Friday, January 31, 2025

ग़ज़ल 62 टाईप

स्वार्थ में डूबा देश

स्वार्थ में डूबा देश, वफ़ा ये क्या जानें 
आज बिके जज़्बात, दुआ ये क्या जानें।

हर किसी ने पहना, मुखौटा नया-नया
अब लोग झूॅंठ बोले, सज़ा ये क्या जानें।

दिल में चुभी हैं कीलें, रिश्ते भी रो पड़े
झूॅंठ की इस नगरी में, वफ़ा ये क्या जानें।

ख़ून से सींची थी, जो हक़ की बस्तियाॅं
अब वो उजड़ गईं, सबा ये क्या जानें।

बेचकर इज़्ज़त को, इश्क़ किया कहते
प्यार का सौदा है ए , अदा ये क्या जानें।

सच का दिया बुझा, फ़रेब के ऑंधियों में
रौशनी की क़ीमत क्या, हवा ये क्या जानें।

क़त्ल हो उम्मीदें, फिर भी सभी ख़ामोश 
जख़्म की गहराई क्या, दवा ये क्या जानें।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
वफ़ा क्या जानें

स्वार्थ में डूबा देश, वफ़ा ये क्या जानें 
अब कोई नहीं है अपना, वफ़ा ये क्या जानें।

रि़श्ते भी बिकते हैं, दौलत की इस गली में 
प्यार की क़ीमत क्या, देश ये क्या जानें।

सच बोलने वालों का, कटता यहाॅं गला है 
झूॅंठ की होती जय-जयकार , ज़माना क्या जानें।

मंदिर-मस्जिद की अब, बातें हैं सब जगह
ख़ुदा का मज़हब कोई नहीं,इंसा ये क्या जानें 

सपने लुटे रातों में, अपनों के हाथ से
ग़म के परिंदों की सदा क्या, अदा ये क्या जानें।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
मतलब की भीड

मतलब की इस भीड़ में, वफ़ा कौन समझेगा 
हर कोई सौदागर है, ख़ुदा को कौन समझेगा।

मंज़र थे जो अपने, अजनबी हो गए
अब दर्द की लय में, सदा कौन समझेगा।

सच बोलने वालों की होती है हार यहाॅं 
अब जीत का असली, मज़ा कौन समझेगा।

सपनों की क़ीमत भी, लगती है यहाँ
बेचेंगे जज़्बात यहाॅं, दया कौन समझेगा।

जिनको जलाना है, रोशनी के लिए
उन चिराग़ों की अब, जुबाॅं कौन समझेगा।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
सच कौन समझेगा 

अब कौन यहाॅं दिल की सदा समझेगा
हर शख़्स बेजान है ,ख़ुदा कौन समझेगा।

बिकते हुए देखे हैं हमनें, रि़श्तों के चेहरे
अब प्यार की क़ीमत यहाॅं कौन समझेगा।

सच बोलने वालों की क़ीमत नहीं है यहाॅं
झूॅंठ पुलिन्दा यहाॅं दुनिया सच समझेगा।

ॲंधों की बस्ती में आईना बेंचने वालों 
तुम सच हो तुम्हारी सच्चाई कौन समझेगा 

रिश्तों की महफ़िल में अब सौदे ही होंगे
दुनियाॅं गुमराह है सच कौन समझेगा 
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5
मनानें नहीं आऊॅंगा 

तुम रूठ गए तो क्या समझते
मैं तुम्हें मनाने आऊॅंगा?

जो दर्द दिया तुमने उसे भूल जाऊॅं
फिर वही ज़ख़्म दोहराने आऊॅंगा 

जो दिल से निकल गया, उसे बुलायेंगे नहीं 
फ़िर से वही गलती दोहराने नहीं आऊॅंगा 

तुमने ही ठुकराया था मुझको याद रखना 
अब तुम्हें दिल में कभी नहीं बैठाऊॅंगा 

जिस राह पे छोड़ दिया था अकेला मुझे 
फ़िर उस राह पर क़दम बढ़ाने नहीं आऊॅंगा ।।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
तुम्हें मनाने आऊॅंगा।

अब मैं वो पहला इंसान नहीं
जो तुम्हें मनाने आऊॅंगा।

अब दिल में पहले सा दर्द नहीं
जो ऑंसू बहाने आऊॅंगा।

वक़्त बदल गया, सोच बदल गई 
अब तुम्हें समझाने नहीं आऊॅंगा?

जो ख़्वाब थे, ऱाख में ढल गए
उन्हें फ़िर से जगा़ने नहीं आऊॅंगा?

