अभिलाषा
मन में उठती नई तरंग, छूने को हर एक उमंग
हर सपना पूरा हो मेरा, हर क्षण गाए नई तरंग।
चाहूं मैं नभ को पा लेना, तारे चुनकर ला देना
हर गगन में नाम लिखूं, सूरज को भी झुका देना।
पर्वत से ऊंचा हौसला हो, सागर सा हो गहराई
मंज़िल की हर राह सजाऊं, बाधाएं सब रह जाएं पराई।
फूलों से भी कोमल बनूं, कांटों को भी राह दिखाऊं
हर दिल में आशा भर दूं, हर आंसू में हंसी लाऊं।
धरती पर हरियाली लाऊं, नभ में चांद नया चमकाऊं
अपनी अभिलाषा की डोरी से, पूरे जग को साथ बंधाऊं।
रचना
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
----------------------------
No comments:
Post a Comment