Sunday, February 9, 2025

ग़ज़ल 67

मन की अभिलाषा

तेरा हौंसला ही तेरी राह बनाता है 
जो ख़ुद से लड़े, जग वही जीत पाता है।

क़दम डगमगाए तो मत हार जाना तू
संघर्ष का दीपक ही उजास लुटाता है।

जो आग दिलों में सुलगती है भीतर से
हर एक ॲंधेरे को वो धूल चटाता है।

गिरा भी, डगमगाया भी, मग़र बढ़ता रहा निरंतर
वही दरिया के मोती निकाल पाता है 

खु़दी को जगाकर, चलो रोशनी थाम लो
नसीब से पहले, समय आजमाता है।

हर दर्द को ताकत बना, हंस के तू जी ले
जो धीरज न खोए, वही फल को पाता है।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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हौसलों की उड़ान हो, गगन से मिलना चाहिए
जो भी सपना देख लें, उसे तो खिलना चाहिए।

धूप आए, छाँव आए, राह चाहे मोड़ ले
हर क़दम पर हौंसलों का दीप जलना चाहिए।

हार से मत डर कभी, हर एक ठोकर सीख है
जो गिरे फिर उठ सके, उसे ही चलना चाहिए।

सोच जितनी ऊँची होगी, जीत उतनी ही पास होगी
ख़ुद से ख़ुद की जंग हो, उसे तो जीतना चाहिए।

सिर्फ चाहत से नहीं, मेहनत से मिलती है रोशनी
मन की जो भी अभिलाषा, वो तो मिलनी चाहिए।

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