उनके 
उनके मीत फूँकना चाहते हैं
मेरे खिलाफ उन्हें अक्सर उकसाना चाहते हैं
वो नासमझ हैं 
हमेशा मुझसे 
खफा रहना चाहते हैं

कैसे करें दिल की बात 
वो दिल दुःखाना चाहते हैं

वो अपने वादे  
कुछ पल में बदलना चाहते हैं 
आज कुछ कल कुछ
और परसों कुछ और कहना चाहते हैं
वो मोहब्बत को मोहब्बत
 नहीं समझना चाहते हैं
किसी अच्छे को सच्चा 
नहीं समझना चाहते हैं
वो दिखावे को सच्चा 
और अच्छा समझना चाहते हैं 

कैसे करें दिल की बात 
वो मेरा दिल दुःखाना चाहते हैं
फँसा के दामने उल्फत में
  मुझे हर रोज सताना चाहते हैं
            रचना
आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर 
सहायक अध्यापक
 बेसिक शिक्षा विभाग 
जनपद सुल्तानपुर
email-chandrapal6790@gmail.com
mo-09721764379

---------------------------------------------------
नदिया की धारा बोले
           कविता
नदिया की धारा बोले
 गति में तू चला चल 
चाहे हो कठिन डगरिया
 फिर भी तू बढा चल

नदिया की धारा बोले

रास्ते में रोड़े बहुत 
कंकड़ और पत्थर 
पैरों से तू मारे चल 
रास्ते बनाता चल 

नदिया की धारा बोले
 गति में तू चला चल
 चाहे हो कठिन डगरिया
 फिर भी तू बढ़ा चल
 नदिया की धारा बोले

चाहे पड़े पैरों में 
छाले और बेवाईया
 मंजिल पर बढा चल
 दिन-रात भैया 

नदिया की धारा बोले

 कितने भी लोग करें
 बड़-बड़ बुराइया 
मत सुन किसी की तू
बढ चल भैया

 नदिया की धारा बोले
               रचना
        आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर
            सहायक अध्यापक 
         प्राथमिक विद्यालय रानीपुर 
                    कायस्थ 
           जनपद सुल्तानपुर

-------------------------------------------------------
      मैं शिक्षक हूं
        कविता

मैं शिक्षक हूँ
अक्सर अंधेरों को खलता हूँ
अपनी रोशनी से 
जगत को जगमगाता

मैं त्याग हूँ,तपस्या हूँ
संघर्ष हूँ,समर्पण हूँ ।।2।।
 बलिदानी हूं अपने अनमोल समय का
 मैं राष्ट्र हूँ, निर्माता हूँ,
ज्ञान हूँ, इस जगत का

इसलिए मैं शिक्षक हूँ
 अक्सर अंधेरों को खलता हूँ
अपनी रोशनी से 
जगत को जगमगाता हूँ

मैं नन्हें कोरे कागज को 
अपने सृजन से सँवारता हूँ
 नन्हें-नन्हें फूलों में 
जीवन का रंग भरता हूँ 
फिर भी मैं समाज में
 अक्सर बदनाम ही रहता हूँ

मैं शिक्षक हूँ
 अक्सर अंधेरों को खलता हूँ
अपनी रोशनी से
 जगत को जगमगाता हूँ

मैं बिखरी-बिखरी रंगत को 
अक्सर लय तान में संजोता हूँ
 अपनी सृजन की तुलिकाओं से
 उन्हें अनमोल धरोहर बनाता हूँ 
इस तेजी से बढ़ती दुनिया में
 उन्हें आत्मनिर्भर बनाता हूँ 

मैं शिक्षक हूँ
 अक्सर अंधेरों को खलता हूँ अपनी रोशनी से 
जगत को जगमगाता हूँ

             रचना
         चन्द्रपाल राजभर 
(आर्टिस्ट लेखक शिक्षक)
 वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक
chamdrapal6790@gmail.com
-----------------------------------------------------
हे नैया के खेवनहार
        कविता

हे नैया के खिवैया गुरुवर  
मेरा भी उद्धार करो
 इस लाकडाउन मेंअब 
मेरा भी बेड़ा पार करो

नित नयन आश लगाया हूं
 आपके आशीर्वाद हो का
 कब होगा जीवन में मेरे 
एक नया प्रकाश उजालों का

कोविड ने घेर लिया  मुझको
 मैं भूल गया अक्षर अक्षर 
अब आप ही मार्गदर्शक हो 
हे गुरुवर नाव खेवैया का


हे नैया के... .....................
इस लाकडाऊन में..................

