ग़ज़ल
यह कैसी अभिलाषा
यह कैसी अभिलाष है, दिल में छुपी प्यास है
हर साँस में उलझी हुई इक अजनबी आस है।
मंज़िल की तलब भी है, राहों की खलिश भी है
दिल का ये आलम तो देखो, कैसी ये तलाश है।
जज़्बात भी खामोश हैं, ख़्वाबों की ये कश्मकश
हर धड़कन में बसी हुई तन्हा कोई मिठास है।
जीवन के हर मोड़ पर, चाहत का था इक सफर
तू पास नहीं फिर भी, दिल में तेरी मिठास है।
हसरत की चुभन भी है, यादों का सुकूँ भी है
यह कैसी रीतों में बंधी उलझी सी आस है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
-----------------------------
2
ग़ज़ल
अभिलाषा
यह कैसी अभिलाष है, क्या दर्द की विरास है
हर ख्वाब टूटा कांच सा, बिखरी हुई प्यास है।
तन्हाईयों के साए में, हर लम्हा ठहर गया
दिल को छूती चुप्पियों में, गहरी सी अविलास है।
आँखों में कुछ ख्वाब थे, लहरों में वो बह गए
मंज़िल से दूर फिर भी क्यों, दिल में वो विश्वास है।
राहों में कांटे बिछे, राहें मगर चल पड़ीं
यह कैसी रहमत है जो, हर ग़म में उल्लास है।
अब सांस भी बोझिल लगे, दिल का न कोई किनारा
हर चाह अधूरी लगे, ये कैसी अभिलाष है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
---------------------------------------
3
ग़ज़ल
यह कैसी तलब है, जो दिल को तड़पा रही
हर ख्वाब के टूटने की, दस्तां सुनवा रही।
राहों में धुंध छाई, मंज़िल खो गई कहीं
फिर भी ये उम्मीद क्यों, दिल में झलक रही।
सन्नाटों की चुप्पी में, आवाज़ सी है दबी
हर सांस जैसे कोई, नई कसम खा रही।
जज़्बात बिखरे पड़े, चाहत की नमी के संग
दिल में कोई कसक, यादों को फिर जगा रही।
आँखों में जो ख्वाब थे, सब राख हो गए मगर
फिर भी ये प्यास क्यों, दिल को लुभा रही।झलक-ऐ-अभिलाषा
यह कैसी तलब है, जो दिल को तड़पा रही
हर ख्वाब के टूटने की, दस्तां सुनवा रही।
राहों में धुंध छाई, मंज़िल खो गई कहीं
फिर भी ये उम्मीद क्यों, दिल में झलक रही।
सन्नाटों की चुप्पी में, आवाज़ सी है दबी
हर सांस जैसे कोई, नई कसम खा रही।
जज़्बात बिखरे पड़े, चाहत की नमी के संग
दिल में कोई कसक, यादों को फिर जगा रही।
आँखों में जो ख्वाब थे, सब राख हो गए मगर
फिर भी ये प्यास क्यों, दिल को लुभा रही।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
------------------------------------------
4
ग़ज़ल
ये कैसी अभिलाषा
कैसी ये बेचैनी है, जो दिल को खल रही
हर ख्वाब के पीछे कोई हसरत मचल रही।
मंज़िल तो सामने है, पर पाँव थम गए
उम्मीद की राह फिर, साँसों में जल रही।
खामोशियों में छुपी, है एक पुकार सी
सुनते हुए भी दिल में, खामोश पल रही।
राहत के लम्हे भी, क्यों बोझिल लगे हमें
हर चाह में कोई दर्द की गूंज चल रही।
तस्वीर में रंग थे, अब धुंधले से हो गए
फिर भी ये चाहतें, दिल से निकल रही।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
-------------------------
5
ग़ज़ल
ऐ कैसी आरजू
कैसी ये आरज़ू है, जो मन में पल रही।
हर ख्वाब में छिपी हुई, एक अधूरी कल रही।
बिछड़ने की कसक में, दीवानगी है छुपी रही
हर साँस में तन्हाई, हर लम्हा गहराई रही।
मिलन की चाह में, क्या क्या हमने सहा
यादों के साए में, अब तक वो जल रही।
ख्वाबों का सागर है, जो आँखों में बसा
फिर भी यह दिल तन्हा, क्यों खामोश रही।
ज़िंदगी की राहों में, खामोशी का आलम
हर खुशी के पीछे, एक दर्द छुपी रही।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
-------------------------------
6
ग़ज़ल
अभिलाषा दिल को सता रही
कैसी ये चाहत है, जो दिल को है सता रही
हर पल की तन्हाई में, यादें जो बसा रही।
मंज़िल की तलाश में, कदम रुकते हैं कहीं
हर मोड़ पर नसीब की, कुछ रंग बिखरा रही।
खुशियों की चादर में, छुपा है कोई ग़म
हर हँसी में एक दर्द की, कहानी कह रही।
उम्मीद की किरणें भी, फिसलती जा रही हैं
फिर भी ये ज़िंदगी, जज़्बातों को बसा रही।
जज़्बात की गहराई में, कोई राज़ है छुपा
हर ख्वाब के पीछे, एक सच्चाई दबा रही।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
------------------------------
7
ग़ज़ल
अभिलाषे अरमानी
ये ख्वाहिश कैसी, जो दिल को है सताती है
हर चाहत में छुपी हुई, एक गहरी सजा बताती है।
धड़कनों की ताल में, क्यों दर्द का सुर लगा
हर कदम पर बिछड़ी हुई, यादों का साया बताती है।
खुशियों के बादलों में, चुपके से जो बरसा पानी
वो आँसू की बूंदें, दिल के वीराने में धुआं बताती है।
उम्मीद के दीप जलते, फिर भी क्यों राहें सूनी हैं
कितनी भी कोशिश करूँ, मन फिर बिरानी बताती है।
सपनों के हसीन रंग, अब धुंधले हो गए हैं
फिर भी ये चाहतें, दिल में बसी हुई अरमानी बताती हैं।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल
------------------------------------
8
ग़ज़ल
हर मुस्कुराहटों में एक सच्चाई छुपी है
किस तरह की ये हसरत, जो मन को है ललचाती
हर ख्वाब में छिपी हुई, एक नई बेचैनी है।
सन्नाटों की गहराई में, आवाज़ें हैं बसी हुई
हर पल की तन्हाई में, एक अजनबी कहानी है।
मुस्कुराहटों की आड़ में, छुपा हुआ ये दर्द है
दिल के वीराने में, छुपी हुई एक निशानी है।
जज़्बातों के सागर में, तरंगें हैं उठती हुई
फिर भी यह दिल क्यों, उम्मीद की नाव चला रही।
खुशियों की महफिल में, क्यों ग़म का साया छाया
हर हँसी के पीछे, छिपी हुई एक सच्चाई है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
No comments:
Post a Comment