1
बेसबब तलाश
बेसबब तलाश में भटकता रहा
हर मोड़ पर ख्वाब मैं सजा करता रहा।
दिल के आईने में चेहरा धुंधला पड़ा
अपनी ही परछाईं से लड़ा करता रहा।
राहें थीं वीरान, कोई अपना न था
मैं अपनी तन्हाई को सहा करता रहा।
चाहतें बिखरीं, पर अरमान जले
हर लम्हे में दर्द को सहता रहा।
जिसे पुकारा था कभी अपना कह के,
वही पराया सा हर घड़ी लगता रहा।
अधूरी आसें, बुझी हुई बातें
खामोशियों का बोझ मैं ढोता रहा।
अब न कोई मंजिल, न कोई हमसफर
मैं अपनी ही तलाश में खोता रहा।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
बिछड़े हुए ख्वाब
बिछड़े हुए ख्वाब हैं, आवाज़ें खामोश हैं
दिल के वीराने में उलझी रातें मदहोश हैं।
वो जो अपना था, अब पराया हो चला
यादों की जंजीरों में उलझे जज्बात बेहोश हैं।
दर्द के हर रंग में, ढलती है मेरी सदा
दिल की गहराइयों में बसी ये घुटन से बेशोर हैं।
जिस राह पे चला था, वो राह छूट गई
आंखों में बसी मंजिलें आज बेनूर हैं।
कभी सोचा था, कोई साथ निभाएगा
अब तन्हाई के इस सफर में कदम खामोश हैं।
हर ख्वाब जो देखा, वो टूटा बिखर गया
मेरी हसरतें अब दर्द के आगोश में बेखबर हैं।
अब न उम्मीद बाकी, न चाहतों का जहां
इन वीरानों में मेरी यादें और मैं खामोश हैं।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
अधूरी तमन्ना
अधूरी तमन्ना है, तन्हा सफर मे
भटका हुआ दिल है इन रहगुजर में।
वो जो कभी अपना था, दूर हो गया
अब किससे कहें हम अपने असर में।
हर एक लम्हा दर्द का पैमाना हुआ
डूबे हैं खयालात गहरे समंदर में।
ख्वाबों की राहें अब वीरान सी हैं
बस धुंध सी छाई है दिल के नगर में।
चाहा था जिसे, वो कभी मिल न सका
अब किससे उम्मीदें रखें इस सफर में।
अधूरी सी हसरत, अधूरे से अरमान
छूटे हैं ख्वाबों के टुकड़े बिखर में।
अब न कोई आवाज़, न कोई सदा
खोए हुए हम हैं खुद के ही डर में।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
खामोश सफर
खामोश सफर में, तन्हाई का आलम है
हर मोड़ पर छुपा, एक दर्द का पैगाम है।
जिनसे थी उम्मीदें, वो ही दूर चले गए
अब सिर्फ यादों का, मेरे साथ सामान है।
दिल की गहराइयों में, अब बसी है खामोशी
हर ख्वाब मेरा, जैसे लुटा सा एक आम है।
कभी जो मेरे थे, अब सब बेगाने हैं
इन वीरानों में बस, एक खोया हुआ नाम है।
हर जख्म का एहसास, हर आंसू की कहानी
इंसानियत की तस्वीर, अब बेमिसाल धुंधलाम है।
क्या कोई सुनेगा, मेरी ये तन्हाई
सुनते-सुनते सभी, कब के हो चुके आम हैं।
अब ढूंढता हूं मैं, खुद को इस सन्नाटे में
हर एक सांस मेरी, जैसे गूंजती एक श्याम है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
खोया हुआ जहां
खोया हुआ जहां है, तन्हाई का बसेरा
हर साया मुझसे दूर, हर ख्वाब है बेगाना।
दिल के दरमियान, चुप्पी का एक समंदर
आंसुओं की गहराई में, छिपा है हर अफसाना।
कभी जो था अपना, अब वो पराया सा है
यादों की इस भीड़ में, मिटता जा रहा निशाना।
हर मोड़ पर रुककर, गम का बोझ उठाया
अपने ही अल्फाज़ों में, खोया सा एक खजाना।
हसरतें अधूरी हैं, चाहतें भी बेनाम हैं
किससे कहूं अपनी, दिल की ये दास्तान पुराना।
दुनिया की रंगीनियों में, मैंने खो दी पहचान
अब तन्हाई के इस सफर में, दिल का है पैगाम।
न कोई संग साथी, न कोई मुस्कान रहे
बस सन्नाटा है गूंजता, जैसे मेरा ही परछाई हो बेनाम।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
आसां नहीं है ये
आसां नहीं है ये सफर तन्हाई का
हर कदम पे छुपा है एक नया साया।
दिल की खामोशी में छिपा है एक ग़म
खो गई हैं खुशियां, बाकी बस है नज़ारा।
जिसे चाहा था मैंने, वो भी छूट गया
अब यादों का भार है, अपने ही गुनहगारों का।
हर मोड़ पर मिलते हैं, बस खोए हुए ख्वाब
जिनमें खोकर जीता था, अब वो हैं बेगाने।
दिल के कोने में सिसकियाँ कैद हैं
जज्बातों की गहराई में, छिपे हैं आंसू हमारे।
चाहते थे जो कभी, वो अब पराए हैं
इस तन्हाई में खुद को फिर से सजाना है।
कभी जो था साथ, अब वो भी नहीं है
बस यादों की परछाईं में, सिमट गया है सारा।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
ख़ामोश दिल की आवाज़
ख़ामोश दिल की आवाज़ है, सुनाई नहीं देती
खोए हुए ख्वाबों की, यादें तन्हाई में भरी हैं।
राहों में बिखरे हैं सपने, जो कभी सजे थे
अब उन पर धूल चढ़ी है, जो यादें कर दी हैं।
जिनसे मिला था सुकून, वो भी दूर हो गए
किससे कहूं अपनी दास्तान, कोई पास नहीं है।
हर लम्हा तड़पता है, खुद से ही जुदा होकर
खुशियों का जो रंग था, वो अब काला हो गया है।
तन्हाई में जब यादें, दस्तक देती हैं दरवाज़े
दिल की गहराइयों में, फिर से बिखर जाती हैं।
एक ख्वाब था कभी, अब सिर्फ रह गया है
यादों के इस समंदर में, मैं डूबता चला गया हूं।
अब न कोई साथी, न कोई मुस्कान बाकी
बस खोई हुई राहें हैं, जिनका कोई निशान नहीं है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
खामोशियाँ हैं साथी
खामोशियाँ हैं साथी, तन्हाई का आलम है
खुद से जो बिछड़ गया, वो मेरा ही ग़म है।
खोए हुए ख्वाबों की, कोई आवाज़ नहीं है
हर लम्हा ये तड़पता, दिल का अरमान है।
किससे कहूं अपनी कहानी, कोई पास नहीं है
दूरी ने बना दिए हैं, सभी रिश्ते पराए हैं।
हर मोड़ पर है खड़ा, बस एक साया अपना
जो मेरे साथ है, वो खुद में ही खोया है।
एक उम्मीद का दीप था, वो भी बुझ गया
अब सिर्फ यादों की परछाईं, मेरे साथ है।
हर लफ्ज़ में बसी हैं, मेरी तन्हाई की बातें
इस दिल के वीराने में, चुप्पी की कबाहटे हैं
अब तो बस ये ख्वाब हैं, अधूरे से बिखरे हुए
किसी ने ना पूछा, क्यों हो गए हम अकेले। हैं
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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