मैं अंधकार में जी रहा 
मुझमें भी प्रकाश भरो
मैं भटक रहा दर दर 
मेरा भी उद्धार करो
              रचना
        चंद्रपाल राजभर
           सहायक अध्यापक 
प्राथमिक विद्यालय रानीपुर कायस्थ कादीपुर 
जनपद सुलतानपुर उत्तर प्रदेश इंडिया


-------------/-///-/--------------------------
          कविता

धारा को स्वस्थ बनाना है

सबको वृक्ष लगाना है 
धारा को स्वस्थ बनाना है
आँगन की तुलसी को
 पूरे जगत में मंहकाना है

सबको वृक्ष लगाना है ।।2।।

ऑक्सीजन को बढ़ाना है
 पीपल बरगद के साथ 
पंचवटी को बनाना है 
पूरे जगत को सजाना है 
धरा को सुंदर बनाना है 

सबको वृक्ष लगाना है।।2।।

सूखती धारा को बचाना है
 हरियाली को बढ़ाना है 
जल ही जीवन है 
जल को बहुत बचाना है
 सबको वृक्ष लगाना है 

सबको वृक्ष लगाना है।।2।।

नदियां सब की आशा है 
इसको भी बचाना है 
नालों और नर कंकालों को
 नदियों में नहीं बहाना है 
धरा को स्वच्छ बनाना है 

सबको वृक्ष लगाना है।।2।।

जनसंख्या विस्फोट से 
धारा को भी बचाना है 
परिवार नियोजन के 
उपाय को अपनाना है
 एक या दो चरागों से 
पीढ़ी को आगे बढ़ाना है 
धरा को स्वच्छ बनाना है

 सबको वृक्ष लगाना है।।2।।

चंद्रपाल राजभर (आर्टिस्ट)
प्राथमिक विद्यालय रानीपुर कायस्थ कादीपुर जनपद सुल्तानपुर,
लेखक,शिक्षक,चित्रकार वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया

------------------------------------------------------------
                    विगुल 
             🌻🌻कविता🌻🌻
 
मैं आजादी का बिगुल बजाता
 चलता दिन और रात था 
खड़ाऊँ पहने धोती ओढे
 लाठी  एक हथियार था

चलता पग-पग पैदल मै था
 जनता का सम्मान था 
सत्य अहिंसा वाला मैं 
जीता जागता सरकार था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

 यात्रा दंडी चलकर मैंने
नमक बनाया अपरंपार था 
अंग्रेजों को नाकों चने 
चबवाया मैंने हर साल था
देश की यथा देश की व्यथा 
सुधारा मैंने हर साल था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

बुनियादी शिक्षा से लेकर 
दिया नारी सम्मान था
स्त्री शिक्षा से लेकर 
व्यवसायी तक फर्मान था
देश आजादी ही मेरा 
बस यही बड़ा अभिमान था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

               रचना
       चंद्रपाल राजभर 
(आर्टिस्ट,लेखन,शिक्षक )
जनपद सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
mail-chandrapal6790@gmail.com
mo-7984612205

--------------------------------------------------

                 कविता

कलाम को सलाम वतन करता है 

कलाम को सलाम,वतन करता है
हुनर को सलाम,जन करता है 
कहीं खो न जाये,विरासत वतन की 
इसलिये देश,सलाम करता है 

कलाम को सलाम,वतन करता है 

संघर्षो का जीवन भी,कमाल
करता है
विना संसाधन भी,धमाल करता है 
बता दिया आपने ऐसा हुनर
अब हर आदमी देखो,कमाल करता है

कलाम को वतन सलाम करता है

दिया है आपने जो,मिसाईल वतन को
दुश्मन को खाक कर,कमाल करता है 
दुनिया में मस्तक,ऊँचा किया है आपने 
इसलिये देश सलाम करता है 

कलाम को वतन सलाम करता है

दुश्मन भी भयभीत,हुआ करता है 
मिशाईल की परवाज,से डरा करता है
मेरे वतन की है ये,अउपलब्धिथ
इसलिये देश,सलाम करता है 

कमाल को वतन सलाम करता है


चन्द्रपाल राजभर (स..अ.)
प्रा.वि.रानीपुर कायस्थ कादीपुर 
जनपद-सुल्तानपुर उ.प्र.
chandrapal6790@gmail.com
mo-9721764379

-------------------------------------------
                 विगुल

   🌻🌻कविता🌻🌻
  2 अक्टूबर पर एक विशेष प्रस्तुति

मैं आजादी का बिगुल बजाता
 चलता दिन और रात था 
खड़ाऊँ पहने धोती ओढे
 लाठी  एक हथियार था

चलता पग-पग पैदल मै था
 जनता का सम्मान था 
सत्य अहिंसा वाला मैं 
जीता जागता सरकार था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

