1
ग़ज़ल
उसकी शादी हो रही थी
उसकी शादी हो रही थी, जैसे मेरे शरीर से कोई प्राण ले जा रहा है
दिल के हर कोने में एक दर्द सा समा रहा है।
वो जो कभी मेरे पास था, आज किसी और के पास हो गया
मेरी तन्हाई में जैसे कोई साया बहक रहा है।
आँखों में आँसू थे, फिर भी उसे देख रहा था
जैसे कोई सपना टूटकर मेरी हकीक़त बन रहा है।
खुशियाँ उसकी होंगी, म़गर मेरा दर्द बढ़ रहा है
वो जो मुझे अपना कहता था, अब दूर जा रहा है।
उसकी शादी हो रही थी, और मैं खड़ा था बस चुप
जैसे मेरी दुनियाॅं को किसी ने तबाह कर दिया है।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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2
ग़ज़ल
उसकी शादी हो रही थी
उसकी शादी हो रही थी, मैं देख रहा था चुप खड़ा
दिल के अंदर बवंडर था, मगर लबों से कुछ न कहा।
वो मंडप में मुस्कुराता, जैसे सब कुछ पा लिया
और मैं तन्हाई में खोकर ख़ुद को मिटा रहा था।
हर फेरे के साथ ऐसा लगा, जैसे साॅंसें घट रही
वो मेरा सब कुछ था, अब किसी और का हो रहा।
उसकी ऑंखों में जो चमक थी, मेरा ख़्वाब तोड़ गई
मेरी मोहब्बत की दास्ताॅं को अधूरी छोड़ गई।
उसकी शादी हो रही थी, और मैं पत्थर सा बन गया
जैसे मेरे वजूद से कोई मेरी रूह छीन गय।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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3
ग़ज़ल
उसकी शादी हो रही थी
उसकी शादी हो रही थी, वो सज़ा हुआ था आज
जैसे मेरे अरमानों का ख़ुदा ले रहा हो इम्तिहान।
हर मुस्कान में उसकी, मेरा दर्द छुपा हुआ था
दिल की गहराइयों में खंजर सा चुभा हुआ था।
मंडप के हर फेरे पर साॅंस मेरी टूटती गई
उसके वादों की गर्माहट अब राख बनती गई।
चूड़ियों की खनक में सुनाई दिए अफ़साने
जिनमें मेरा नाम कहीं गुम हो गया जाने।
उसकी शादी हो रही थी, और खड़ा रहा जहाॅं
जैसे मेरी रूह का हर टुकड़ा बिखर गया वहाॅं।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
ग़ज़ल
मैं टूट रहा था
उसकी शादी हो रही थी, मेरी साॅंसे टूट रही थी
दिल से जुड़ी हर बात टूटकर बिखरकर रही थी।
महफ़िल सजी थी खु़शियों की, पर दिल वीरान था
जैसे कोई मेरे जिगर से,मेरी जान छीन रही थी
सजे हुए जोड़े में वो खड़ी थी मुस्कान लिए
और मैं टूटे अरमानों के साथ चुपचाप खड़ा था।
हर फेरा उसकी ज़िंदगी को खुशियों से भर रहा था
पर मेरे दिल में दर्द का समंदर बहुत गहरा हो रहा था।
उसकी शादी हो रही थी, और मेरा दिल रो रहा था
जैसे मेरे शरीर से कोई मेरा ज़िगर चुरा रहा था
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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5
ग़ज़ल
उसकी शादी
वो मेरे ख़्वाबों का गुलशन सजाए बैठा था
और मैं उजड़ी बहारों का क़िस्सा सुनाए बैठा था।
हर क़सम हर वादा अब फ़िज़ूल सा लग रहा था
जो कभी अपना था, अब वो अज़नबी बन रहा था ।
वो हॅंसी जो मेरे लिए कभी महकती थी
अब किसी और की दहलीज़ पर सज रही थी।
दिल कह रहा था रोक लूॅं उसे इक पल के लिए
मग़र जुबाॅं ख़ामोश थी, और दिल बहुत रो रहा था।
उसकी शादी हो रही थी, मेरी दुनियॅं खो रही थी
जैसे मुझसे कोई मेरी ज़िंदगी चुरा रही थी ।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
ग़ज़ल
वो खड़ी थी
वो सज-धज खड़ी थी किसी और के नाम पर
और मैं टूट रहा था उनके हर इक अंजाम पर।
जो रिश्ते की डोर कभी दिलों को बाॅंधती थी
आज वही डोर किसी और से जुड़ रही थी।
हर मुस्कान उसकी, मेरे दर्द को बढ़ा रही थी
वो खुशी के पल, मेरी रूह को जला रही थी।
मैंने जो सपने देखे थे उसके संग कभी
अब वो किसी और की ऑंखों में बस रही थी ।
उसकी शादी हो रही थी, मैं हक्का बक्का था
जैसे कोई तुफान मेरी जिंद़गी छीन रही थी
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
ग़ज़ल
शादी
सज रहे थे फूल वहाॅं, और मैं बिखर रहा था
वो जिसे दिल दिया, आज वो दूर हो रहा था।
मंडप में हर रस्म उसकी हॅंसी में डूबी थी
और मेरी तन्हाई में बस ख़ामोशी बसी थी।
ऑंखों में था वो मंजर, जो कभी मेरा था
आज उसकी क़िस्मत का हर लम्हा सुनहरा था।
दुआओं के साथ मैंने उसे विदा किया
दिल से म़गर हर ज़ख्म फिर से ज़िंदा किया।
उसकी शादी हो रही थी, और मैं देख रहा था
जैसे अपनी रूह को धीरे-धीरे छोड़ रहा था।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
ग़ज़ल
उसकी शादी
चमकते सितारे मंडप में जगमगा रहे थे
और मेरे सपने चुपचाप बुझते जा रहे थे।
जो कभी मेरी हर दुआ का सबब था
आज किसी और के साथ खड़ा बेख़बर था।
मेरे ख़यालों की किताब का हर पन्ना जल गया
उसके वादों का हर लफ्ज़ मुझको छल गया।
हर फेरे के साथ मेरी साॅंसें सिमट रहीं थीं
दिल की आवाज़ें मेरी रगों में थम रहीं थीं।
उसकी शादी हो रही थी, और मैं खड़ा बेकरार था
जैसे कोई सदा के लिए मुझसे मेरा दिल हड़प रहा था
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