1
ग़ज़ल
"बिकता है"
यहां सब कुछ मुस्कानों में बिकता है
दर्द भी अब अफ़सानों में बिकता है।
वो कल तक जो मेरे अपने थे
आज हर रिश्ता पैसों में बिकता है।
इंसानियत का ज़िक्र कहां अब
यहां हर चेहरा सामानों में बिकता है।
जो दिल से सच्चा हुआ करता था
अब वो भी अरमानों में बिकता है।
तूफ़ानों से लड़ने की बातें क्या करें
जब साहिल भी बहानों में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
ग़ज़ल
"बिकता है"
यहां हर सच हर झूठ बिकता है
इंसान क्या, हर सूत बिकता है।
जिसे पूजते थे कभी इबादत में
अब वो खुदा भी मूर्त बिकता है।
वो लफ्ज़ जो मरहम बने थे कभी
अब हर घाव का सबूत बिकता है।
खरीदारों की भीड़ में खड़ा देखो
हर सपना, हर सुकूत बिकता है।
वो रिश्ते जो अमर हुआ करते थे
अब पैसों की मर्ज़ी से टूट बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल
हर शय इज्जत में बिकता है
यहां हर शय इज़्ज़त में बिकता है
जो कल था सच्चा, ज़र्रत में बिकता है।
वफ़ा की राहें सूनी हुईं जब से
अब हर चेहरा चाहत में बिकता है।
गुज़री यादें, टूटी उम्मीदें सब
बस यूंही कुछ हालत में बिकता है।
जो सच की खातिर जलता था पहले
आज वो शमा भी बरकत में बिकता है।
कभी ख्वाबों की मीनारें जो ऊंची थीं
अब हर सपना आहट में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
गजल
चेहरा बिकता है
यहां हर चेहरा नकाब में बिकता है
दिलों का सौदा ख़्वाब में बिकता है।
वो रिश्ते जो थे जान से प्यारे कभी
आज हर जज़्बा हिसाब में बिकता है।
कभी सच था जिनका वो नाम आज
वो किस्से भी आदाब में बिकता है।
महफ़िल में सजी थी जो रोशनी
अब हर चिराग़ आंधियों में बिकता है।
उजालों की अब क्या बात करें
यहां हर साया भी ख़्वाब में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
गजल
यहां हर ख्वाब चंद सांसों में बिकता है
यहां हर ख्वाब चंद सांसों में बिकता है
इंसान क्या, उसका वजूद बिकता है।
जो सच की बुनियाद था कभी
आज वो हर साज़िश में बिकता है।
वो लम्हे जो थे अनमोल कभी
अब हर याद, किस्तों में बिकता है।
रहमत भी यहां गिरवी रखी है
हर आशीर्वाद अब दामों में बिकता है।
जो अपने थे कभी जां से भी करीब
अब वो भी अनजान नजरों में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
गजल
यहां हर चाहत बाजारों में बिकता है
यहां हर चाहत बाजारों में बिकता है
जो दिल से सच्चा हो, वो ख्वाबों में बिकता है।
वफ़ा की कोई कीमत नहीं बची अब
हर वादा आज सौदों में बिकता है।
जिसे कभी पूजा था दिल की तरह
अब वो भी सजधज कर बिकता है।
अहल-ए-दर्द की महफिलें सूनी हैं
अब हर आंसू मुस्कानों में बिकता है।
दिलों की कीमत अब कोई नहीं समझता
यहां हर जज़्बा अफसानों में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
गजल
यहां हर दर्द मुस्कानों में बिकता है
यहां हर दर्द मुस्कानों में बिकता है
मोहब्बत का जाम भी पैमानों में बिकता है।
वो हंसी जो कभी दिल से आती थी
आज हर खुशियों के बहानों में बिकता है।
जिसे सीने से लगा रखा था बरसों तक
अब वो रिश्ता भी अरमानों में बिकता है।
खामोशी से गिरते हैं जो आंसू यहां
हर अश्क अब जज़्बातों में बिकता है।
वो दिल जो कभी पत्थर ना हुआ
अब हर धड़कन से दामों में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
गजल
यहां हर साया उजालों में बिकता है
यहां हर साया उजालों में बिकता है
सच भी कहीं सवालों में बिकता है।
वो जो एक वक्त दिल के करीब था
आज वही चेहरा खयालों में बिकता है।
खामोश लबों पर सजी जो थी कभी
अब हर हंसी मलालों में बिकता है।
कभी जो सिरजता था दुनिया को अपनी
वो खुद भी अब हलालों में बिकता है।
महफिलों की रौनकें मिट सी गई हैं
अब हर शख्स हालातों में बिकता है।
गजल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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