Thursday, June 19, 2025

प्राकृतिक संपदा समझ कर देश में जमीन उन्मूलन होना चाहिए और देश के हर एक नागरिक को बराबर बराबर जमीन मिलनी चाहिए आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

प्राकृतिक संपदा समझ कर देश में जमीन उन्मूलन होना चाहिए और देश के हर एक नागरिक को बराबर बराबर जमीन मिलनी चाहिए आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन
हर मनुष्य का जन्म इस धरती पर समान अधिकार लेकर होता है, लेकिन जब हम इस धरती की ज़मीन को देख‍ते हैं तो यह समानता केवल शब्दों में सीमित रह जाती है। भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में, जहाँ “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” की अवधारणा रही है, वहीं आज की सच्चाई यह है कि ज़मीन जैसे मूलभूत संसाधन पर कुछ वर्गों का एकाधिकार बन गया है, जबकि बहुसंख्यक लोग अपनी छत तक को तरस रहे हैं।कल्पना कीजिए एक ऐसे राष्ट्र की, जहाँ हर नागरिक को उतनी ही ज़मीन मिले जितनी उसकी ज़रूरत हो—ना ज़्यादा, ना कम। ऐसा कोई स्वप्न नहीं है, बल्कि यह उस न्यायपूर्ण व्यवस्था की नींव हो सकती है, जो सामाजिक विषमता, गरीबी और बेघरपन जैसी विकृतियों को जड़ से समाप्त कर सकती है।आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन केवल भूमि वितरण की बात नहीं करता, बल्कि वह उस आत्मिक पीड़ा को सामने लाता है जो उस मजदूर के चेहरे पर उभरती है, जो पूरी ज़िंदगी दूसरों की ज़मीन जोतता है, पर खुद के लिए एक कोना तक नहीं बना पाता। यह उस आदिवासी के हक़ की लड़ाई है, जिसकी ज़मीनें विकास के नाम पर छीन ली जाती हैं, और उसे ही 'अवैध' घोषित कर जंगल से खदेड़ दिया जाता है। यह उस किसान की पुकार है, जो कर्ज़ के बोझ तले दबकर ज़मीन होते हुए भी खुद को बेघर समझता है।मनुष्य और ज़मीन का संबंध केवल स्वामित्व का नहीं, अस्तित्व का है। एक बच्चा जब जन्म लेता है, तो उसे हवा, पानी, प्रकाश की तरह ज़मीन भी चाहिए। सोचिए, क्या किसी को यह कहकर ज़मीन से वंचित किया जा सकता है कि उसका जन्म साधारण परिवार में हुआ? क्या यह उस राष्ट्र की गरिमा है जहाँ चाँद पर चंद्रयान उतरता है, लेकिन करोड़ों लोग आज भी कच्ची झोपड़ियों में जीवन गुज़ारने को मजबूर हैं?यह व्यवस्था केवल अमीर और गरीब की दूरी नहीं बनाती, बल्कि यह पीढ़ियों की नियति तय कर देती है। जिस बच्ची के पाँव कभी खुले आँगन में नहीं पड़े, वह खुले विचारों की उड़ान कैसे भरेगी? यह असमानता केवल आर्थिक नहीं, मानसिक, सामाजिक और नैतिक पतन का भी कारण बनती है।यदि हम वास्तव में देश को ‘स्वर्णिम भारत’ बनाना चाहते हैं, तो प्राकृतिक संसाधनों पर सभी का समान अधिकार सुनिश्चित करना होगा। ज़मीन कोई वंशानुगत बपौती नहीं, यह पृथ्वी माता का आशीर्वाद है, जिस पर हर संतान का बराबर का हिस्सा है। यह न केवल सामाजिक न्याय होगा, बल्कि एक सच्चे लोकतंत्र की दिशा में वास्तविक कदम भी।चन्द्रपाल राजभर की यह सोच हमें एक नई दृष्टि देती है—जहाँ विकास का मतलब कुछ लोगों के महल नहीं, सबके लिए घर हो। वह यह संदेश देते हैं कि जब तक हर नागरिक को समान ज़मीन का हक़ नहीं मिलेगा, तब तक राष्ट्र का संतुलन अधूरा रहेगा।अब समय है कि हम ज़मीन को संपत्ति नहीं, जिम्मेदारी समझें। इसका बंटवारा सत्ता नहीं, संवेदना के आधार पर हो। तभी यह राष्ट्र एक ऐसे घर में बदलेगा, जहाँ कोई खुद को बेगाना नहीं, बल्कि धरती का सच्चा उत्तराधिकारी समझेगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