तुम्हीं ने छोड़ा था रा़हों में मुझे 
अब कभी तुम्हें बुलाने नहीं आऊॅंगा ।।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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7
लौट के आने वाला नहीं 

अब लौट के आने वाला नहीं
मैं ख़ुद को भुलाने वाला नहीं।

जो बीत गया, बस बीत गया
मैं फ़िर से ज़ताने वाला नहीं।

जो जख़्म मिले, सौगात समझी
मैं दर्द बढ़ाने वाला नहीं।

तू सोच रहा है मैं हार गया
मैं ख़ुद को गिराने वाला नहीं।

जो राह ने बदला, बदल गया
मैं पलट के जाने वाला नहीं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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8
इंतज़ार नहीं करूॅंगा

अब तेरा इंतज़ार नहीं करूॅंगा
मैं फ़िर से ये प्यार नहीं करूॅंगा।

जो दर्द दिए थे, लौटा रहा हूॅं 
मैं फ़िर से उधार नहीं करूॅंगा।

जो बीत गया, वो गुज़रने दो अब
मैं उसको शुमार नहीं करूॅंगा।

तू भूल गया, तो मैं भी भूल गया
मैं तुझसे सवाल नहीं करूॅंगा।

जो वक़्त ने सीखा दिया मुझको
मैं फ़िर वो ग़ुज़ार नहीं करूॅंगा।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

Monday, January 27, 2025

समाज आपका साथ कभी नहीं देगा बल्कि आपकी प्रगति में आपका विरोध ही करेगा । आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

समाज की संरचना एक ऐसा ढांचा है, जो प्रायः परंपराओं, रूढ़ियों और सामूहिक सोच के आधार पर खड़ा होता है। जब कोई व्यक्ति इस ढांचे से परे सोचने की कोशिश करता है या अपनी प्रगति का रास्ता चुनता है, तो समाज उसे रोकने का प्रयास करता है। यह विरोध केवल बाहरी नहीं होता; यह मानसिक दबाव, आलोचना और तिरस्कार के रूप में भी सामने आता है।

हर महान व्यक्ति जिसने इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया, उसे समाज के विरोध का सामना करना पड़ा। चाहे वह वैज्ञानिक हो, कलाकार हो, लेखक हो, या समाज सुधारक—हर किसी के रास्ते में बाधाएँ खड़ी की गईं। इसका कारण यह है कि समाज हमेशा अपनी सीमाओं में कैद रहना चाहता है। जब कोई उन सीमाओं को चुनौती देता है, तो वह अपने भीतर भय और असुरक्षा महसूस करता है। यही असुरक्षा समाज के विरोध के रूप में प्रकट होती है।

आपकी प्रगति को रोकने के पीछे समाज का वास्तविक उद्देश्य आपकी असफलता नहीं, बल्कि अपनी स्थिरता को बनाए रखना होता है। लोग दूसरों की उड़ान को देख अपनी क्षमताओं पर सवाल उठाने लगते हैं। उनके लिए यह अधिक आसान होता है कि वे आपको गिराने की कोशिश करें, बजाय इसके कि वे अपनी सोच को विस्तृत करें।

इस परिस्थिति में, आपको यह समझना होगा कि आपकी यात्रा अकेले ही तय होगी। समाज के विरोध को अपने कदमों की गति कम करने का कारण न बनने दें। हर बार जब लोग आपका विरोध करें, तो इसे अपने सही रास्ते पर होने का संकेत मानें। विरोध वही करता है जिसे आपकी उन्नति से डर हो।

प्रेरणा का सबसे बड़ा स्रोत स्वयं आपके भीतर है। जब आप अपनी क्षमताओं को पहचानते हैं और अपने सपनों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं, तो समाज का विरोध आपके लिए केवल एक और चुनौती बनकर रह जाता है। हर उस आवाज को अनसुना करें जो आपको रोकने की कोशिश करे। आपके कर्म और आपकी सफलता उन सभी सवालों का उत्तर होंगे।

याद रखें, परिवर्तन हमेशा अकेले शुरू होता है। आप अपनी यात्रा के नायक हैं। समाज को बदलने का काम आपका नहीं, बल्कि समय का है। आपको सिर्फ अपने लक्ष्यों पर केंद्रित रहना है। आपका संघर्ष, आपकी मेहनत और आपकी उपलब्धियां समाज को धीरे-धीरे आपकी ओर देखने और आपकी कहानी से प्रेरित होने पर मजबूर करेंगी।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Monday, January 20, 2025

ग़ज़ल एल्बम 61 टाईप

वो बातें, वो रातें, वो नग़्मे सुहानें
दिलों में बसे हैं ये मीठे फसानें।

ना छुप-छुप के देखो, यूॅं ऑंखें चुराकर
जो कहना है कह दो, नज़रें मिलाकर।

तेरी मुस्कुराहटें, ये चाॅंदनी सी प्यारी
तेरे संग सजती हैं, ये जन्नतें हमारी 

तुम्हारी वफ़ा ने, दिया है सहारा
जुबाॅं पर बसा है, तुम्हारा नज़ारा।

चलो फिर से बाॅंधें मोहब्बत बन्धन
सजा दें ये मस्तकें, ललाटे ये चन्दन ।