Tuesday, April 8, 2025

जंगलों की बेदर्द कहानी

कभी थी ये धरती हरी-भरी, अब राख हो गई
जंगलों की कहानी भी आज नम आंख हो गई।

वो शाख़ें जो चिड़ियों की नींदों का घर थीं
काट दीं बेदर्दी से, हर दिशा ख़ामोश हो गई।

जो पत्तों की सरसराहट से मिलती थी शांति
अब मशीनों की आवाज़ से बेहाल हो गई।

जहाँ मोर नाचते थे, हिरन कूदते थे कल
वो ज़मीन अब सीमेंट की किताब हो गई।

हर पेड़ जो साँसों की तरह था ज़िन्दगी में
उसकी जड़ भी उखाड़ी गई, और बात खो गई।

साँप, बाघ, हाथी, परिंदे सब भटकते फिरें
इंसानों की हवस से उनकी राहें रोश हो गई।

जल, हरियाली, छाँव अब ढूंढे नहीं मिलती
धरती माँ खुद भी अपनी ही लाश हो गई।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

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सूखी टहनियों पे अब कोई गीत नहीं पलते
जंगलों के होंठों से स्वर अब विरक्त हो गये।

धुआं-धुआं सा दिखता है हर कोना अब यहाँ
कभी जो वादी थे, वो बर्बाद इब्तिदा हो गये।

नदी का रुख मोड़ दिया, तालाब छिन लिया
प्रकृति की छाती छलनी सी दास्तां हो गये।

पेड़ रोए, ज़मीं चीखी, पर किसी ने न सुना
इंसान की नफ़्स से हर सदा बेजुबां हो गये।

कब्र बन गए वो रास्ते, जिनसे कभी बहार चली
हरियाली अब तस्वीरों में महज़ इक दवा हो गये।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 


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