ग़ज़ल भाग 3

 हंसते रहो 
1
राहों में कांटे बिछे हों, चलते रहो
दिल में हो जज़्बा जला के, चलते रहो।

थक जाओ फिर भी मुस्कुराना न छोड़ो
दर्द की चादर ओढ़ के, हँसते रहो।

हर ठोकर इक सबक देती है दोस्त
गिरकर भी सपनों को सजाते रहो।

साया न हो जब ज़िन्दगी की डगर में
अपने ही हौसलों से सपने जगाते रहो।

अंधेरों से लड़ना है तो डर कैसा?
दीया बनो, औरों को सजाते रहो।

जो भी कहे "तुमसे नहीं होगा कुछ"
उनको भी कामयाबी अपनी दिखाते रहो।

संघर्ष ही जीवन का है असली रूप है 
हर हाल में खुद को सँवारते रहो।
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2


Sunday, June 15, 2025

अगर आप थोडा सा आगे बढ़ आइये तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन


अगर आप थोडा सा आगे बढ़ आइये तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

अगर आप थोड़ा सा आगे बढ़ आइये, तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं — यह वाक्य महज़ एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि गहरी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सच्चाई का आईना है। जैसे ही कोई व्यक्ति अपने सीमित दायरे से बाहर निकलता है, आत्मनिर्भरता और आत्मविकास की दिशा में कदम बढ़ाता है, तो समाज में ऐसे कई लोग अचानक सक्रिय हो उठते हैं जिन्हें उसकी यह तरक्की चुभने लगती है।
यह जलन दरअसल उसकी सफलता नहीं, बल्कि उनकी असफलता की झुंझलाहट होती है। वे उस आईने से डरते हैं जिसमें उनकी निष्क्रियता, उनकी आत्महीनता, उनकी जड़ता साफ दिखती है।मनोविज्ञान के अनुसार, जब कोई व्यक्ति लगातार प्रयास करके किसी लक्ष्य को प्राप्त करता है, तो वो दूसरों के भीतर दबे हुए हीनभाव और तुलना की प्रवृत्ति को सक्रिय कर देता है। यह तुलना भीतर-ही-भीतर आत्मघातक होती है, क्योंकि जलन रखने वाला व्यक्ति खुद प्रयास नहीं करता, पर चाहता है कि दूसरा भी वहीं रुक जाए जहाँ वह है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर के अनुभव इसी सोच को पुष्टि देते हैं। जब उन्होंने गांव के एक सामान्य परिवेश से निकलकर कला, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में लगातार प्रगति की, तो तालियाँ कम और आलोचनाएँ अधिक सुनने को मिलीं। लोग कहने लगे – "ये कैसे आगे निकल गया?" कुछ ने कहा – "पहुंच होगी, तभी मिला होगा सब," जबकि किसी ने उसके परिश्रम, तपस्या और वर्षों की साधना की बात नहीं की।एक बार एक विद्यालय में उन्होंने बच्चों के लिए पर्यावरण पर चित्र प्रदर्शनी लगाई। उद्देश्य था – बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदना और वैज्ञानिक सोच को जागृत करना। लेकिन कुछ सहकर्मी जलन में पड़कर यह बात फैलाने लगे कि "ये सब दिखावा है, खुद को महान साबित करने की कोशिश है।"यहाँ प्रश्न यह नहीं कि किसने क्या कहा, बल्कि यह कि जब भी कोई व्यक्ति नया करता है, समाज को दिशा देने का प्रयास करता है, तो उसकी नीयत नहीं, बल्कि नीयत का बहाना खोजकर उसकी छवि को धुंधलाने की कोशिश की जाती है। यही जलन है।प्रेरणा इस बात में है कि जब आप जान जाएं कि लोग आपकी सफलता से जलते हैं, तो समझ लीजिए — आप सही रास्ते पर हैं। जलन सफलता की वह छाया है, जो केवल उसी पर पड़ती है जो ऊंचाई की ओर बढ़ रहा हो। ठहरे हुए पानी पर कोई पत्थर नहीं फेंकता।इसलिए अपने मार्ग पर डटे रहिए। जो जलते हैं, वे बुझा नहीं सकते। उनकी जलन की आग, आपकी आत्मा की लौ को और तेज करेगी। और अंततः इतिहास उन्हीं के नाम होता है, जो तमाम विरोध और ईर्ष्या के बीच अपने कर्म और उद्देश्य में अडिग रहते हैं।

