ठोंकरे
कभी हार को खुद पर ऐतबार रखोउम्मीद के चिराग़ों पे सदा ही नज़र रखो।
वो ठोकरें जो देती हैं राहों में गिरने का डर
उन्हीं में ढूॅंढ कर आगे बढ़ने का ज़र रखो।
हर एक रात के बाद सवेरा ज़रूर आयेगा
अँधियारियों के बीच उजालों का घर रखो।
जो बात कह न पाओ, उसे कर्म में कहो
हुनर से बोलो, चुप रहकर भी जलवा उधर रखो।
चन्द्रपाल राजभर
2
वक़्त पर
ख़ुदा भी देता है हर इम्तिहाँ वक़्त पर
बदलती है किस्मत की दास्ताँ वक़्त पर।
उठा ले तू हिम्मत की इक मशअल आज ही
मिलेंगे सभी रास्ते रोशन यहाँ वक़्त पर।
न कर तू शिकायत अंधेरों से अब
सवेरा भी आता है हर शाम सा वक़्त पर।
जो बैठा रहा डर के साए में यूँ ही
वो चूका है हर बार की दौड़ में वक़्त पर।
हुनर गर तेरा सच्चा और नेक हो
तो खुद बोल उठती है ये ज़ुबाँ वक़्त पर।
तू मेहनत से रिश्ता बना ले अभी
कभी तो मिलेगा तुझे आसमाँ वक़्त पर।
कभी मत झुका हाल के सामने तू
कहाँ थमता है जोश का कारवाँ वक़्त पर।
चन्द्रपाल राजभर
3
वक्त के साथ
चल पड़ा हूँ मैं वक़्त के साथ अब
छोड़ दी है हर शिक़ायत की बात अब।
जो गिरा था कल, अब सम्भला हूँ मैं
धूल से उठी है मेरी ज़ज्बात अब।
वक़्त ने ही सीखा दिया ये हुनर
ज़ख़्म भी लगते हैं एक सौग़ात अब।
ठोकरें भी नहीं तोड़ पाई मुझे
सख़्तियाँ लगती हैं करामात अब।
जो गया वो बीतते लम्हों में था
जो बचे हैं, उनसे है हर बात अब।
आईना हूँ मैं भी अपनें हौंसले का
दिख रही है मुझमें नई ज़ज्बात अब।
चल पड़े हैं ख़्वाब लेकर आँखों में
होंठ चुप हैं, बोलता है हुनर अब।
4
मिलने चला
मैं ख़ुद से मिलने चला हूँ सफ़र में
छुपा हूँ कहीं मैं ही अपने असर में।
न चेहरों की भीड़ों में खोना है अब
न रहना है गिरवी किसी दर-ब-दर में।
मैं उठता रहा अपनी हर हार से
है शोला भी पलता मेरे ही जिगर में।
कभी वक़्त ने तो कभी ख्वाब ने
दिखाया मुझे मुझको ही इक नज़र में।
न पूछो के क्या खो गया इस क़दर
मिला हूँ मैं ख़ुद से उसी नुक़्तागर में।
मैं गिरता भी था तो ये लगता रहा
कोई ताक़त छुपी है मेरी ही नज़र में।
जो दुनिया ने ना दी, वो मैंने दिया
यक़ीं का दिया रौशनी के शहर में।
चन्द्रपाल राजभर
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