1
ग़ज़ल
वो अब तक मेरे मकान में रहती हैं
वो अब तक मेरे मकान में रहती है
मेरे हर ख्वाब-ओ-गुमान में रहती है।
छोड़ गई थी जो वो यादें अधूरी
आज भी दिल के अरमान में रहती है।
हर सूरत में वो झलकती है यूँ
जैसे तस्वीर इस जान में रहती है।
कभी आईने में मुस्कुराती सी लगती है
कभी ख़ामोश हर जहान में रहती है।
कहने को वो दूर जा चुकी है मग़र
सदा ही दिल के सामान में रहती है।
हर शाम जब तन्हा होता हूँ मैं
वो ख्वाबों के इक मकान में रहती है।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
ग़ज़ल
साॅंस का मकान
वो अब तक मेरे मकान में रहती है
ख़ामोशी की हर जुबान में रहती है।
रुख़्सत तो कब की हो चुकी है वो
फिर भी हर एक निशान में रहती है।
छोटी-छोटी सी बातें उसकी
अब भी मेरे ही ध्यान में रहती है।
बन के जैसे पुरानी कोई धुन
दिल की हर इक तान में रहती है।
वो अब मिले ना मिले पर उसकी याद
हर साँस के मकान में रहती है।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल
वो साँस बनकर दिल में रहती है
हर लम्हा मेरे पहलू में बहती है।
छूटी नहीं उसकी चाहत अब तक
वो ख़ामोशियों में छुपके कहती है।
दिल की धड़कन में रची बसी है वो
जैसे मेरी रूह में जान रहती है।
हर दर्द में भी वो साथ है मेरे
वो मेरी तन्हाईयों को सहती है।
जुदा होके भी वो दूर नहीं मुझसे
वो साँस बनकर दिल में रहती है।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
ग़ज़ल
साॅंस बनके
वो साँस बनके दिल में बसी रहती है
हर धड़कन में ख़ामोश सी रहती है।
छुपा के रखी है उसने अपनी चाहत
जैसे कोई ख़ुशबू हवा में बसी रहती है।
वो लम्हा बनके ख़्वाबों में आती है
और हर सुबह मेरी नज़रों में रहती है।
उसकी यादों का दिया बुझता नहीं
रौशनी बनके हर रात में रहती है।
फासले चाहे जितने बढ़ा लूँ मैं
वो पास मेरे सदा यूँ ही रहती है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
ग़ज़ल
स्वार्थ में बदल गये
वो स्वार्थ में बदल गए
और हम वफ़ा करते रह गए।
उनकी नज़रें बदलती रहीं
हम प्यार की राह भरते रह गए।
उन्होंने समझा था खेल ऱिश्ता
हम दिल से उसे निभाते रह गए।
खु़दगर्ज़ी ने जब दिखा दी सूरत
हम फिर भी उनकी कसम खाते रह गए।
जिनके लिए सब कुछ छोड़ दिया
वो गैरों में मशगूल होते रह गए।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
ग़ज़ल
उनकी निशानियाॅं
उनकी निशानियों का मैं क्या करूँ
हर ज़ख़्म में चुभती हैं, मैं क्या करूँ।
छुपा के रखा है दिल के करीब
उनकी यादें अब भुला दूँ तो क्या करूँ।
जो लम्हे हमने संग बिता दिए
वो आज भी अश्कों में बहते हैं, क्या करूँ।
हर सूनी शाम उनका नाम लेता हूॅं
मेरी ख़ामोशी को जगा देते हैं, क्या करूँ।
मिटाना चाहूँ भी तो कैसे मिटाऊँ
वो साँसों में घुली हैं, अब क्या करूँ।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
ग़ज़ल
मैं क्या करूॅं
उनकी निशानियों का मैं क्या करूँ
जो यादों के झरोंके में भरें, क्या करूँ।
हर एक हॅंसी, हर एक आँसू
इनको मैं कब तक संजो कर रखूँ, क्या करूँ।
ग़मों की गठरी और खु़शियों के पल
इनमें उलझा हूँ, इन्हें जोड़ कर रखूँ, क्या करूँ।
तस्वीरों में उनका चेहरा मुस्काए
पर जो दिल में छुपा है, उसे साफ़ करूँ, क्या करूँ।
वो दूर चले गए, हम पास रह गए
उनकी यादों को खो कर कैसे चलूँ, क्या करूँ।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
ग़ज़ल
उनकी निशानियों का मैं क्या करूँ
उसे दिल में समेट कर मैं क्यों करूँ।
वो जो बातें कभी बहुत खास थीं
अब वो यादों में हैं मैं क्या करूँ।
तस्वीरें जो कभी दिल से जुड़ी थीं
उनसे अब ख़ामोशी है मैं क्या करूँ।
उन्हें खोकर भी हर पल जो पाया
उनसे जुड़े उन पलो का मैं क्या करूँ।
नफ़रतों के साए में ख़ुद को ढूॅंढूॅं
वो प्यार जो था, उसे अब क्या करूँ।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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