"अगर आप थोड़ा सा आगे बढ़ आइये, तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं,
लेकिन यह मत भूलिए — सूरज अकेला ही जलता है, तभी पूरी धरती रोशन होती है।"

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

Saturday, June 14, 2025

नौकरी गाड़ी घोड़ा पैसे और राजनीति से कोई बड़ा नहीं होता बड़ा होता है आदमी व्यक्तित्व से । आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

नौकरी गाड़ी घोड़ा पैसे और राजनीति से कोई बड़ा नहीं होता बड़ा होता है आदमी व्यक्तित्व से । आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंत

    नौकरी, गाड़ी, घोड़ा, पैसे और राजनीति ये सभी केवल बाहरी दिखावे के प्रतीक हैं, जो किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत तो दर्शा सकते हैं, परंतु उसकी असल महानता या मूल्य को नहीं। यह एक भ्रम है जो समाज ने खुद रचा है—कि जिसके पास अधिक भौतिक संसाधन हैं, वही सबसे योग्य है। लेकिन अगर इतिहास और वर्तमान को ध्यान से देखें तो यह सत्य उजागर होता है कि व्यक्ति की सच्ची पहचान उसके चरित्र, सोच, और कार्यशैली से होती है, न कि उसके पद, प्रतिष्ठा या धन से।जिस प्रकार एक पेड़ को उसकी छाया और फल से जाना जाता है, न कि उसकी ऊँचाई से, वैसे ही इंसान को उसके व्यक्तित्व से पहचाना जाना चाहिए, न कि उसकी संपत्ति या राजनीतिक पकड़ से। मनोविज्ञान भी यही कहता है कि बाहरी उपलब्धियों से आत्ममूल्य का निर्धारण करना व्यक्ति को निरंतर असुरक्षा, तुलना और अहंकार की ओर ले जाता है। वहीं जो व्यक्ति आत्मचिंतन, करुणा और विनम्रता से जीता है, वह दूसरों के जीवन में वास्तविक परिवर्तन ला सकता है।ध्यान दें कि बहुत से लोग जिनके पास गाड़ियाँ हैं, ऊँची नौकरियाँ हैं या राजनीतिक ताकत है, वे अकेलेपन, अविश्वास और आंतरिक खालीपन से जूझ रहे हैं। वहीं एक साधारण दिखने वाला इंसान, जिसने अपने व्यवहार, सोच और सेवा से लोगों का हृदय जीत लिया है, वह सच्चे अर्थों में बड़ा होता है। यही बात महात्मा गांधी, बाबा आमटे या मदर टेरेसा जैसे लोगों ने साबित की—कि व्यक्तित्व की ऊँचाई ही असल ऊँचाई होती है।एक शिक्षक जिसकी वाणी से परिवर्तन होता है, एक कलाकार जिसकी कला समाज को दिशा देती है, एक मजदूर जो ईमानदारी से अपने श्रम को पूजता है—ये सभी उस ‘बड़े आदमी’ की श्रेणी में आते हैं, जिनकी पहचान पद या पैसा नहीं, बल्कि उनका व्यक्तित्व है।इसलिए जरूरी है कि हम बच्चों को बचपन से यह सिखाएं कि नौकरी या पैसा जीवन का साधन हैं, साध्य नहीं। उन्हें खुद के भीतर झांकने की प्रेरणा दें, ताकि वे आत्मनिर्भर, मूल्यवान और समाज के लिए उपयोगी बन सकें।बड़ा वही होता है जो अपने विचारों से बड़ा हो, जो दूसरों के सम्मान में छोटा बन सके और जो दिखावे के शोर में भी सादगी और संवेदनशीलता की आवाज़ को जीवित रख सके। यही चिंतन आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर की सोच को विशेष बनाता है—जहाँ मनुष्य की महानता उसके व्यक्तित्व में बसती है, न कि उसके संसाधनों में।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

