Wednesday, August 7, 2024

अभिलाषा तू नहीं गयी दिल से -संपादकीय आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

          अभिलाषा तू नहीं गयी दिल से 
मानव ह्रदय की गहराईयों में बसे कुछ सपने और इच्छाएँ कभी-कभी जीवन की वास्तविकताओं के सामने फीकी पड़ जाती हैं। इन्हीं में से एक अभिलाषा है, जो मनुष्य के ह्रदय में रह-रह कर उठती है, परन्तु परिस्थितियों के चलते धुंधली हो जाती है। जीवन की दौड़-धूप में हम अक्सर अपनी मूलभूत इच्छाओं और सपनों को भूल जाते हैं, परन्तु वे हमारे अवचेतन मन में सदा जीवित रहती हैं।

अभिलाषा, एक ऐसा शब्द है जिसमें असीम संभावनाएँ और अपेक्षाएँ छिपी हुई हैं। यह वह प्रेरक शक्ति है जो हमें हमारे लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। चाहे वह एक छोटे बच्चे की चॉकलेट पाने की अभिलाषा हो या फिर एक युवा का बड़े सपनों की ओर कदम बढ़ाने की, हर किसी की अभिलाषा अपने आप में विशेष और महत्त्वपूर्ण होती है। 

कभी-कभी परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं और हम अपने सपनों को साकार नहीं कर पाते। परंतु यह कहना कि वह अभिलाषा समाप्त हो गयी, यह सत्य नहीं होगा। वह हमारे दिल में कहीं न कहीं जीवित रहती है और हमें हमारे अतीत की याद दिलाती है। यह हमें यह भी बताती है कि जीवन में कितने संघर्ष और प्रयास करने के बावजूद भी कुछ अभिलाषाएँ पूरी नहीं हो पातीं। 

जीवन की यात्रा में कई मोड़ आते हैं, कुछ इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं, तो कुछ अधूरी रह जाती हैं। परंतु यह अधूरी इच्छाएँ भी हमारे व्यक्तित्व को गढ़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे हमें हमारे प्रयासों और संघर्षों की याद दिलाती हैं और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। 

हमारी अधूरी अभिलाषाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में असफलताएँ और निराशाएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी सफलताएँ। वे हमें धैर्य, सहनशीलता और आत्मविश्वास का पाठ पढ़ाती हैं। अधूरी अभिलाषाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि जीवन में हर चीज़ को पाने की चाहत में हमें अपने मौजूदा पलों की खूबसूरती को भी नहीं भूलना चाहिए। 

अभिलाषा चाहे पूरी हो या अधूरी, वह हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। वह हमें हमारे अतीत की याद दिलाती है और हमारे भविष्य की ओर मार्गदर्शन करती है। इसलिए, अभिलाषा को कभी भी दिल से निकालने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे जीवन की एक सुंदर सच्चाई के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

जीवन की दौड़ में अक्सर ऐसा होता है कि हम अपनी अभिलाषाओं को समाज, परिवार, और अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा देते हैं। कई बार यह देखा गया है कि हम अपने आस-पास के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में अपनी इच्छाओं और सपनों को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन दिल की गहराइयों में बसी अभिलाषाएँ कभी मरती नहीं, वे सदा जीवित रहती हैं, चाहे हम उन्हें पूरा कर पाएं या नहीं।

यह सच है कि सभी अभिलाषाएँ पूरी नहीं हो सकतीं, परंतु यह भी सच है कि ये अभिलाषाएँ ही हमें जीवित रखती हैं। वे हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने जीवन में कुछ अलग, कुछ नया करें। अभिलाषाएँ हमें न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। 

अभिलाषाओं का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे हमें हमारी असली पहचान से रूबरू कराती हैं। हम कौन हैं, क्या चाहते हैं, और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है, यह सब अभिलाषाओं के माध्यम से ही स्पष्ट होता है। जब हम अपनी अभिलाषाओं को पहचानते हैं और उनके प्रति ईमानदार रहते हैं, तब हम अपने जीवन में संतोष और खुशी महसूस करते हैं।