 यात्रा दंडी चलकर मैंने
नमक बनाया अपरंपार था 
अंग्रेजों को नाकों चने 
चबवाया मैंने हर साल था
देश की यथा देश की व्यथा 
सुधारा मैंने हर साल था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

बुनियादी शिक्षा से लेकर 
दिया नारी सम्मान था
स्त्री शिक्षा से लेकर 
व्यवसायी तक फर्मान था
देश आजादी ही मेरा 
बस यही बड़ा अभिमान था
मैं आजादी का बिगुल बजाता 
चलता दिन और रात था

               रचना
       चंद्रपाल राजभर 
(आर्टिस्ट,लेखन,शिक्षक )
जनपद सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
mail-chandrapal6790@gmail.com
mo-7984612205

-------------------------------------------------

कैसे करें दिल की बात
         कविता

कैसे करें दिल की बात 
वो दिल दुःखाना चाहते है
फँसा के दामने उल्फत में
मुँझे हर रोज सताना चाहते हैं,
आज उनके साथ
कल उनके साथ 
घूँम-घूँम कर मुझे 
मोहब्बत सिखाना चाहते है

कैसे करें दिल की बात
 वो दिल दुःखाना चाहते है
अक्सर वो कन्फ्यूजन में पडकर
मुँझे दोसी ठहराना चाहते है
कानों में जहर उनके 
उनके मीत फूँकना चाहते हैं
मेरे खिलाफ उन्हें अक्सर उकसाना चाहते हैं
वो नासमझ हैं 
हमेशा मुझसे 
खफा रहना चाहते हैं

कैसे करें दिल की बात 
वो दिल दुःखाना चाहते हैं

वो अपने वादे  
कुछ पल में बदलना चाहते हैं 
आज कुछ कल कुछ
और परसों कुछ और कहना चाहते हैं
वो मोहब्बत को मोहब्बत
 नहीं समझना चाहते हैं
किसी अच्छे को सच्चा 
नहीं समझना चाहते हैं
वो दिखावे को सच्चा 
और अच्छा समझना चाहते हैं 

कैसे करें दिल की बात 
वो मेरा दिल दुःखाना चाहते हैं
फँसा के दामने उल्फत में
  मुझे हर रोज सताना चाहते हैं

       रचना
आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर 
सहायक अध्यापक
 बेसिक शिक्षा विभाग 
जनपद सुल्तानपुर
email-chandrapal6790@gmail.com
mo-09721764379

--------------------------------------------------
युवाओ के लिये 
कविता

चलते रहो चलते रहो ।।2।।
 रुकना मेरा काम नहीं 
सफलता मेरा लक्ष्य है 
ठहरना मेरा नाम नहीं ।।2।।

 चलते रहो चलते रहो 
रुकना मेरा काम नहीं  ।।2।।

मुसीबतें बहुत है सफर में ।।2।।
 इसे बैलेंसिंग बनाते रहो 
कदम दर कदम अपना
 मंजिल की तरफ बढ़ाते रहो 
सफलता बड़ी आसान है 
तुम चलते रहो चलते रहो
 चलते रहो चलते रहो ।।3।।

           रचयिता
 चंद्रपाल राजभर आर्टिस्ट लेखक शिक्षक 
वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया
------------------------------------------------------

       कविता

शीर्षक-बेटियाँ

बेटियां हैं बेटियाँ। ।।2।।
इस धारा की बेटियांँ 
देश का गौरव 
अभिमान है बेटियांँ

सृष्टि हैं बेटियांँ 
दृष्टि है बेटियांँ 
मान है बेटियांँ 
सम्मान है बेटियांँ 
पिता के जिगर में जाकर देखो
 पिता के जिगर का
 अभिमान है बेटियांँ 

बेटियांँ हैं बेटियांँ। ।।2।।
इस धारा की बेटियांँ 
देश का गौरव 
अभिमान है बेटियांँ


सूर्य भी है बेटियांँ
 चांद भी है बेटियांँ  
आग भी है बेटियांँ 
पानी भी है बेंटियाँ
कमजोर ना समझो इनको 
वीरांगना है बेटियांँ

बेटियां हैं बेटियांँ। ।।2।।
इस धारा की बेटियांँ 
देश का गौरव 
अभिमान है बेटियांँ

मान है बेटियांँ 
मेहमान है बेटियांँ
 घर में रखो प्यार से 
 सम्मान है बेटियांँ
 आंगन की तुलसी है
 देश की बेटियांँ
भावना और मातृत्व का
 संसार है बेटियांँ 
घर में रखो इज्जत से 
सम्मान है बेटियांँ
 