स्वार्थ में बनते हैं रिश्ते और स्वार्थ में ही बिगड़ते हैं रिश्ते आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

स्वार्थ में बनते हैं रिश्ते और स्वार्थ में ही बिगड़ते हैं रिश्ते आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

जब हम जीवन के गहराई से अवलोकन करते हैं, तो एक कटु सत्य सामने आता है कि आज अधिकतर रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिके हुए हैं। जिस क्षण वह स्वार्थ पूरा हो जाता है, वहीं से रिश्तों की नींव हिलने लगती है। यह चिंतन चंद्रपाल राजभर जैसे संवेदनशील कलाकार की सोच से उपजा प्रतीत होता है — जिन्होंने अपने जीवन और समाज के तजुर्बों से यह जाना कि आत्मीयता की जगह अब प्रयोजन ने ले ली है।रिश्तों में वह अपनापन तब तक रहता है जब तक आप किसी के काम आ रहे होते हैं। जैसे ही आपकी उपयोगिता समाप्त होती है, आप उनके लिए एक बोझ या परछाई मात्र बन जाते हैं। यह स्थिति केवल आमजन की नहीं, बल्कि संवेदनशील रचनात्मक व्यक्तित्वों की भी रही है, जिन्हें समाज ने तब तक सराहा जब तक उनकी कला किसी के स्वार्थ की पूर्ति करती रही चन्द्रपाल राजभर के इस चिंतन में एक गंभीर चेतावनी है — यदि हम केवल लाभ के आधार पर संबंध बनाते और निभाते रहेंगे, तो एक दिन समाज भावनात्मक दिवालियेपन की स्थिति में पहुंच जाएगा। जहां रिश्तों में भरोसा नहीं, केवल सुविधा का हिसाब-किताब होगा।हमें यह समझना होगा कि सच्चे रिश्ते न तो लेन-देन पर टिके होते हैं, न ही अवसरों पर। वे आत्मा की गहराइयों से जुड़ते हैं, बिना किसी अपेक्षा के। अगर हम अपने जीवन में उन संबंधों को प्राथमिकता दें जो नि:स्वार्थ हों, तो न केवल समाज का स्वरूप बदलेगा, बल्कि एक बेहतर और आत्मीय मानवता का निर्माण होगा। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर जैसे विचारकों के चिंतन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि रिश्तों को साधन नहीं, साधना समझें। वरना जिस स्वार्थ के लिए हम संबंधों को मोड़ते हैं, वही स्वार्थ एक दिन हमें अकेला कर देगा — और तब कोई चित्र, कोई कविता, कोई गीत हमारी संवेदना को लौटा नहीं पाएगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI

Tuesday, June 10, 2025

महाराजा सुहेलदेव के भर(राजभर) होने का प्रमाण

महाराजा सुहेलदेव को "राजभर" या "भर" समुदाय थे ।—इस संबंध में कुछ ऐतिहासिक, प्राचीन और औपनिवेशिक काल के ग्रंथ, रिपोर्ट्स और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में प्रमाण मिलते हैं। नीचे प्रमाण सहित उन प्रमुख ग्रंथों और स्रोतों की सूची दी जा रही है, जो इस दावे को आधार देते हैं:

