1
गज़ल:
इस दिल के आशियाने में, कोई सुकून आता तो है
दर्द भरे इस जहाँ में, कोई जुनून आता तो है।
हर ख्वाब टूटकर बिखर गया, बिन आवाज के
तूफान के बाद भी कोई, सुकून आता तो है।
बेवफ़ाई का घाव गहरा है, फिर भी देखो
इक मुस्कान होंठों पर, यूं ही सजता तो है।
वो जो पलकों पे अश्क छुपाए बैठे हैं
उनमें भी कभी कोई, फ़िज़ा सजाता तो है।
इस शहर के अंधेरों में, हम तन्हा रह गए
पर रौशनी का कोई कतरा, कभी चमकता तो है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
गज़ल:
मन की अभिलाषा बेवफा हो चली
हर खुशी से अब जुदा हो चली।
जिस गली में बसते थे अरमान
वो गली भी अब सजा हो चली।
दिल के अफसाने दबे रह गए
बात हर एक बेमजा हो चली।
अब तो बस आरज़ू है मेरी यही
कोई बेवफा ना हो गली में मेरी
यादों की राहों में तन्हाई है
हर खुशी अब रुसवा हो चली।
मन की अभिलाषा बेवफा हो चली
जैसे चाहत भी अब फना हो चली।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल:
तेरे वादों की चमक, कहीं खो सी गई है
दिल की हर ख्वाहिश अब,मर सी गई है।
आँखों में बसी थी जो तस्वीर तेरी कभी
वो भी अब धुंधली सी, दास्तां हो गई है।
ख़ुशियों की हर लहर अब दूर सी हो गई है
तन्हाइयों में हर तरफ़,सजा सी हो गई है।
कभी जिस दर्द ने हँसना सिखाया था हमें
वो तकलीफ भी अब,मेहरबां सी हो गई है।
इस दिल ने तो तुझसे मोहब्बत की थी कभ
अब वही मोहब्बत भी, बेवफ़ा सी हो गई है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
गज़ल:
तेरी याद की परछाई, अगर मिट जाये तो ठीक था
तेरे बिना ये दिल, हर पल मुस्कुरा जाए तो ठीक था
हर रात की तन्हाई से तेरा नाम भुलाना चाहता हूं
आँखों से ये आँसू, अगर बह जाए तो ठीक था
तेरी बेवफाई ने सबकुछ तबाह कर दिया मेरा
अब बेवफा की गद्दारी को ठुकराना ही ठीक था
किसी मोड़ पे मिलकर तुझे ये बता देते हम
तू है बेवफा और तुझे ठुकराना ही ठीक था
तेरी बेवफाई अब हमें हर रोज़ सताती है,
सुन बेवफा तुझसे दूर जाना है ठीक था
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
गज़ल:
तेरे ख्वाब की हकीकत,अगर जान पाते तो ठीक था
दिल की हर बात तुमसे, बयाँ कर पाते तो ठीक था
जो शिकवा है मुकद्दर से, उसे कह पाते तो ठीक था
अगर लफ़्ज़ों में उसको, सजा पाते तो ठीक था
तेरी यादों का सिलसिला कुछ यूं चल पड़ा,
इन आँसुओं को हम, छुपा पाते तो ठीक था
आज दर्द का दरिया भी पार कर लिया हमने,
पर किनारों पे खुद को,बचा पाते तो ठीक था
इस तन्हा सफर में तू बेवफा हो गया
अगर तुझको हम ठुकरा पाते तो ठीक था
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
गज़ल:
इस दिल के आशियाने में, कोई सुकून आता तो अच्छा होता
दर्द भरे इस जहाँ में, कोई जुनून आता तो अच्छा होता
हर ख्वाब टूटकर बिखर गया, बिन आवाज के
तूफान के बाद भी कोई, सुकून आता तो अच्छा होता
बेवफ़ाई का घाव गहरा है, फिर भी मगर
इक मुस्कान होंठों पर, यूं ही सज जाता तो अच्छा होता
वो जो पलकों पे अश्क छुपाए बैठे हैं अभी
उनमें भी आज कोई, फ़िज़ा बन जाता तो अच्छा होता
इस शहर के अंधेरों में, अब हम तन्हा रह गए
पर रौशनी का कोई कतरा,कभी चमक जाता तो अच्छा होता
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
गज़ल:
इस शहर की राह में अगर सुकून आता तो अच्छा होता
दिल का कोई कोना बस चैन पाता तो अच्छा होता
वक्त के हर मोड़ पर मिले सवालों के जवाब
गर कोई जवाब यहाँ हमें समझाता तो अच्छा होता
शाम की खामोशियाँ जब भी दिल को चीरतीं
कुछ न कुछ यह खामोशी हमें बताती तो अच्छा होता
इस जहाँ के हर शख्स ने ख्वाबों को तोड़ा मेरे
फिर भी कोई ख्वाब नया आँख सजाता तो अच्छा होता
रात की सियाही में दिल की तन्हाई जब बढ़े
वो उदासी का मंजर हमें भी उबार जाता तो अच्छा होता
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
ग़ज़ल:
दिल की हर आरज़ू, अब अधूरी हो गई
तेरी यादों में ये रातें, पूरी हो गई
वो पल जो कभी साथ गुज़ारे थे हमने
अब उनकी हर खुशी, अधूरी हो गई
तूने जो कहा था, वो वादा अधूरा ही रहा
उस वादे की सच्चाई, पूरी हो गई
हर लम्हे में तेरा एहसास था कभी
अब वही ख़ामोशी, शिकवा हो गई
कभी सोचा था तू लौट आएगी फिर
पर अब उम्मीद भी, बेवजह हो गई
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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