एक अन्य दृष्टिकोण से देखा जाए तो अभिलाषाओं का अधूरापन हमें यह सिखाता है कि जीवन में पूर्णता का कोई स्थान नहीं है। जीवन एक यात्रा है, जिसमें हर कदम पर हमें नई चीजें सीखने और समझने का मौका मिलता है। अधूरी अभिलाषाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि सफलता और असफलता दोनों ही जीवन के हिस्से हैं, और हमें इन दोनों को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।

कई बार हमारी अभिलाषाएँ समय के साथ बदल जाती हैं। जो सपने हमने बचपन में देखे थे, वे युवावस्था में बदल जाते हैं, और वयस्कता में हम नए सपने देखने लगते हैं। यह बदलाव जीवन का हिस्सा है और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। हमें अपनी पुरानी अभिलाषाओं को स्नेह और सम्मान के साथ याद रखना चाहिए और नई अभिलाषाओं के प्रति उत्साहित रहना चाहिए।

अभिलाषाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते रहना चाहिए। अभिलाषाएँ हमें यह भी याद दिलाती हैं कि हमारे अंदर असीम संभावनाएँ हैं और हमें अपनी क्षमताओं पर विश्वास रखना चाहिए।

अभिलाषाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। वे न केवल हमारे वर्तमान को आकार देती हैं, बल्कि हमारे भविष्य को भी दिशा देती हैं। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, और ये अभिलाषाएँ ही हमें उन परिस्थितियों से उबरने की शक्ति देती हैं। जब हम किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, तो यह हमारी अभिलाषाएँ ही हैं जो हमें मार्गदर्शन करती हैं और हमारी हिम्मत को बनाए रखती हैं।

अभिलाषाओं का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे हमें सपने देखने की क्षमता देती हैं। सपने ही वह बीज होते हैं जो हमारे जीवन में बड़े-बड़े वृक्ष बनकर खड़े होते हैं। जब हम किसी चीज की अभिलाषा करते हैं, तो हम उसके लिए मेहनत करने को तैयार रहते हैं। यह मेहनत ही हमें सफलता की ओर ले जाती है। 

सपनों को पूरा करने के लिए हमें दृढ़ निश्चय और धैर्य की आवश्यकता होती है। अभिलाषाएँ हमें यह सिखाती हैं कि धैर्य का महत्त्व क्या है। जीवन में कभी-कभी हमें लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, लेकिन यदि हमारी अभिलाषा सच्ची और मजबूत है, तो वह हमें हार नहीं मानने देती। वह हमें प्रेरित करती है कि हम अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहें, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।

इसके अलावा, अभिलाषाएँ हमें हमारे संबंधों के बारे में भी सिखाती हैं। जब हम किसी चीज की अभिलाषा करते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि हमें अपनी सफलता के लिए किस-किसका सहयोग चाहिए। यह हमारे रिश्तों को मजबूत बनाने में मदद करती है और हमें यह सिखाती है कि जीवन में सहयोग और समर्थन का कितना महत्त्व है।

अभिलाषाओं का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि वे हमें आत्मनिरीक्षण करने की क्षमता देती हैं। जब हम किसी चीज की अभिलाषा करते हैं और वह पूरी नहीं होती, तो हमें यह सोचने का मौका मिलता है कि हमसे कहाँ चूक हुई। यह आत्मनिरीक्षण हमें हमारी गलतियों से सीखने का अवसर देता है और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

अभिलाषाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि जीवन में कभी भी स्थिर नहीं रहना चाहिए। हमें हमेशा अपने लक्ष्यों को पुनः मूल्यांकन करना चाहिए और नई चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए। जीवन में संतोष और खुशी प्राप्त करने के लिए हमें अपनी अभिलाषाओं को साकार करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

अभिलाषाएँ हमारे जीवन की वह धरोहर हैं जो हमें जीवित रखती हैं। वे हमें हमारे अस्तित्व का अहसास दिलाती हैं और हमारे जीवन को एक नई दिशा देती हैं। चाहे अभिलाषाएँ पूरी हों या अधूरी, वे हमेशा हमारे दिल में एक खास जगह बनाए रखती हैं। इसलिए, हमें अपनी अभिलाषाओं को कभी मरने नहीं देना चाहिए और हमेशा उनके प्रति ईमानदार रहना चाहिए।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

No comments:

Post a Comment