Saturday, March 1, 2025

हमारा देश ऐसे रास्तों पर आगे बढ़ चुका है जो अच्छे इंसानों के लिए बहुत ही दुःखद है


हमारा देश ऐसे रास्तों पर आगे बढ़ चुका है जो अच्छे इंसानों के लिए बहुत ही दुःखद है अगर ऐसे ही चलता रहा तो अच्छे इंसान इस देश में रह ही नहीं जाएंगे आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन 

हमारा देश प्राचीन काल से ही अपनी संस्कृति, सद्भावना और नैतिक मूल्यों के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता रहा है। लेकिन आज देश ऐसे रास्तों पर बढ़ चुका है जहां अच्छाई के लिए संघर्ष करना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है। जिस समाज में कभी सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था, वही समाज अब स्वार्थ, भ्रष्टाचार और झूठ के बोझ तले दबता जा रहा है।
अच्छे इंसान इस देश की रीढ़ होते हैं। वे समाज को दिशा देते हैं, नई पीढ़ी को संस्कार सिखाते हैं और देश की सच्ची उन्नति में योगदान करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि आज के हालात ऐसे हो चुके हैं कि ईमानदार और अच्छे लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनका सम्मान कम हो रहा है, उनकी आवाज दबाई जा रही है और उनके आदर्शों का मजाक उड़ाया जा रहा है।
अगर हम गौर करें तो समाज में वो लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जो चालाकी, झूठ और भ्रष्टाचार के रास्ते को अपनाते हैं। सच्चाई की राह पर चलने वाले लोग अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरकारी व्यवस्थाएं हैं, जहां ईमानदार अधिकारी या तो साजिशों का शिकार हो जाते हैं या सिस्टम से हार मानकर चुपचाप कोने में बैठ जाते हैं।

महात्मा गांधी ने कहा था – "सत्य कभी हार नहीं सकता, भले ही उसे कुचलने की कितनी भी कोशिश की जाए।" लेकिन आज सच बोलने वालों को ही सबसे ज्यादा कुचला जा रहा है। देश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षकों ने अपनी ईमानदारी की कीमत जान देकर चुकाई है।
हाल ही के वर्षों में हमने कई ऐसे ईमानदार अधिकारियों को खो दिया जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। गरीबों और समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए काम करने वाले लोग या तो हाशिए पर डाल दिए गए या उनकी आवाज को खामोश कर दिया गया।

समाज में अच्छाई की गिरती स्थिति का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने नैतिकता और मूल्यों को महत्व देना बंद कर दिया है। बच्चों को पढ़ाया तो जा रहा है कि सच बोलो, ईमानदारी से चलो, लेकिन जब वही बच्चे बड़े होते हैं तो देखते हैं कि समाज में झूठे, चापलूस और भ्रष्ट लोग ही सबसे ज्यादा सम्मानित हो रहे हैं। ऐसे में उनके मन में अच्छाई के प्रति विश्वास कमजोर पड़ने लगता है।

हालांकि हर अंधकार के बाद उजाला जरूर आता है। समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो तमाम संघर्षों के बावजूद अपनी अच्छाई को नहीं छोड़ते। हमें इन लोगों को पहचानने और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अच्छे इंसानों को हतोत्साहित करने के बजाय उन्हें समाज का मार्गदर्शक बनाना चाहिए।
हमें एक ऐसी सोच विकसित करनी होगी जहां ईमानदारी को कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत समझा जाए। शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों को फिर से प्रमुख स्थान देना होगा। सरकारों को ईमानदार लोगों को सुरक्षा और सम्मान देने के लिए सख्त कानून बनाने होंगे।
अगर समाज में अच्छे इंसानों का पलायन यूं ही जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में सिर्फ स्वार्थी, भ्रष्ट और लालची लोगों का ही बोलबाला होगा। ऐसे में देश का नैतिक पतन निश्चित है। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अच्छाई को बचाने के लिए खड़े हों, क्योंकि जब तक अच्छे इंसान इस धरती पर हैं, तब तक इंसानियत भी जिंदा रहेगी।

याद रखिए –
"अच्छाई अकेले चलती है, लेकिन जब उसके पीछे लोग जुड़ जाते हैं तो इतिहास बदल जाता है।"

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