Thursday, June 19, 2025

ग़ज़ल भाग 3

 हंसते रहो 
1
राहों में कांटे बिछे हों, चलते रहो
दिल में हो जज़्बा जला के, चलते रहो।

थक जाओ फिर भी मुस्कुराना न छोड़ो
दर्द की चादर ओढ़ के, हँसते रहो।

हर ठोकर इक सबक देती है दोस्त
गिरकर भी सपनों को सजाते रहो।

साया न हो जब ज़िन्दगी की डगर में
अपने ही हौसलों से सपने जगाते रहो।

अंधेरों से लड़ना है तो डर कैसा?
दीया बनो, औरों को सजाते रहो।

जो भी कहे "तुमसे नहीं होगा कुछ"
उनको भी कामयाबी अपनी दिखाते रहो।

संघर्ष ही जीवन का है असली रूप है 
हर हाल में खुद को सँवारते रहो।
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