Saturday, December 14, 2024

ग़ज़ल एल्बम 59 टाईप

1
ग़ज़ल
तेरे शहर से हवा चली 
तेरे शहर से एक हवा चली और बदनाम कर गई पूरे शहर को।
जो खुशबू थी कभी गली-गली, वो ज़हर कर गई पूरे शहर को।

कभी चिराग़ जलते थे हर जगह, थी रौशनी की बातें हर तरफ।
अब धुऑं-धुऑं है ये फिज़ा, और रा़ख कर गई पूरे शहर को।

कभी गूॅंजती थीं साज़ की धुनें, थे रा़ग हर दिल के अज़ीम।
अब तन्हाई का ये मंज़र, ख़ामोश कर गई पूरे शहर को।

लोग कहते थे ख़िस्से मोहब्बत के, था चाहत का ये मुक़ाम।
पर तेरी बेवफ़ाई की ये हवा, वीरान कर गई पूरे शहर को।

हर गली में बसती थी दुआओं की ख़ुशबू, जो ले जाती थी आसमान।
अब शोर-ओ-गुल का आलम ऐसा, नासूर कर गई पूरे शहर को।

हमने चाहा था बस तेरी वफ़ा, पर तूने क्या किया बता।
तेरे झूॅंठे वादों की एक सदा, लाचार कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल 
 तेरा शहर
तेरे शहर से एक हवा चली और बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी थी अमन की ज़मीं, खौफ़जदा कर गई पूरे शहर को।

ज़हाॅं परिंदा उड़ता था बेख़ौफ, थी चहचहाट हर कोने में
वहीं अब ख़ामोशी का साया, बेसुध कर गई पूरे शहर को।

बजती थीं घंटियां कहीं, कहीं अज़ान की गूॅंज थी
मग़र इस तूफ़ानी हवा ने, बेजान कर गई पूरे शहर को।

जो कभी थे दोस्त अपने, वो आज दुश्मन जैसे लगने लगे
तेरी अदाओं की वो हवा, दोराहे पर छोड़ गई पूरे शहर को।

खु़शियों की महफ़िलें थी कभी, हर दिल जुड़ा हुआ था ज़हाॅं 
अब वहाॅं हर गली में ग़म, वीरान कर गई पूरे शहर को।

तेरे झूॅंठे अफ़साने, तेरा वहमी इश्क़
यूॅं लगा जैसे ये हवा, धुॅंआ-धुॅंआ कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई गिला रहा, न कोई शिकायत ही बाकी
तेरी ख़ता से जो चला तूफ़ान, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल 
तेरी गली से जो ख़बर चली थी, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो ख़ुशबुओं से महकी थी ज़मीं, वो वीरान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं था हर कोई अपने क़रीब, ज़हाॅं रिश्तों का था उजाला
वहीं अफ़सानों का वो धुॅंआ, बेजान कर गई पूरे शहर को।

कभी जहाॅं थी दुआओं की सदा, हर दिल जुड़ा हुआ था ज़हाॅं 
तेरी ख़ामोशी की साजिश, परेशान कर गई पूरे शहर को।

जो था अज़ीम अपनी वफ़ा में, वो अब सवालों में घिर गया
तेरे वादों की वो बेवजह गूॅंज, तन्हा कर गई पूरे शहर को।

हर गली में जो थी उमंग कभी, वहाॅं अब सन्नाटों का डेरा है 
तेरे कदमों की वो चाल, वीरान कर गई पूरे शहर को।

जो मुहब्बत थी कभी आइना, वो अब चुभती है जैसे काॅंटा
तेरी झूॅंठी वफ़ाओं का असर, बेकरार कर गई पूरे शहर को।

अब लबों पर न हॅंसी, न ऑंखों में कोई चमक बाकी
तेरी ख़ता से जो उठा तूफ़ान, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
ग़ज़ल 

तेरी ज़ुबाॅं से जो बात निकली, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी थी आबाद बस्तियाॅं, सुनसान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं हर चौराहे पर हॅंसी थी, वहाॅं अब सिसकियों का राज़ है
तेरी मोहब्बत की वो ख़ता, गु़मनाम कर गई पूरे शहर को।

जो कभी थी रोशनी हर ओर, चिराग़ जलते थे हर गली
तेरे झूॅंठे अफ़सानों की आग, धुऑं कर गई पूरे शहर को।

कभी ज़हाॅं सजे थे रिश्तों के मेले, हर दिल में बसती थी चाहत
तेरी फ़रेबी मुस्कान की छाया, वीरान कर गई पूरे शहर को।

हर कोना जो गूॅंजता था दुवाओं से, अब वहाॅं सन्नाटों का जहाॅं है
तेरी अदाओं का वो तूफाॅं, बेजान कर गई पूरे शहर को।

न उम्मीदें बचीं, न ख़्वाबों का रंग, सब कुछ ख़ाक हो गया
तेरी नज़रों की वो ठंडी लहर, नाकाम कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई तजुर्बा रहा, न कोई शिकवा-शिकायत
तेरे क़दमों की वो दस्तक, बर्बाद कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5
तेरे ख़्याल से जो हवा चली, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी था सुकून का चमन, वीरान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं बहती थी मोहब्बत की नदियाॅं, था हर चेहरा गुलाब जैसा
तेरी बातों की वो कड़वाहट, बेजान कर गई पूरे शहर को।

रंगीन थीं जो फिज़ाएं कभी, थी ख़ुशबू हर साॅंस में घुली
तेरे वादों की वो कड़वाहट, परेशान कर गई पूरे शहर को।

हर गली में बसती थी रौनक, हर दिल से जुड़ा था कोई
तेरे इरादों की साजिश, वीरान कर गई पूरे शहर को।

ख़ुदा का घर भी सहमा है, बंद हो गईं अब दुआएं यहाॅं
तेरी बेवफ़ाई की वो लहर, ख़ामोश कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं सपनों के महल थे खड़े, वहाॅं अब खंडहर दिखते हैं
तेरे फ़रेबी मुस्कान की वो कहानी, बर्बाद कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई उम्मीद बाकी, न कोई अरमान जिंदा
तेरे झूॅंठी मोहब्बत का तूफ़ाॅं, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
ग़ज़ल 
तेरे दामन से जो खुशबू उड़ी, वो जहर बना गई पूरे शहर को
जो कभी थी इश्क़ की गलियाॅं, खौफ बना गई पूरे शहर को।

जहाॅं हर शब नूर बिखरा था, वहाॅं साया भी डरने लगा
तेरे ख़यालों की वो हलचल, सहमा गई पूरे शहर को।

बसा था जहाॅं ख़ुशी का ज़हाॅं, हर चेहरा में गुल खिलाता था
तेरे फरेब की वो एक झलक, वीरान बना गई पूरे शहर को।

जो दिल थे कभी बेखौफ यहाॅं, अब काॅंपते हैं हर सदा पर
तेरी अदाओं की वो आंधी, बेबस बना गई पूरे शहर को।

जहाॅं सूरज भी झुकता था कभी, रौशनी की हद से परे
तेरी झूॅंठी मोहब्बत की कहानी, ॲंधेरा बना गई पूरे शहर को।

हर गली अब ख़ामोश है, हर दीवार उदास दिखती है
तेरी ख़ता का वो साया, ज़ख़्म दे गया पूरे शहर को।

अब न उम्मीदें बचीं, न कोई दुआएं बाकी हैं
तेरे कदमों की वो आहट, बर्बाद बना गई पूरे शहर को।

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