Tuesday, May 6, 2025

मानवता भारत से छीड होती जा रही है

मेरे देश से मानवता का होता पतन - एक चिंताजनक स्थिति -                     आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

 मेरे देश से मानवता का होता पतंग 
कहते हैं  कि भारत देश मेरा सोने कुछ चिड़िया हुआ करता था यहां मान सम्मान मानवता की नदियां बहा करती थी यहां चोट किसी और को लगती थी और दर्द किसी और को होता था लेकिन आज भारत जहां कदम दर कदम प्रगति के रास्तों पर आगे बढ़ रहा है वहीं अपने देश से मानवता भरी सम्वेदना खोता जा रहा है  हमारी मानवता कहीं पीछे छूट गयी है। आए दिन समाचार पत्रों और टेलीविजन पर हिंसा, असहिष्णुता,  मानव  तस्करी, बलात्कार, बेवफाई,धोखा, खाकर टूटता परिवार की ख़बरें अक्सर देखने सुनने पढ़ने को मिल जाती है  ये घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या वाकई हम एक सभ्य समाज की ओर बढ़ रहे हैं या फिर कहीं मानवता के मूल्यों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
आज भारत में जातिवाद, धर्मवाद,भेदभाव, धर्म के नाम पर हिंसा, और महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती घटनाओं ने हमारे समाज की सच्चाई को उजागर किया है। यह स्थिति न केवल हमारी सामाजिक संरचना को कमजोर करती है, बल्कि हमारे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी ठेस पहुंचाती है।
एक समय था जब भारत अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता था। यहाँ विभिन्न धर्म, जाति और संस्कृतियों के लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते थे। लेकिन आज, यह सहिष्णुता और भाईचारे की भावना कमजोर पड़ती जा रही है। यह चिंता का विषय है कि सामाजिक और धार्मिक विभाजन की खाई लगातार चौड़ी हो रही है।

इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए हमें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, हमें शिक्षा प्रणाली में सुधार करना होगा और जन जागरूकता फैलानी होगी ताकि युवा पीढ़ी को नैतिकता और सहिष्णुता के मूल्यों की जानकारी मिल सके। इसके अलावा, हमें समय-समय पर कानून व्यवस्था को और सुदृढ़ करना होगा ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या भेदभाव को सख्ती से रोका जा सके।
मीडिया और समाज के प्रभावशाली वर्गों को भी अपनी भूमिका समझनी होगी। उन्हें ऐसी खबरें और कार्यक्रम प्रस्तुत करने चाहिए जो समाज में सकारात्मकता और मानवता का संदेश फैलाएं। हम सभी को मिलकर यह प्रयास करना होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ी एक सहिष्णु, समृद्ध और मानवता से परिपूर्ण समाज में जी सके।

आखिरकार, भारत की आत्मा उसकी मानवता में ही बसती है। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हम एक महान सभ्यता के वंशज हैं, जिसमें प्रेम, सहिष्णुता, और मानवता का हमेशा सम्मान किया गया है। हमें अपनी इस धरोहर को बचाए रखना है और इसे और भी मजबूत बनाना है।
अगर हम सचमुच एक विकसित और सभ्य समाज बनाना चाहते हैं, तो हमें अपनी मानवता को पुनः स्थापित करना होगा। हमें याद रखना होगा कि सच्ची प्रगति केवल तकनीकी या आर्थिक विकास में नहीं, बल्कि हमारे नैतिक और मानवीय मूल्यों में निहित है। केवल तभी हम एक सशक्त और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकेंगे।

समाज का हर सदस्य इस चुनौती का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, करुणा और आदर का भाव रखना चाहिए। हमारे व्यवहार में न केवल हमारे परिवार और मित्रों के प्रति, बल्कि उन लोगों के प्रति भी जिनसे हम शायद कभी मिले नहीं हैं, एक सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता है। 

शिक्षा प्रणाली में नैतिकता, सहिष्णुता और मानवता के मूल्य शामिल किए जाने चाहिए। विद्यार्थियों को यह सिखाया जाना चाहिए कि समाज में सभी का सम्मान कैसे करें और कैसे एक समृद्ध और सहिष्णु समाज का निर्माण करें। इसके अलावा, सामाजिक मीडिया और अन्य प्लेटफार्म पर जागरूकता अभियानों का आयोजन करना चाहिए ताकि लोग मानवता के महत्व को समझ सकें।

