Sunday, November 24, 2024

ग़ज़ल एल्बम 50

अभिलाषा नहीं मेरी कि मैं किसी को दोषी ठहराऊॅं
ख़ुद के गमों को ही अब मुस्कानों में छुपाऊॅं।

चुभती हैं दिल पे जो, वो बातों की सुइयाॅं
उनकी टीस को भी मैं फूलों-सा महकाऊॅं।

हर एक ग़लतफ़हमी को नज़रअंदाज़ करता रहा
हर जलती चिंगारी को पानी-सा बुझाऊॅं।

मंज़िल पे पहुँचने का नहीं कोई ज़ुनून 
सफर की ख़ामोशियों में गीत-सा गुनगुनाऊॅं।

किसी की मोहब्बत का न कोई सवाल है
दिल को उजालों से हर शाम सजाऊॅं।

दुनिया के रंगों में न खोई मेरी सोच,
अपनी धुन में अपना ही आलम बनाऊॅं।

अभिलाषा नहीं मेरी कि मैं किसी को दोषी ठहराऊॅं
हर एक दर्द को मैं सुकून-सा बना पाऊॅं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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अभिलाषा नहीं मेरी कि मैं किसी को दोषी ठहराऊॅं
ख़ुद ही अपने ज़ख़्मों पर, चुपचाप मरहम लगाऊॅं।

जो दिया है वक्त ने, उसे मुक़द्दर मान लिया
ख़्वाब टूटें भी अगर, मैं नया ख़्वाब सजाऊॅं।

क्यों शिकायतें करूॅं, ये दुनिया के रिवाज हैं
हर इल्ज़ाम को मैं मुस्कान में दबाऊॅं।

मेरी वफ़ा को ठुकराया तो कोई ग़म नहीं,
उनकी यादों को भी अब दुआओं में बुलाऊॅं।

हर मोड़ पर मिले अगर कोई नये सवाल
अपने हौसले से हर ज़वाब को मैं पाऊॅं।

अश्क बहते हैं तो क्या, ये मोती हैं मेरे
अपने दर्द को मैं जश्न-सा क्यों दिखाऊॅं।

अभिलाषा नहीं मेरी कि मैं किसी को दोषी ठहराऊॅं
बस अपनी रूह को सच्चाई से और सजाऊॅं।

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