✅ 1. मिरात-ए-मसूदी (Mirat-i-Masudi)

लेखक: अब्द-उर-रहमान चिश्ती (मुगल काल)

वर्णन:
यह किताब ग़ाज़ी सैयद सालार मसूद की जीवनी है। इसमें लिखा है कि "सुहेलदेव एक स्थानीय राजा थे जो भर जाति से थे।"

महत्त्व:
यह सुहेलदेव का सबसे प्राचीन उल्लेख करने वाली फारसी रचना है और सीधे "भर राजा" कहा गया है।

✅ 2. गज़ेटियर ऑफ़ यूनाइटेड प्रोविंस (Bahraich District Gazetteer)

प्रकाशन वर्ष: ब्रिटिश काल में 1904, 1928 संस्करण

विवरण:
इसमें चित्तौरा झील और सुहेलदेव का उल्लेख करते हुए उन्हें "a powerful Bhar king" कहा गया है।

पेज:
Bahraich Gazetteer, 1928, Page 174-175 पर स्पष्ट वर्णन है कि राजा सुहेलदेव भर जाति के थे जिन्होंने मुस्लिम आक्रांताओं को पराजित किया।

✅ 3. बहराइच का स्थानीय इतिहास (Local Records & Oral Traditions)

स्रोत:
बहराइच और श्रावस्ती क्षेत्र की लोककथाएं और स्थानीय दस्तावेजों में भर जाति और राजभरों की वंशावली से सुहेलदेव का संबंध बताया गया है।

✅ 4. बाबू शोभाराम द्वारा रचित “राजभार इतिहास” (19वीं सदी)

विवरण:
शोभाराम ने अपने इतिहास में महाराजा सुहेलदेव को भरवंशी या राजभर वंश का बताया है।

महत्त्व:
बहुजन नायकों को खोजने वाले समाज सुधारकों के लिए यह प्रमाणिक स्रोत रहा है।

✅ 5. “राजभार समाज और इतिहास” – लेखक: रामनिवास रामभर

सामग्री:
यह पुस्तक सामाजिक इतिहास की दृष्टि से लिखी गई है जिसमें गज़ेटियर व मिरात-ए-मसूदी के आधार पर महाराजा सुहेलदेव को राजभर बताया गया है।

✅ 6. “पिछड़ा समाज और इतिहास” – डॉ. रामशरण लाल

मुख्य विचार:
लेखक ने भर समाज को प्राचीन नागवंशीय क्षत्रिय मानते हुए सुहेलदेव को राजभर समाज का वीर बताया है।


✅ 7. “बहुजन नायक सुहेलदेव” – प्रो. बद्रीनारायण (GSU, प्रयागराज)

विवरण:
प्रो. बद्रीनारायण ने अपने शोध में सुहेलदेव को बहुजन समाज का नायक बताते हुए भर जाति से संबंधित बताया है।

✅ 8. “भारतीय इतिहास कोश” – लेखक: डॉ. रामशरण शर्मा

संकेत:
यह स्पष्ट रूप से भरों के बारे में चर्चा करता है और उन्हें प्राचीन भारत का क्षत्रिय समाज बताता है, जो मध्यकाल तक राजाओं की भूमिका में रहा, जिससे सुहेलदेव की जातीयता को जोड़ा जाता है।

✅ 9. पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

स्थान:
चित्तौरा झील, बहराइच

विवरण:
वहां खुदाई में मिले अवशेषों और लेखों से संकेत मिलता है कि यह क्षेत्र भर शासकों के अधीन था।


✅ 10. लोक साहित्य और जनश्रुतियां

गाथाएं:
अवध क्षेत्र के लोकगीतों और वाचिक परंपरा में सुहेलदेव को भर राजा कहा गया है, जो साम्राज्यवादी आक्रमणकारियों से लड़े थे।

निष्कर्ष 
इससे पूर्णता स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा सुहेलदेव भर जिसे वर्तमान में राजभर कहा जाता है राजभर समाज से थे अब इसमें कोई मतभेद नहीं होना चाहिए 

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI