Thursday, July 17, 2025

ग़ज़ल

ठोंकरे
कभी हार को खुद पर ऐतबार रखो
उम्मीद के चिराग़ों पे सदा ही नज़र रखो।

वो ठोकरें जो देती हैं राहों में गिरने का डर
उन्हीं में ढूॅंढ कर आगे बढ़ने का ज़र रखो।

हर एक रात के बाद सवेरा ज़रूर आयेगा
अँधियारियों के बीच उजालों का घर रखो।

जो बात कह न पाओ, उसे कर्म में कहो
हुनर से बोलो, चुप रहकर भी जलवा उधर रखो।

चन्द्रपाल राजभर
2
वक़्त पर

ख़ुदा भी देता है हर इम्तिहाँ वक़्त पर
बदलती है किस्मत की दास्ताँ वक़्त पर।

उठा ले तू हिम्मत की इक मशअल आज ही
मिलेंगे सभी रास्ते रोशन यहाँ वक़्त पर।

न कर तू शिकायत अंधेरों से अब
सवेरा भी आता है हर शाम सा वक़्त पर।

जो बैठा रहा डर के साए में यूँ ही
वो चूका है हर बार की दौड़ में वक़्त पर।

हुनर गर तेरा सच्चा और नेक हो
तो खुद बोल उठती है ये ज़ुबाँ वक़्त पर।

तू मेहनत से रिश्ता बना ले अभी
कभी तो मिलेगा तुझे आसमाँ वक़्त पर।

कभी मत झुका हाल के सामने तू
कहाँ थमता है जोश का कारवाँ वक़्त पर।

चन्द्रपाल राजभर

3

वक्त के साथ 

चल पड़ा हूँ मैं वक़्त के साथ अब
छोड़ दी है हर शिक़ायत की बात अब।

जो गिरा था कल, अब सम्भला हूँ मैं
धूल से उठी है मेरी ज़ज्बात अब।

वक़्त ने ही सीखा दिया ये हुनर
ज़ख़्म भी लगते हैं एक सौग़ात अब।

ठोकरें भी नहीं तोड़ पाई मुझे 
सख़्तियाँ लगती हैं करामात अब।

जो गया वो बीतते लम्हों में था
जो बचे हैं, उनसे है हर बात अब।

आईना हूँ मैं भी अपनें हौंसले का
दिख रही है मुझमें नई ज़ज्बात अब।

चल पड़े हैं ख़्वाब लेकर आँखों में
होंठ चुप हैं, बोलता है हुनर अब।

4

मिलने चला

मैं ख़ुद से मिलने चला हूँ सफ़र में
छुपा हूँ कहीं मैं ही अपने असर में।

न चेहरों की भीड़ों में खोना है अब
न रहना है गिरवी किसी दर-ब-दर में।

मैं उठता रहा अपनी हर हार से
है शोला भी पलता मेरे ही जिगर में।

कभी वक़्त ने तो कभी ख्वाब ने
दिखाया मुझे मुझको ही इक नज़र में।

न पूछो के क्या खो गया इस क़दर
मिला हूँ मैं ख़ुद से उसी नुक़्तागर में।

मैं गिरता भी था तो ये लगता रहा
कोई ताक़त छुपी है मेरी ही नज़र में।

जो दुनिया ने ना दी, वो मैंने दिया
यक़ीं का दिया रौशनी के शहर में।

चन्द्रपाल राजभर

Thursday, June 19, 2025

प्राकृतिक संपदा समझ कर देश में जमीन उन्मूलन होना चाहिए और देश के हर एक नागरिक को बराबर बराबर जमीन मिलनी चाहिए आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