बेटियां हैं बेटियांँ। ।।2।।
इस धारा की बेटियांँ 
देश का गौरव
 अभिमान है बेटियांँ

          *रचना*
    चंद्रपाल राजभर 
आर्टिस्ट,लेखक,शिक्षक
 वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया

------------------------------------------------

कदम कदम दर चलना भैया
         (कविता गीत)
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - 
कदम कदम दर चलना भैया
 लोक जन से कहना भैया
 मेरा वतन है मेरी शान  ।।2।।
मेरा यह देश मेरी जान भैया।।2


मंजिल पर बढ़ते चलना 
चाहे हो कुछ भी करना 
कभी ना पीछे मुड़ना 
चाहे पड़े ही लड़ना

मंजिल तेरी है यह शाम  ।।2।।
मंजिल मेरी भी है शान भैया ।1।

कदम कदम दर चलना भैया
 लोक जन से कहना भैया
 मेरा वतन है मेरी शान ।।2।।
मेरा यह देश मेरी जान भैया।।2।।

सबके लिए भी करना 
संघर्ष से दिन रैना 
कोई भी ना हो संघ में 
फिर भी तू डटे रहना ।।1।।

बना देना बड़ा इतिहास  ।।2।।
तुझपे है मेरा ये विश्वास भैया।1।।

कदम कदम दर चलना भैया
 लोक जन से कहना भैया
 मेरा वतन है मेरी शान  ।।2।।
मेरा यह देश मेरी जान भैया।।2।।

       रचयिता 
चन्द्रपाल राजभर 
(आर्टिस्ट,लेखक,शिक्षक) 
वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया
मो-9721764379
----------------------------------------------@---

छोटी सी चिड़िया
           कविता गीत
----------------------------------
एक छोटी सी चिड़िया
 तिनके चुन-चुन लाती ।।2।।

कभी इधर से कभी उधर से 
फुदक-फुदक कर आती 

एक छोटी सी चिड़िया
 तिनके चुन-चुन लाती ।।2।।

डाली पर वह बैठकर 
आशियां अपना बनाती 

एक छोटी सी चिड़िया 
तिनके चुन-चुन लाती 

साज संवारती घर को अपने
 जैसे महल हजारी 

एक छोटी सी चिड़िया
 तिनके चुन-चुन लाती।।2।।

जाड़ा,गर्मी या हो बरखा 
कभी नहीं  घबडाती 

एक छोटी सी चिड़िया
 तिनके चुन-चुन लाती।।2।।

               रचयिता 
          चन्द्रपाल राजभर
( लेखक,शिक्षक,आर्टिस्ट )
वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया
मो-9721764379

--------------------------------------------
            पिता

जिंदगी में सफलता का सेहरा ना होता 
गर पिता का सर पर पहरा ना होता
पूरी दुनिया हो जाती बेगानी बेगानी 
अगर पिता का आशीर्वाद मिला ना होता

घर से दूर कभी शहर न होता
 घोड़ों की रफ्तार कभी चला न होता 
आसमा की बुलंदियों को छुआ न होता
अगर पिता का हाथ सर पर पडा न होता

कठिन सफर सरल ना होता 
कांटो सा पहर नरम ना होता
ठंडा था पानी गरम न होता 
गर पिता का हाथ सर पर ना होता

कांटो सा जीवन मधुबन ना होता 
जीवन था अंधेरा उजाला ना होता
खुली आंखों से कभी ये माना ना होता
पिता हैं परमेश्वर यह जाना ना होता 
गर पिता का हाथ सर पर पडा ना होता

पिता हैं परमेश्वर यह जाना ना होता


        रचना
 चंद्रपाल राजभर ( लेखक,आर्टिस्ट,शिक्षक)
वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिंतक इंडिया
-----------------------------------------------------

                   चिडिया
            कविता गीत

एक छोटी सी चिड़िया 
फुदक-फुदक कर आती ।।2।।

घर में मेरे चीं-चीं कर वो 
विखरे दाने खाती 

एक छोटी सी चिड़िया 
फुदक-फुदक कर आती ।।2।।

रोज नहाती टप में मेरे 
सब दिन पानी पीती

एक छोटी सी चिड़िया 
फुदक-फुदक कर आती ।।2।

मम्मी,पापा,दादा ,दादी 
करते उसकी रखवाली 

एक छोटी सी चिड़िया 
फुदक-फुदक कर आती ।।2।।


चह-चह करती घर में जब वो 
    लगता गाना गाती

एक छोटी सी चिड़िया 
फुदक-फुदक कर आती।।2।। 

        रचयिता
चन्द्रपाल राजभर 
(लेखक,शिक्षक,आर्टिस्ट )
वैज्ञानिकवादी समाजिक कला चिंतक इंडिया