ग़ज़ल
नसीब में नहीं चांद
नसीब में नहीं है चांद,तो चाहत कैसी
दिल से न हो मोहब्बत, तो इबादत कैसी।
वो ख्वाब में भी न आए, हैरां हूँ मैं,
उसकी निगाहों में न हो उल्फत तो अमानत कैसी।
राहें उजालों की उसने कभी देखी नहीं,
अंधेरों में छुपी रौशनी, तो किस्मत कैसी।
दिल की सदा को वो समझे बिना ही चला,
जब वक़्त ने साथ न दिया, तो हसरत कैसी।
रातों को जला के जो उम्मीद की लौ रखी,
वो सितारों में खो जाए, तो हिदायत कैसी।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
ग़ज़ल
चांद की हसरत
नसीब में नहीं है चांद, तो हसरत कैसी,
दिल में हो खलिश हरदम, तो राहत कैसी।
वो दूर होके भी दिल के क़रीब लगता है,
अगर उसे महसूस न हो, तो चाहत कैसी।
रातों को ढूंढा था मैंने इक सवेरा अपना,
जब सवेरा भी रूठ जाए, तो किस्मत कैसी।
तन्हा ख़यालों में उसके अक्स को देखा है,
वो अगर यादों में न हो, तो मोहब्बत कैसी।
अश्क बहें तो दिल से दुआ निकलती है,
जो दुआ कबूल न हो, तो इबादत कैसी।
राहें उजालों की थामे हुए चले थे हम,
अगर मंज़िल ही गुम हो जाए, तो मन्नत कैसी।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल
नसीब ऐ चांद
नसीब में नहीं है चांद, तो नज़ारा कैसा
जो दिल में उजाला न हो, तो सितारा कैसा।
वो बेमुरव्वत राहों से गुज़रता रहा
अगर दर्द में साथ न दे, सहारा कैसा।
ख़्वाब जो आँखों में टूटा था कभी चुपके से,
उसी को संजोए रखूं, तो किनारा कैसा।
दिल की आवाज़ जब उससे मिल न सके,
रिश्तों में हो सिर्फ़ दूरी, तो रिश्ता कैसा।
सदियों से छुपा रखी थी मैंने उम्मीदें,
वो ही बुझ जाए अचानक, तो इशारा कैसा।
कदमों के निशान मिटाते गए वो हर पल,
जो वक़्त न हो साथ, तो गुज़ारा कैसा।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
ग़ज़ल
खामोशियों के दरमियान
ख़ामोशियों के दरमियां, कोई बात कैसे हो,
दिल की ही सदा खो जाए, तो मुलाक़ात कैसे हो।
फूलों में बसी थी कभी जो खुशबू ज़िंदगी की,
वो बिखर जाए अगर, तो उसकी सौगात कैसे हो।
दिल से निभाने को थे कई अहद मोहब्बत के,
गर वादे ही टूट जाएं, तो ज़मानत कैसे हो।
ख़्वाबों का शहर अब वीरानियों में बदल गया,
जो सपनों में आता है, वो हकीकत कैसे हो।
सफर में साथ देने का उसने वादा किया था,
गर वो राह छोड़ दे, तो इबादत कैसे हो।
हर मोड़ पर रुखसत मिली ज़िंदगी के सफर से,
जो मंज़िल हो अधूरी, तो राहत कैसे हो।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
ग़ज़ल
धड़कनों में अगर गुफ्तगू ना हो
धड़कनों में अगर तुझसे गुफ़्तगू ना हो,
दिल लगे बेज़ार, तो आरज़ू ना हो।
चाँदनी रात में ख्वाब देखे थे कभी,
गर सुबह भी मिले, तो कोई रौशनी ना हो।
वक़्त के थपेड़ों में सब खो सा गया,
जो ख़ुद से जुदा हो, तो जुस्तजू ना हो।
हमने पत्थरों से भी पूछा था हाल-ए-दिल,
जब जवाब आए नहीं, तो जुबां क्यों हो।
फासले बढ़ते रहे राहों के हर मोड़ पर,
जो मिलना तय ना हो, तो सफ़र क्यों हो।
उम्र भर का था वादा, पर रास ना आया,
गर दिल ही दूर हो, तो रिश्ता क्यों हो।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
ग़ज़ल
ठहराव-ऐ-सफर
ज़िंदगी के सफर में ठहराव सा क्यों है,
हर मोड़ पर तन्हा एहसास सा क्यों है।
दिल की हर धड़कन ने कुछ कहा ज़रूर,
फिर भी वो खामोश, सवाल सा क्यों है।
वो जो मेरे पास रहकर भी दूर है,
उसकी नज़रों में उलझा जवाब सा क्यों है।
ख़्वाबों में बसी थी एक रंगीन दुनिया,
अब हर तरफ़ बिखरा हुआ ख़्वाब सा क्यों है।
वक्त के साथ सब कुछ बदलता गया,
फिर भी दिल में वही पुराना हिसाब सा क्यों है।
फासलों की दरारें गहरी हो चलीं,
फिर भी दिल में बाकी कोई ख्याल सा क्यों है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
ग़ज़ल
रास्तों पे अब कोई निशान क्यों नहीं,
रास्तों पे अब कोई निशान क्यों नहीं,
दिल से गुज़रता कोई तूफ़ान क्यों नहीं।
जो दर्द था वो अब ख़ामोश हो गया,
आँखों में ठहरा वो पुराना मान क्यों नहीं।
फूलों में अब वो महक नहीं रही,
इस बदलते वक़्त में गुलिस्तान क्यों नहीं।
ख़्वाब सारे अब अधूरे से लगते हैं,
मिलने की वो पुरानी दास्तान क्यों नहीं।
दूर रहकर भी पास का एहसास था कभी,
अब वो दिलों में वही जज़्बात क्यों नहीं।
इश्क़ का नाम था सच्चाई की मिसाल,
अब कोई पूछे तो वो सवालात क्यों नहीं।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
ग़ज़ल
जख्मे-ऐ-हिसाब
चुपचाप दिल के ज़ख्मों का हिसाब क्यों करूँ,
जो भर सके नहीं वो सवाल क्यों करूँ।
जो दिल में बसा था, अब कहीं खो गया,
उसे ढूंढने का मैं ख्वाब क्यों करूँ।
वो जो कभी साथ था हर मोड़ पर,
अब उसकी याद में इंतज़ार क्यों करूँ।
आसमान ने तोहफे में दिया था जो चाँद,
अब उसी की खातिर मैं आफ़ताब क्यों करूँ।
जो वक़्त गुज़र गया, वो लौटेगा नहीं,
फिर उसी ग़ुज़रे लम्हे का हिसाब क्यों करूँ।
दिल के दरिया में सैलाब तो बहुत थे,
अब बहते पानी से मैं सवाल क्यों करूँ।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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