प्राकृतिक संपदा समझ कर देश में जमीन उन्मूलन होना चाहिए और देश के हर एक नागरिक को बराबर बराबर जमीन मिलनी चाहिए आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन
हर मनुष्य का जन्म इस धरती पर समान अधिकार लेकर होता है, लेकिन जब हम इस धरती की ज़मीन को देख‍ते हैं तो यह समानता केवल शब्दों में सीमित रह जाती है। भारत जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में, जहाँ “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” की अवधारणा रही है, वहीं आज की सच्चाई यह है कि ज़मीन जैसे मूलभूत संसाधन पर कुछ वर्गों का एकाधिकार बन गया है, जबकि बहुसंख्यक लोग अपनी छत तक को तरस रहे हैं।कल्पना कीजिए एक ऐसे राष्ट्र की, जहाँ हर नागरिक को उतनी ही ज़मीन मिले जितनी उसकी ज़रूरत हो—ना ज़्यादा, ना कम। ऐसा कोई स्वप्न नहीं है, बल्कि यह उस न्यायपूर्ण व्यवस्था की नींव हो सकती है, जो सामाजिक विषमता, गरीबी और बेघरपन जैसी विकृतियों को जड़ से समाप्त कर सकती है।आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन केवल भूमि वितरण की बात नहीं करता, बल्कि वह उस आत्मिक पीड़ा को सामने लाता है जो उस मजदूर के चेहरे पर उभरती है, जो पूरी ज़िंदगी दूसरों की ज़मीन जोतता है, पर खुद के लिए एक कोना तक नहीं बना पाता। यह उस आदिवासी के हक़ की लड़ाई है, जिसकी ज़मीनें विकास के नाम पर छीन ली जाती हैं, और उसे ही 'अवैध' घोषित कर जंगल से खदेड़ दिया जाता है। यह उस किसान की पुकार है, जो कर्ज़ के बोझ तले दबकर ज़मीन होते हुए भी खुद को बेघर समझता है।मनुष्य और ज़मीन का संबंध केवल स्वामित्व का नहीं, अस्तित्व का है। एक बच्चा जब जन्म लेता है, तो उसे हवा, पानी, प्रकाश की तरह ज़मीन भी चाहिए। सोचिए, क्या किसी को यह कहकर ज़मीन से वंचित किया जा सकता है कि उसका जन्म साधारण परिवार में हुआ? क्या यह उस राष्ट्र की गरिमा है जहाँ चाँद पर चंद्रयान उतरता है, लेकिन करोड़ों लोग आज भी कच्ची झोपड़ियों में जीवन गुज़ारने को मजबूर हैं?यह व्यवस्था केवल अमीर और गरीब की दूरी नहीं बनाती, बल्कि यह पीढ़ियों की नियति तय कर देती है। जिस बच्ची के पाँव कभी खुले आँगन में नहीं पड़े, वह खुले विचारों की उड़ान कैसे भरेगी? यह असमानता केवल आर्थिक नहीं, मानसिक, सामाजिक और नैतिक पतन का भी कारण बनती है।यदि हम वास्तव में देश को ‘स्वर्णिम भारत’ बनाना चाहते हैं, तो प्राकृतिक संसाधनों पर सभी का समान अधिकार सुनिश्चित करना होगा। ज़मीन कोई वंशानुगत बपौती नहीं, यह पृथ्वी माता का आशीर्वाद है, जिस पर हर संतान का बराबर का हिस्सा है। यह न केवल सामाजिक न्याय होगा, बल्कि एक सच्चे लोकतंत्र की दिशा में वास्तविक कदम भी।चन्द्रपाल राजभर की यह सोच हमें एक नई दृष्टि देती है—जहाँ विकास का मतलब कुछ लोगों के महल नहीं, सबके लिए घर हो। वह यह संदेश देते हैं कि जब तक हर नागरिक को समान ज़मीन का हक़ नहीं मिलेगा, तब तक राष्ट्र का संतुलन अधूरा रहेगा।अब समय है कि हम ज़मीन को संपत्ति नहीं, जिम्मेदारी समझें। इसका बंटवारा सत्ता नहीं, संवेदना के आधार पर हो। तभी यह राष्ट्र एक ऐसे घर में बदलेगा, जहाँ कोई खुद को बेगाना नहीं, बल्कि धरती का सच्चा उत्तराधिकारी समझेगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

