Tuesday, May 6, 2025

ग़ज़ल 63

1
ग़ज़ल 
इज़हार 

यूँ ख्वाबों में हर शाम क़यामत को देखते हैं
कभी खुदा को, कभी नज़ाकत को देखते हैं

वो आए जब भी करीब, चमन महकता है
कभी गुलों को तो, कभी बहार को देखते हैं

नज़र लगे न कहीं उनके हर ख़्याल को
हम उनकी सोच में हर इकरार को देखते हैं

तेरे ख़्याल से सजी है ये जिंदगी मेरी
हर इक सिफ़र में तेरे संसार को देखते हैं

अब हर सवाल का जवाब उनकी आँखें हैं
हम उनके दिल में छुपे इज़हार को देखते हैं

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल 
शाम
यूँ दर्द में हर शाम मोहब्बत को देखते हैं
कभी ख़ुदा को, कभी हकीक़त को देखते हैं

वो जब भी आए तो फ़िज़ा बदल जाती है
कभी ख़ुशबू को, कभी बरसात को देखते हैं

नज़र चुरा न सके उनसे ये दिल-ए-दीवाना
कभी निगाहों में, कभी ज़ज्बात को देखते हैं

तेरे ख़्याल से सज़ा है हर कोना दिल का
कभी उजाले को, कभी बरक़त को देखते हैं

अब हर ख़्वाब का चेहरा उन्हीं सा लगता है
हम उनके दिल में छुपी क़ुर्बत को देखते
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल 

संग
यूँ अश्कों में हर दर्द का रंग देख लेते हैं
कभी ख़ामोशी, कभी जंग देख लेते हैं

वो जब भी आते हैं, ख़ुश्बू-सी छा जाती है
कभी लफ़्ज़ों को तो, कभी नैनों को देख लेते हैं

नज़र को उनका पता मिल ही जाता है
कभी ख़्वाबों को तो, कभी ढंग देख लेते हैं

तेरे फ़साने में छुपी हैं मेरी दास्तानें
कभी कहानी, कभी प्रसंग देख लेते हैं

अब हर गली में तेरे ही निशान मिलते हैं
हम ज़हाॅं जाएँ, वही संग देख लेते

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
ग़ज़ल 
सफ़र 
सफ़र में हर क़दम बहार को देखते हैं
कभी मंज़िल को, कभी प्यार को देखते हैं

वो जो छू जाए तो रुह महक उठती है
कभी हाथों को, कभी सार को देखते हैं

नज़र झुकी हुई हर राज़ कह देती है
कभी लफ़्ज़ों को, कभी इज़हार को देखते हैं

तेरी यादों का ये ज़ुनून कैसा है
कभी ख़्वाबों को, कभी आग़ाज़ को देखते हैं

अब हर सितम को मुस्कान में बदलते हैं
कभी ॲंधेरों को, कभी उजाले को देखते हैं

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5
ग़ज़ल 
वकार 
चुप रहकर भी हम इज़हार को देखते हैं
कभी दिल को, कभी रफ़्तार को देखते हैं

वो पास आकर भी कुछ दूर-दूर रहते हैं
कभी चाहत को, कभी इनकार को देखते हैं

हर दर्द ने एक नया सबक सिखाया है मुझे
कभी हालात को, कभी अक्सार को देखते हैं

तेरी हँसी में छुपी हैं सारी दुनिया मेरी
कभी ख़ुशियों को, कभी प्यार को देखते हैं

अब हर लम्हा तेरा ही नाम लेता हैं 
हम अपनी रूह में तेरे वकार को देखते हैं
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
ग़ज़ल 
तेरा ख़याल 
हर लम्हा अब तेरा ख़्याल आता है
कभी सुकून, कभी सवाल आता है

वो जो हँसी में छुपा कर दर्द दे गए
कभी बवाल , कभी मलाल आता है

चले गए जो हमें तनहा छोड़कर
कभी वो रात, कभी गुलाल आता है

तेरी गली में भटकता हूँ हर घड़ी मैं 
कभी किनारा, कभी मझधार आता है

अब हर ख़ुशी भी अधूरी लगती है
कभी फ़रेब, कभी क़माल आता है
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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7
ग़ज़ल 
इंतज़ार 
तुमसे मिलकर भी जो न पाया, वो तलाश अभी बाक़ी है
क्यों हर बात पर तुम मुझसे सवाल करते हो, वो हक़ीक़त अभी बाक़ी है।

वो मोहब्बत जो कभी जज़्बातों में रंगी थी कभी
अब क्यों उन यादों पे तुम सवाल करते हो, वो ग़म अभी बाकी है।

दिल के सन्नाटे में जो तेरा नाम की गूॅंजता था कभी
अब क्यों उस ख़ामोशी पर तुम सवाल करते हो, वो ख़्वाब अभी बाक़ी है।

तेरे बिना जो खो गया था, वो अपना एक सपना था
अब क्यों उन अधूरे ख़्वाब पर तुम सवाल करते हो, वो इंतज़ार अभी बाक़ी है।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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8
ग़ज़ल 
जाने वालों को 
जाने वालों को कौन रोक पाया है जनाब
फिर भी हम उम्मीदें छोड़ नहीं पाते जनाब।

कभी जो पास थे, अब दूर हो गए हैं 
फिर भी दिल में उनका ख़्याल रहते हैं जनाब।

रातों को उनकी यादों के साए में रहते हैं 
हम अकेले ही रहते हैं फिर भी वो साथ रहते हैं जनाब।

वो जो चले गए, उनके बिना जीना कैसा
वो आज भी बसते हैं ख़्वाबों ख़्यालों में जनाब

अब तो उनके शहर में ही एक हसरत हो गई है
जाने वालों को कौन समझ पाया है जनाब।।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

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