सरकार को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। कानून व्यवस्था को और सुदृढ़ करना होगा ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या भेदभाव को सख्ती से रोका जा सके। इसके अलावा, ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए जो समाज में शांति और सद्भावना को प्रोत्साहित करें।

आर्थिक और सामाजिक नीतियों में सुधार करके भी समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। बेरोजगारी, गरीबी और अन्य सामाजिक समस्याओं का समाधान करके हम एक न्यायसंगत और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं। 

आधुनिक समाज में कुछ गहरी चुनौतियाँ भी उभर रही हैं। इनमें से दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं स्वार्थीपन और एकाकीपन। यह देखा जा रहा है कि लोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए दूसरों के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं, और इस स्वार्थीपन के चलते समाज में एकाकीपन का अनुभव भी बढ़ता जा रहा है। यह चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि एक स्वस्थ और संतुलित समाज में सामूहिकता और सहयोग का महत्व सर्वोपरि है।

स्वार्थीपन, अर्थात् आत्म-केंद्रितता और केवल अपनी ही भलाई की चिंता करना, समाज के विभिन्न पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जब लोग अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं, तो सामूहिकता और सहयोग की भावना कमजोर हो जाती है। इस प्रवृत्ति का परिणाम है कि लोग अपने परिवार, दोस्तों, और समुदाय से दूर हो जाते हैं। समाज में एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना घटती जा रही है, जिससे सामाजिक संबंध कमजोर हो रहे हैं।
स्वार्थीपन के कारण लोग न केवल दूसरों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं, बल्कि वे अपने नैतिक और सामाजिक दायित्वों को भी भूल जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि समाज में असमानता, अन्याय, और हिंसा की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। आर्थिक और सामाजिक असमानता भी इसी स्वार्थीपन का परिणाम है, जहाँ कुछ लोग अपनी सुविधाओं और सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए दूसरों का शोषण करते हैं।

एकाकीपन के कारण लोग अवसाद, चिंता, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो सकते हैं। एकाकीपन न केवल व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि इससे उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। समाज में एक दूसरे के साथ संबंध और सहयोग की भावना कमजोर पड़ने से लोगों की जीवन संतुष्टि और समग्र खुशहाली भी घटती जा रही है।

इसके अलावा, हमें सामुदायिक गतिविधियों और सामाजिक संगठनों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि लोग एक दूसरे के साथ मिल-जुलकर काम कर सकें और अपने सामाजिक संबंधों को मजबूत बना सकें। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, सामुदायिक सेवाओं में भाग लेना, और सामाजिक आयोजनों में सक्रिय रहना एकाकीपन को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

स्वार्थीपन को कम करने के लिए सहानुभूति और करुणा के मूल्यों को बढ़ावा देना आवश्यक है। जब लोग एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और करुणा का भाव रखेंगे, तो वे अपने स्वार्थ को त्याग कर समाज के कल्याण के लिए काम करेंगे। हमें यह समझना होगा कि हमारी खुशहाली और संतुष्टि दूसरों की खुशहाली और संतुष्टि से जुड़ी हुई है।

लास्ट में हम यही कहना चाहते हैं कि सभी को मिलकर यह प्रयास करना होगा कि हमारी मानवता पुनः स्थापित हो सके। केवल तभी हम एक सशक्त और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकेंगे। हमें यह याद रखना होगा कि सच्ची प्रगति केवल तकनीकी या आर्थिक विकास में नहीं, बल्कि हमारे नैतिक और मानवीय मूल्यों में निहित है। एकजुट होकर, हम मानवता को पुनः जीवित कर सकते हैं और भारत को एक बेहतर भविष्य दे सकते हैं।
स्वार्थीपन और एकाकीपन की समस्याएँ आधुनिक समाज की बड़ी चुनौतियाँ हैं। इनसे निपटने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा और अपने नैतिक और सामाजिक मूल्यों को पुनः स्थापित करना होगा। सहानुभूति, करुणा, और सहयोग की भावना को बढ़ावा देकर हम एक स्वस्थ, संतुलित, और खुशहाल समाज का निर्माण कर सकते हैं। यही हमारी सच्ची प्रगति होगी, और यही हमें एक सशक्त और समृद्ध भविष्य की ओर ले जाएगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक-SWA MUMBAI 

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