Monday, October 28, 2024

गजल एल्बम 23 टाईप

1
ग़ज़ल
ऐ वक्त तू बता 

ऐ वक़्त तू ही बता ये क्या हो रहा है
हर लम्हा दर्द से मेरा वास्ता हो रहा है।

खुशियों का कोई मौसम था वो गुज़र गया
अब हर पल ग़मों का नया सिलसिला हो रहा है।

हसरतें रेत सी यूँ फिसलती रहीं हाथ से
सपनों का एक-एक कर सामना हो रहा है।

जिनसे थी उम्मीदें, वही राह में छोड़ गए
अपने ही अपनों से यूँ बेवफ़ा हो रहा है।

बचपन की मासूमियत अब ढूँढें कहाँ
वक़्त के साथ सब कुछ जुदा हो रहा है।

एहसासों का क्या हाल कहें तुझसे 'हम'
दिल का हर ज़ख़्म बस ताज़ा हो रहा है।

गजल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल
ऐ क्या हो रहा है 

ऐ वक़्त तू ही बता ये क्या हो रहा है
हर साया अब अजनबी सा क्यों हो रहा है।

चाहत की राहों में थी जो रोशनी कभी
अब हर तरफ़ एक अंधेरा सा हो रहा है।

जिन्हें माना था हमने अपना हर ख़्वाब
वो बेवजह हमसे खफ़ा क्यों हो रहा है।

अरमानों का गुलशन खिला था जो कभी
अब दर्द का मंज़र वहाँ क्यों हो रहा है।

थी जिनसे राहतें, वो दूरियाँ बढ़ा गए
हर रिश्ता अब बेअसर सा क्यों हो रहा है।

एहसासों की सरहदें टूटती हैं 'हम' पर
हर ख़ुशी से दिल तन्हा क्यों हो रहा है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल
ये साजिशें क्यों हैं

ऐ वक़्त तू ही बता ये साज़िशें क्यों हैं
हर अपने की बातों में खामोशियाँ क्यों हैं।

तूफानों की धड़कन में आग सी क्यूँ है
चुप रहने वालों की आँखें भी नम क्यों हैं।

कल तक जो हमसफ़र थे, अब अजनबी से हैं,
रिश्तों की बुनियाद में दरारें क्यों हैं।

खुशियों के सब लम्हे धुंधला से गए हैं
आँखों में अब दर्द की परछाइयाँ क्यों हैं।

वो राहें जिनमें उम्मीदें बोई थीं कभी,
आज उनमें खारे समंदर की लहरें क्यों हैं।

खामोश लफ़्ज़ों में 'हम' रोते हैं हर रोज़
अपने ही ख्वाबों में वीरानियाँ क्यों हैं।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
ग़ज़ल

यूँ बेबसी का आलम क्यों छा रहा है
हर ख़्वाब टूट कर बिखरता जा रहा है।

कल तक जो लफ़्ज़ों में मिठास थी
आज हर एक लफ़्ज़ खारा सा हो रहा है।

जिन राहों पे चलने का इरादा था कभी
अब उन राहों पे अंधेरा सा क्यों छा रहा है।

दिल में बसी थीं जो प्यारी यादें कभी
वो भी अब धीरे-धीरे धुंधला रहा है।

हर उम्मीद की लौ क्यों बुझता जा रहा है
जिंदगी की राहें वीरान होता जा रहा है।

‘हम’ ने सोचा था मिलेगी राहत यहाँ
पर हर तरफ़ बस तन्हाई घेरता जा रहा है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5

ग़ज़ल
मिजाज बदला जा रहा है 

हर मोड़ पर क्यों ये सवाल आ रहा है
जिंदगी का मिज़ाज बदलता जा रहा है।

खुशियों के थे जहाँ गुल खिले कभी
अब वही गुलशन वीरान हो रहा है।

वो बातें जो सुकून देती थीं दिल को
अब हर जुमला अजनबी लग रहा है।

कभी चहकते थे जो रिश्तों की बाग़ में
उन लम्हों पर अब सन्नाटा छा रहा है।

दिल से जुड़ी हर उम्मीद बिखर सी गई
हर चाहत का सफर अधूरा जा रहा है।

ये दौर भी अजीब है, 'हम' समझ न पाए
हर हँसी के पीछे दर्द छिपा जा रहा है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
ग़ज़ल
हर शाम ढलकर सवाल बनती जा रही है

हर शाम ढलकर सवाल बनती जा रही है
जिंदगी की राह मुश्किल होती जा रही है।

दिल में था कभी जो सुकून का बसेरा
अब उसी दिल में बेचैनी पनपती जा रही है।

वो बातें जो कभी रंगीन थीं ख्वाबों में
अब हर याद धुंधली सी लगती जा रही है।

हर रास्ते पे ख़ुशियों के निशां ढूँढ़ते हैं
पर वो खुशियाँ भी दूर होती जा रही हैं।

कल तक थे जो अपने, वो आज अजनबी हैं
हर रिश्ता मुझसे कटा-कटा सा जा रहा है।

‘हम’ ने चाहा था साथ चलेगी जिंदगी
पर हर कदम पे अकेलापन बढ़ता जा रहा है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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7
ग़ज़ल
हर सुबह दुबली नजर आ रही है 

हर सुबह क्यों अब धुंधली नज़र आ रही है
रौशनी में भी जैसे रात उतर आ रही है।

जो हँसी थी कभी लबों पर सजी हुई
अब वही खामोशी में सिमटती जा रही है।

कल तक थी उम्मीद की रोशनी साथ मेरे
आज हर चाहत बेजान सी लग रही है।

वो जो अपने थे, अब ख़ामोश खड़े हैं
हर चेहरे पर अजनबीपन उभर आ रही है।

दिल के अरमान भी खामोश हो चले
जिंदगी का सफर थकन में बदलती जा रही है।

‘हम’ तो चाहते थे एक हसीन सफर
पर हर मोड़ पे मायूसी बढ़ती जा रही है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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8

ग़ज़ल

फिर से कोई ख़्वाब बिखरता जा रहा है
हर लम्हा मेरी हदों से गुजरता जा रहा है।

चाहा था दर्द से राहत मिलेगी कभी
पर हर जख़्म गहरा उभरता जा रहा है।

वो जो अपने थे, अब दूर क्यों खड़े हैं
हर रिश्ता बेमानी सा लगता जा रहा है।

कल तक जो उम्मीदों का घर बना था
अब वो घर वीरान सा लगता जा रहा है।

सोचा था सुकून मिलेगा सफर के दरमियाँ
पर ये सफर भी अब बोझिल होता जा रहा है।

‘हम’ ने थामा था जिन लम्हों को अपन
वो भी अब धुंधला के रुख़सत होता जा रहा है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 



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