Tuesday, October 29, 2024

गजल एल्बम 31 (मोनालिसा) टाईप


1
गजल
मोनालिसा 

वो मुस्कान में गहराई लिए बैठी है
हर राज़ की परछाई लिए बैठी है।

जैसे पत्थर में कोई जान बस गई हो
वो एक दिल की सच्चाई लिए बैठी है।

नज़रों का जादू, अदाओं का खेल
खुद में हर इक अच्छाई लिए बैठी है।

फनकार की मेहनत रंग लाई है यू
वो चेहरे पे वो रानाई लिए बैठी है।

मुस्कुराहट की चुप्पी में गूंजता सवाल
ज़माने की गवाही लिए बैठी है।

वो देखेगी कब तक यूँ सबको खामोश
नज़रों में रहनुमाई लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
गजल
मोनालिसा की खामोश मोहब्बत

ख़ामोशी में एक अदा लिए बैठी है
होंठों पे छुपी सदा लिए बैठी है।

निगाहों में जैसे कोई राज़ हो बसा
हर शख्स की दुआ लिए बैठी है।

उसके चेहरे की झलक में जादू सा है
जो दिलों की वफा लिए बैठी है।

वक़्त भी ठहर जाए उसकी तस्वीर में
वो सदियों की वफ़ा लिए बैठी है।

हसीं है मगर ग़म का एहसास लिए
वो अजब इक दर्द-ए-वफा लिए बैठी है।

मुस्कुराहट के पीछे की गहराई को देख
जैसे यादों की रिवायत लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
गजल
मोनालिसा का साया

वो तस्वीर में ज़िंदगी लिए बैठी है
ख़ामोशी में हर खुशी लिए बैठी है।

नज़र झुका कर मुस्कुराई यूँ वो
जैसे कोई बेख़ुदी लिए बैठी है।

हर रंग में इक मायूसी बसी है
दिल की अनकही बात लिए बैठी है।

सदियों से बस यूँही तकती रहेगी
वक़्त की बंदिशें लिए बैठी है।

हर चेहरा देखता है रहस्य उसका
वो चुप में सादगी लिए बैठी है।

ख़्वाबों का भी कोई चेहरा हो जैसे
अपने में एक जमीं लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
गजल
मोनालिसा की मुस्कान का रहस्य

वो खामोशियों में अदा लिए बैठी है
हर राज़ की इक सदा लिए बैठी है।

नज़रें झुकी हैं पर दिल में तूफां है
जैसे कोई दास्तां लिए बैठी है।

उसकी हंसी में दर्द की चिंगारी है
लबों पे बंद ग़ज़ल लिए बैठी है।

वो बेजुबां मगर बहुत कुछ कहती है
ख़ामोशी में शेर-ओ-ग़ज़ल लिए बैठी है।

वक़्त के साथ उसकी रौनक न बदली
हर दौर का हौसला लिए बैठी है।

देखने वाले ठहर से जाते हैं यूँ
जादू की ये नगरी लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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गजल
5
मोनालिसा की अदाएं

निगाहों में वो पहरा लिए बैठी है
लबों पे जैसे सेहरा लिए बैठी है।

हंसकर छुपाए ग़मों की तस्वीरें
दिल में अनगिनत चेहरा लिए बैठी है।

उसकी मुस्कान में छुपी हैं बातें
वो हर दिल का आईना लिए बैठी है।

हर सदी में बस यूँही छा जाएगी
वक़्त को अपना पर्चा लिए बैठी है।

बेमिसाल है उसकी खामोशी का जादू
बिन कहे हर लफ़्ज़ कहा लिए बैठी है।

इक तस्वीर में खुदा की रहमत सी
वो खुद में एक जहाँ लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
गजल

मोनालिसा की ख़ामोश झलक

चेहरे पे नक़ाब-ए-हया लिए बैठी है
आँखों में वो आईना लिए बैठी है।

उसकी मुस्कान में बसी है तन्हाई
ख़ामोशियों में हवा लिए बैठी है।

हर ज़रा में उसके हैं अफसाने छुपे
वो दुनिया का नक्शा लिए बैठी है।

लब खामोश पर निगाहों में गहराई
जैसे समंदर की अदा लिए बैठी है।

वो तस्वीर में रूह को कैद कर गई
हुस्न का वो साया लिए बैठी है।

जाने कितनी सदियों का है उसका असर
वक़्त का वो चेहरा लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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7
गजल
मोनालिसा की मूक मुस्कान

लबों पर मूक गुफ्तगू लिए बैठी है
निगाहों में एक जादू लिए बैठी है।

हंस कर छुपाए वो दर्द की कहानियां
चेहरे पर ग़म का रुख़्सार लिए बैठी है।

रंगों में वो बसी हुई सी लगे
जैसे किसी का इंतजार लिए बैठी है।

वो चुप है मगर उसकी हर अदा बोले
हर ज़ख्म का असर लिए बैठी है।

वक़्त की कैद में भी वो आज़ाद लगे
सदियों का इक करार लिए बैठी है।

तस्वीर की खामोशी में है आवाज़ छुपी
जैसे दिल का इज़हार लिए बैठी है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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8
गजल

मोनालिसा का खामोश रहस्य

उसके चेहरे पे हया झलकती है
हर अदा में इक दुआ झलकती है।

निगाहों में छुपा है दर्द गहरा
मुस्कुराहट में सदा झलकती है।

वो खामोशी से सब कह जाती है
बिन कहे हर बात झलकती है।

उसकी तस्वीर में छुपे हैं राज़ कई
हर रंग से एक अदा झलकती है।

सदियों से ठहरी है उसकी कशिश
जैसे वक्त की रवा झलकती है।

उसे देख के सब खो से जाते हैं
उसमें रूह की फिज़ा झलकती है।

गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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