कविता
वह कैसा आदमी रहा होगा
वह कैसा आदमी रहा होगा,जिसने जाति धर्म बनाया होगा,
भारत जैसे देश में उसने, भेदभाव को सजाया होगा।
जिन हाथों से रच दी मूरत, उन हाथों को तोड़ दिया,
मानवता के सुंदर चमन को, खुद ही आके रौंद दिया।
जिसने सोचा ऊँच-नीच को, अपनी शान बना दिया ,
ऐसे स्वार्थी विचारों से, रिश्ते मानवता को भून दिया
वो भी मानव, हम भी मानव, क्यों यह अंतर डाला है?
हर दिल में नफरत के बीजों का, कैसा अंकुर पाला है?
जिसने माँटी को बाँट दिया, कैसे रहा वो अपने से?
धर्म-जाति की दीवारों में, तोड़ा रिश्ते सपने से।
पर जो कहे कि हम सब एक, वही सच्चा इंसान है,
जिसके दिल में प्रेम बसे, वही जग का भगवान है।
इस जग की सुंदरता फिर से, बस प्रेम-प्रीत से लौटेगी,
वो कैसा आदमी रहा होगा, यह बात सदा ही खटकेगी।
रचना
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI
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