1
ग़ज़ल
वक्त
अब वक्त ही करेगा उनके गुनाहों का फैसला
हिंसा और भगवान से तो हुआ नहीं।
खुद को समझते रहे वो फ़रिश्ता ज़माने का
आईने में सच कभी दिखा नहीं।
गुज़रती है सदी दर सदी इंसाफ़ की आस में
पर वक्त से बड़ा कोई मसीहा बना नहीं।
चमकते महलों में रोशनी की खता है
वो ॲंधेरों में इंसानियत को समझा नहीं।
अब देखेगा ज़हाॅं उनका हश्र कैसे होता है
जो बोया था उन्होंने, वक्त कभी भूला नहीं।
जो ख़ुदा के नाम पर खेलते रहे खेल नफ़रत के
वो भूल गए, हिसाब वक्त कभी भूला नहीं।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
ग़ज़ल
गुनाहों का फैसला
अब वक्त ही करेगा उनके गुनाहों का फैसला
क्योंकि इंसान के दायरे में ख़ुदा मिला नहीं।
पलकों पर ख्वाब सजे थे इंसाफ़ के कभी
मगर आँसुओं में सच्चाई अब छुपा नहीं।
जो कह रहे थे ख़ुद को हक़ का रखवाला
उनके कदमों से ज़मीन ने भी वफ़ा किया नहीं।
सजदे में झुकी थी दुआएं तमाम उनकी
मग़र दिलों का नूर तो कभी खिला नहीं।
वो सोचते रहे झूॅंठ से जीतेंगे दुनिया
पर वक्त ने उनकी चाल को बर्दाश्त किया नहीं।
अब देखना है, क्या सवेरा होगा ॲंधेरों का
या सूरज भी इनके हिस्से में जला नहीं।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल
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