1
अभिलाषा के दीप
अभिलाषा के दीप जलते रहे
ख़्वाब पलकों पे रोज़ सजते रहे।
चाॅंदनी रात में भी ॲंधेरा मिला
हम उजालों की आस करते रहे।
खु़शबुओं से सजी थी जो बाग़ कल
आज वीरानियों में बदलते रहे।
हमनें चाहा था प्यार की एक छाँव
मग़र धूप में ग़म के फूल खिलते रहे।
ज़िन्दगी की ड़गर थी बहुत ही कठिन
मग़र हम हौसले में चलते रहे।
जो मिली हर खु़शी, बेवजह लग गई
दर्द दिल में मग़र मचलते रहे।
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2
अभिलाषा के रंग
अभिलाषा के रंग फीके हुए
ख़्वाब भी आज फिर अधूरे हुए।
चाहतों की किताब खोली तो क्या
सारे लफ्ज़ों के अर्थ रूखे हुए।
हमने सोचा था मंज़िल मिलेगी ज़रूर
मग़र हर तरफ़ से रास्ते सूने हुए।
जो दिया था भरोसा किसी ने हमें
वो भी टूटा तो ज़ख़्म गहरे हुए।
ज़िन्दगी की तलाश में निकले थे हम
पर ग़म के दरिया में ही डूबते गए।
अब न उम्मीद है, न कोई गिला
अब तमन्ना के दीप भी बुझते गए।
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3
मेरी अभिलाषा
ख़ुद अपने इरादों पे विश्वास चाहिए
चलने को बस थोड़ा सा उजास चाहिए।
मुश्किल से घबरा के क्यों बैठ जाएं हम
हर मोड़ पे इक नया अहसास चाहिए।
छूने हैं अंबर के ऊँचे किनारे हमें
परवाज़ को हौसले की साॅंस चाहिए।
रुक जाएं तो कैसे सफ़र तय करेंग
हर क़दम पे जलता उजास चाहिए।
जो सोचें वो सच में बदल भी सके
ऐसे इरादों का इतिहास चाहिए।
हिम्मत अगर संग हो राहों में हरदम
तो जीत का सुंदर प्रयास चाहिए
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
मेरी अभिलाषा
हर दर्द को हॅंसकर मिटाना पड़ेगा
ॲंधेरों में दीपक जलाना पड़ेगा।
जो सपने उगाए हैं ऑंखों के अंदर
हक़ीक़त में उसको पाना पड़ेगा।
जो रुकने की सोची, तो थम जाएंगे
हमें आँधियों से लड़ जाना पड़ेगा।
अगर जीतना है तो डरना नहीं है
हर इक घाव पर मुस्कुराना पड़ेगा।
सफ़र में अगर काॅंटें मिलते रहें तो
हमें पाॅंव अपना बचाना पड़ेगा।
कभी हार मत मान, तूफ़ान से तू
समंदर को ख़ुद ही आना पड़ेगा।
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5
चुनौती
हर एक चुनौती को अपनाना ही होगा,
ग़म है अगर तो मुस्काना ही होगा।
जो चाहा है दिल से, मिलेगा यक़ीनन
ख़ुद अपने जुनू को समझाना ही होगा।
बढ़े हैं जो आगे, वही जीत पाएंगे
हमें इक ज़माना बनना ही होगा
गिरे तो भी हिम्मत न खोना कभी तुम
हर इक दर्द को आज़माना ही होगा।
अगर पंख हैं तो उड़ाना भी होगा
हवा के इशारों को पढ़ना भी होगा।
छू लेंगे हम भी नई मंज़िलों को
बस ख़ुद को आगे बढ़ाना ही होगा
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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6
हौसला
मंज़िल की चाहत में चलना पड़ेगा,
हर एक अंधेरों से लड़ना पड़ेगा।
जो ठोकर लगी है, सबक़ ले वहीं से
ख़ुद अपने ज़ख़्मों को सिलना पड़ेगा।
सपनों की राहों में कांटे भी होंगे
मग़र हौसलों से संभलना पड़ेगा।
जो मुश्किलों से हिम्मत गंवा दोगे यारों
तो फिर से जमाने से लड़ना पड़ेगा
जो चाहत है ऊँचाइयों को छूने की
तो तूफ़ान से भी निकलना पड़ेगा।
मेरा हौसला ही मेरी रहनुमाई
मुझे रोशनी बन जलना पड़ेगा।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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7
उड़ान
जो ठान लिया है, निभाना पड़ेगा
हर इक मुश्किलों से टकराना पड़ेगा।
जो काँटों से डरकर रुके हैं सफ़र में
उन्हें ख़ुद ही रस्ता बनाना पड़ेगा।
अगर आसमाँ को छूना है सच में
तो तूफ़ान से भी उलझना पड़ेगा।
जो सपने संजोए हैं आँखों में हमनें
उन्हें हौसलों से सजाना पड़ेगा।
मुक़द्दर नहीं बस इरादा है अपना
जहाॅं को मेहनत से झुकाना पड़ेगा
अभी तो हमें और ऊँचा है उड़ाना
हमें ख़ुद को सूरज बनाना पड़ेगा।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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8
अभिलाषा
ख़ुद अपनी उड़ानों से उड़ना पड़ेगा
हर इक मुश्किलों से लड़ना पड़ेगा।
अगर राह में आँधियाँ आ भी जाएं
तो दीपक सा हमको चमकना पड़ेगा।
जो ठोकर लगी हैं, वही सबक़ देंगी
संभलकर हमें फिर से चलना पड़ेगा।
सफ़र में ॲंधेरे तो आते रहेंगे
मग़र हौंसले से उबरना पड़ेगा।
किसी और से क्या शिकायत करें हम
हमें अपने हिस्से का करना पड़ेगा।
अभी और ऊँचाइयाँ हैं बुलाती मुझे
हमें अपने सपनों को बुनना पड़ेगा।
ग़ज़ल
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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