Wednesday, July 23, 2025

जब सहयोग बन जाए ताना,तो आत्मनिर्भरता बन जाना है-आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

जब सहयोग बन जाए ताना,तो आत्मनिर्भरता बन जाना है-आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

कई बार जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब कोई व्यक्ति, विशेषकर एक कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ता या शिक्षक, अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए किसी प्रकार के सहयोग की आवश्यकता महसूस करता है। यह सहयोग आर्थिक भी हो सकता है, संसाधनों से जुड़ा हो सकता है या फिर मंच देने जैसा हो सकता है। प्रारंभ में यह सब बहुत सहज लगता है, लेकिन समय बीतने के साथ सहयोग देने वाला व्यक्ति उस मदद को एक ऐसा हथियार बना लेता है जिससे वह बार-बार उस व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुँचाता है। एक युवा चित्रकार की कल्पना कीजिए जिसने सामाजिक सरोकारों को आधार बनाकर चित्रों की एक प्रदर्शनी लगाने की योजना बनाई। संसाधनों की कमी थी, सो उसने कुछ परिचितों से आर्थिक सहयोग मांगा। प्रदर्शनी सफल रही, लोगों ने सराहा, लेकिन समय के साथ वहीं सहयोगदाता अलग-अलग मंचों पर यह बताने लगे कि "अगर हमने मदद नहीं की होती तो यह कुछ नहीं कर पाता।" धीरे-धीरे उस कलाकार की पहचान उसके हुनर से नहीं, बल्कि उसकी “मदद ली हुई है” वाली छवि से होने लगी। उसके आत्मसम्मान को गहरा आघात लगा। उस कलाकार ने अपने सभी कार्यों से अपना नाम हटाना शुरू कर दिया ताकि कोई उसकी कला को दया का परिणाम न समझे।यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं, बल्कि आज के समय की एक गहरी सामाजिक सच्चाई है। जब सहयोग को आत्मप्रशंसा का माध्यम बना लिया जाता है, जब मदद को एहसान की जंजीर में बदल दिया जाता है, तब वह सहयोग नहीं बल्कि बंधन बन जाता है। यही कारण है कि कुछ संवेदनशील लोग यह निर्णय ले लेते हैं कि वे जीवन में चाहे जितनी कठिनाई क्यों न हो, किसी से सहयोग नहीं लेंगे। वे संघर्ष करेंगे, कर्ज लेंगे, मेहनत करेंगे, लेकिन किसी के सामने झुकने या अपनी गरिमा गिरने से बेहतर समझते हैं कि अकेले चलें।समाज में सहयोग की भावना पवित्र होनी चाहिए, न कि दिखावे और राजनीतिक लाभ की वस्तु। अगर कोई मदद करता है तो वह यह समझकर करे कि वह एक प्रयास में सहभागी बन रहा है, न कि किसी की जिंदगी का निर्देशक बन रहा है। और अगर कोई मदद मांगता है, तो उसे यह सोचकर मांगे कि वह लौटाने की क्षमता और इच्छा दोनों रखता है।यह आवश्यक है कि हम इस चेतना को समाज में फैलाएं कि सहयोग देना महान कार्य है, लेकिन उसका दुरुपयोग कर किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाना उससे बड़ा अपराध है। और मदद मांगने वालों को भी चाहिए कि यदि संभव हो तो आत्मनिर्भर बनें, कर्ज लेकर धीरे-धीरे चुकता करें, लेकिन आत्मसम्मान को किसी और के हाथों न सौंपें। क्योंकि मदद लेना आसान है, पर बार-बार उसी मदद की याद दिलाना किसी का आत्मबल तोड़ सकता है।अतः जीवन का यही सार है — यदि सहयोग देना है तो निःस्वार्थ दो, और यदि लेना है तो सोच-समझकर लो वरना सहयोग देने वाले लोग आपके नाम पर राजनीति करके आपको हमेशा नीचे दिखाने की कोशिश करेंगे, और सहयोग सीमित समय के लिए लो। क्योंकि गरिमा से बड़ा कोई सहयोग नहीं होता।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

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