ग़ज़ल भाग 3

 हंसते रहो 
1
राहों में कांटे बिछे हों, चलते रहो
दिल में हो जज़्बा जला के, चलते रहो।

थक जाओ फिर भी मुस्कुराना न छोड़ो
दर्द की चादर ओढ़ के, हँसते रहो।

हर ठोकर इक सबक देती है दोस्त
गिरकर भी सपनों को सजाते रहो।

साया न हो जब ज़िन्दगी की डगर में
अपने ही हौसलों से सपने जगाते रहो।

अंधेरों से लड़ना है तो डर कैसा?
दीया बनो, औरों को सजाते रहो।

जो भी कहे "तुमसे नहीं होगा कुछ"
उनको भी कामयाबी अपनी दिखाते रहो।

संघर्ष ही जीवन का है असली रूप है 
हर हाल में खुद को सँवारते रहो।
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2


Sunday, June 15, 2025

अगर आप थोडा सा आगे बढ़ आइये तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन


अगर आप थोडा सा आगे बढ़ आइये तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

अगर आप थोड़ा सा आगे बढ़ आइये, तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं — यह वाक्य महज़ एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि गहरी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सच्चाई का आईना है। जैसे ही कोई व्यक्ति अपने सीमित दायरे से बाहर निकलता है, आत्मनिर्भरता और आत्मविकास की दिशा में कदम बढ़ाता है, तो समाज में ऐसे कई लोग अचानक सक्रिय हो उठते हैं जिन्हें उसकी यह तरक्की चुभने लगती है।
यह जलन दरअसल उसकी सफलता नहीं, बल्कि उनकी असफलता की झुंझलाहट होती है। वे उस आईने से डरते हैं जिसमें उनकी निष्क्रियता, उनकी आत्महीनता, उनकी जड़ता साफ दिखती है।मनोविज्ञान के अनुसार, जब कोई व्यक्ति लगातार प्रयास करके किसी लक्ष्य को प्राप्त करता है, तो वो दूसरों के भीतर दबे हुए हीनभाव और तुलना की प्रवृत्ति को सक्रिय कर देता है। यह तुलना भीतर-ही-भीतर आत्मघातक होती है, क्योंकि जलन रखने वाला व्यक्ति खुद प्रयास नहीं करता, पर चाहता है कि दूसरा भी वहीं रुक जाए जहाँ वह है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर के अनुभव इसी सोच को पुष्टि देते हैं। जब उन्होंने गांव के एक सामान्य परिवेश से निकलकर कला, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में लगातार प्रगति की, तो तालियाँ कम और आलोचनाएँ अधिक सुनने को मिलीं। लोग कहने लगे – "ये कैसे आगे निकल गया?" कुछ ने कहा – "पहुंच होगी, तभी मिला होगा सब," जबकि किसी ने उसके परिश्रम, तपस्या और वर्षों की साधना की बात नहीं की।एक बार एक विद्यालय में उन्होंने बच्चों के लिए पर्यावरण पर चित्र प्रदर्शनी लगाई। उद्देश्य था – बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदना और वैज्ञानिक सोच को जागृत करना। लेकिन कुछ सहकर्मी जलन में पड़कर यह बात फैलाने लगे कि "ये सब दिखावा है, खुद को महान साबित करने की कोशिश है।"यहाँ प्रश्न यह नहीं कि किसने क्या कहा, बल्कि यह कि जब भी कोई व्यक्ति नया करता है, समाज को दिशा देने का प्रयास करता है, तो उसकी नीयत नहीं, बल्कि नीयत का बहाना खोजकर उसकी छवि को धुंधलाने की कोशिश की जाती है। यही जलन है।प्रेरणा इस बात में है कि जब आप जान जाएं कि लोग आपकी सफलता से जलते हैं, तो समझ लीजिए — आप सही रास्ते पर हैं। जलन सफलता की वह छाया है, जो केवल उसी पर पड़ती है जो ऊंचाई की ओर बढ़ रहा हो। ठहरे हुए पानी पर कोई पत्थर नहीं फेंकता।इसलिए अपने मार्ग पर डटे रहिए। जो जलते हैं, वे बुझा नहीं सकते। उनकी जलन की आग, आपकी आत्मा की लौ को और तेज करेगी। और अंततः इतिहास उन्हीं के नाम होता है, जो तमाम विरोध और ईर्ष्या के बीच अपने कर्म और उद्देश्य में अडिग रहते हैं।

