Saturday, November 30, 2024

किसी भी विभाग में समस्याएं तब ज्यादा बढ़ जाती हैं जब लोग अपना काम छोड़कर दूसरे का काम करने लगते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

                   आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

किसी भी विभाग में समस्याएं तब ज्यादा बढ़ जाती हैं जब लोग अपना काम छोड़कर दूसरे का काम करने लगते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन 

जब किसी भी विभाग में लोग अपने निर्धारित कार्यों को छोड़कर दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप करने लगते हैं, तब न केवल उस विभाग की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि विभागीय अनुशासन भी भंग हो जाता है। यह समस्या संस्थागत असंतुलन का कारण बनती है, जो व्यक्तिगत स्वार्थ, अयोग्यता और अव्यवस्थित कार्यप्रणाली की जड़ है। इस विचार को समझने के लिए हमें विभागीय व्यवस्था, व्यक्तित्व टकराव और प्रशासनिक क्षमताओं की व्यापक पड़ताल करनी होगी।

विभागीय कार्यप्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को एक विशिष्ट दायित्व सौंपा जाता है। या यूं समझ लीजिए कि उनकी नियुक्ति ही कुछ विशेष कार्यों के लिए ही होती है जब व्यक्ति अपने दायित्व को दरकिनार करके अन्य कार्यों में रुचि लेने लगता है, तो उसका मूल कार्य उपेक्षित हो जाता है। उदाहरण के रूप में, यदि एक शिक्षक अपनी शिक्षण गतिविधियों को छोड़कर प्रशासनिक कार्यों में उलझ जाता है, तो कक्षाओं का समय प्रभावित होता है, जिससे छात्रों की शिक्षा बाधित होती है। इसी प्रकार, किसी कार्यालय में क्लर्क का ध्यान दस्तावेज़ीकरण के बजाय नीतिगत निर्णयों पर केंद्रित हो जाए, तो नीतिगत निर्णय तो अधूरे रहेंगे ही, साथ ही फाइलों का प्रबंधन भी अव्यवस्थित हो जाएगा।

एक उदाहरण के रूप में, उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में यह देखा गया है कि शिक्षक, जो मुख्यतः छात्रों को पढ़ाने के लिए नियुक्त किए गए हैं, अक्सर मिड-डे मील योजना, डाटा फीडिंग, हाउसहोल्ड सर्वे, बीएलओ ड्यूटी, चुनाव ड्यूटी, मतदान प्रक्रिया में ड्यूटी, जनगणना कार्य में भागीदारी, पल्स पोलियो अभियान का संचालन और जागरूकता, मिड-डे मील योजना का प्रबंधन और रिपोर्टिंग, टीकाकरण अभियान में सहयोग, आधार कार्ड पंजीकरण और डेटा संग्रहण, स्वास्थ्य विभाग के लिए सर्वेक्षण, विद्यालय भवन की मरम्मत और निर्माण कार्य की निगरानी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत गतिविधियों में सहयोग, सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार, बच्चों के (डीबीटी) फीडिंग और किताबों का वितरण, ग्रामीण विकास योजनाओं से संबंधित कार्य, आपदा प्रबंधन और राहत कार्य, गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों का सर्वेक्षण, बाल गणना और नामांकन अभियान, विद्यालय में सांस्कृतिक और खेलकूद आयोजनों का संचालन, ग्राम पंचायत बैठकों में विद्यालय प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित रहना, पर्यावरण संरक्षण अभियान जैसे वृक्षारोपण कार्यक्रम, स्कूल स्तर पर सरकारी योजनाओं की जानकारी देना, और विद्यालय स्तर पर सफाई अभियान का नेतृत्व ऐसे सैकड़ों गैर शैक्षणिक कार्य शामिल है और अन्य प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि न केवल बच्चों का शिक्षण प्रभावित होता है, बल्कि शिक्षकों का तनाव भी बढ़ता है। 2021 में जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि इस प्रकार के हस्तक्षेप ने छात्रों की पढ़ाई के स्तर को गिरा दिया, क्योंकि शिक्षक अपनी प्राथमिक भूमिका निभाने में असमर्थ रहे।

लोग दूसरों के कार्यों में इसलिए हस्तक्षेप करते हैं क्योंकि वे अधिक शक्ति या पद की लालसा रखते हैं। यह प्रवृत्ति विभागीय संरचना को कमजोर करती है। कुछ व्यक्ति अपनी अयोग्यता छुपाने के लिए दूसरों के कार्यों में रुचि लेते हैं। इससे उनकी खुद की जिम्मेदारियां अधूरी रह जाती हैं। जब नेतृत्व स्पष्ट दिशा निर्देश देने में विफल रहता है, तो विभागीय कार्य अनियमित हो जाते हैं। यह नेतृत्वहीनता व्यक्तियों को अपनी सीमाओं से बाहर जाने के लिए प्रेरित करती है।

इस चुनौती का समाधान विभागीय कार्यप्रणाली में स्पष्टता और अनुशासन लाने में निहित है। हर कर्मचारी को उनके कार्यों की स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए। शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों से मुक्त रखा जाना चाहिए। उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को नेतृत्व और प्रबंधन में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

जब लोग अपने दायित्व को छोड़कर दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं, तो इसका दुष्प्रभाव न केवल विभागीय कार्यप्रणाली पर पड़ता है, बल्कि पूरे संगठन के उद्देश्य भी बाधित होते हैं। इस समस्या का समाधान तभी संभव है, जब हम अनुशासन, जवाबदेही और कार्य विभाजन के सिद्धांतों को अपनाएं और विभागीय संरचना को सुदृढ़ बनाएं।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

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