स्वार्थ में बनते हैं रिश्ते और स्वार्थ में ही बिगड़ते हैं रिश्ते आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन
जब हम जीवन के गहराई से अवलोकन करते हैं, तो एक कटु सत्य सामने आता है कि आज अधिकतर रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिके हुए हैं। जिस क्षण वह स्वार्थ पूरा हो जाता है, वहीं से रिश्तों की नींव हिलने लगती है। यह चिंतन चंद्रपाल राजभर जैसे संवेदनशील कलाकार की सोच से उपजा प्रतीत होता है — जिन्होंने अपने जीवन और समाज के तजुर्बों से यह जाना कि आत्मीयता की जगह अब प्रयोजन ने ले ली है।रिश्तों में वह अपनापन तब तक रहता है जब तक आप किसी के काम आ रहे होते हैं। जैसे ही आपकी उपयोगिता समाप्त होती है, आप उनके लिए एक बोझ या परछाई मात्र बन जाते हैं। यह स्थिति केवल आमजन की नहीं, बल्कि संवेदनशील रचनात्मक व्यक्तित्वों की भी रही है, जिन्हें समाज ने तब तक सराहा जब तक उनकी कला किसी के स्वार्थ की पूर्ति करती रही चन्द्रपाल राजभर के इस चिंतन में एक गंभीर चेतावनी है — यदि हम केवल लाभ के आधार पर संबंध बनाते और निभाते रहेंगे, तो एक दिन समाज भावनात्मक दिवालियेपन की स्थिति में पहुंच जाएगा। जहां रिश्तों में भरोसा नहीं, केवल सुविधा का हिसाब-किताब होगा।हमें यह समझना होगा कि सच्चे रिश्ते न तो लेन-देन पर टिके होते हैं, न ही अवसरों पर। वे आत्मा की गहराइयों से जुड़ते हैं, बिना किसी अपेक्षा के। अगर हम अपने जीवन में उन संबंधों को प्राथमिकता दें जो नि:स्वार्थ हों, तो न केवल समाज का स्वरूप बदलेगा, बल्कि एक बेहतर और आत्मीय मानवता का निर्माण होगा। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर जैसे विचारकों के चिंतन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि रिश्तों को साधन नहीं, साधना समझें। वरना जिस स्वार्थ के लिए हम संबंधों को मोड़ते हैं, वही स्वार्थ एक दिन हमें अकेला कर देगा — और तब कोई चित्र, कोई कविता, कोई गीत हमारी संवेदना को लौटा नहीं पाएगा।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI
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