"अगर आप थोड़ा सा आगे बढ़ आइये, तो जलन रखने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं,
लेकिन यह मत भूलिए — सूरज अकेला ही जलता है, तभी पूरी धरती रोशन होती है।"

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

Saturday, June 14, 2025

नौकरी गाड़ी घोड़ा पैसे और राजनीति से कोई बड़ा नहीं होता बड़ा होता है आदमी व्यक्तित्व से । आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

नौकरी गाड़ी घोड़ा पैसे और राजनीति से कोई बड़ा नहीं होता बड़ा होता है आदमी व्यक्तित्व से । आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंत

    नौकरी, गाड़ी, घोड़ा, पैसे और राजनीति ये सभी केवल बाहरी दिखावे के प्रतीक हैं, जो किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत तो दर्शा सकते हैं, परंतु उसकी असल महानता या मूल्य को नहीं। यह एक भ्रम है जो समाज ने खुद रचा है—कि जिसके पास अधिक भौतिक संसाधन हैं, वही सबसे योग्य है। लेकिन अगर इतिहास और वर्तमान को ध्यान से देखें तो यह सत्य उजागर होता है कि व्यक्ति की सच्ची पहचान उसके चरित्र, सोच, और कार्यशैली से होती है, न कि उसके पद, प्रतिष्ठा या धन से।जिस प्रकार एक पेड़ को उसकी छाया और फल से जाना जाता है, न कि उसकी ऊँचाई से, वैसे ही इंसान को उसके व्यक्तित्व से पहचाना जाना चाहिए, न कि उसकी संपत्ति या राजनीतिक पकड़ से। मनोविज्ञान भी यही कहता है कि बाहरी उपलब्धियों से आत्ममूल्य का निर्धारण करना व्यक्ति को निरंतर असुरक्षा, तुलना और अहंकार की ओर ले जाता है। वहीं जो व्यक्ति आत्मचिंतन, करुणा और विनम्रता से जीता है, वह दूसरों के जीवन में वास्तविक परिवर्तन ला सकता है।ध्यान दें कि बहुत से लोग जिनके पास गाड़ियाँ हैं, ऊँची नौकरियाँ हैं या राजनीतिक ताकत है, वे अकेलेपन, अविश्वास और आंतरिक खालीपन से जूझ रहे हैं। वहीं एक साधारण दिखने वाला इंसान, जिसने अपने व्यवहार, सोच और सेवा से लोगों का हृदय जीत लिया है, वह सच्चे अर्थों में बड़ा होता है। यही बात महात्मा गांधी, बाबा आमटे या मदर टेरेसा जैसे लोगों ने साबित की—कि व्यक्तित्व की ऊँचाई ही असल ऊँचाई होती है।एक शिक्षक जिसकी वाणी से परिवर्तन होता है, एक कलाकार जिसकी कला समाज को दिशा देती है, एक मजदूर जो ईमानदारी से अपने श्रम को पूजता है—ये सभी उस ‘बड़े आदमी’ की श्रेणी में आते हैं, जिनकी पहचान पद या पैसा नहीं, बल्कि उनका व्यक्तित्व है।इसलिए जरूरी है कि हम बच्चों को बचपन से यह सिखाएं कि नौकरी या पैसा जीवन का साधन हैं, साध्य नहीं। उन्हें खुद के भीतर झांकने की प्रेरणा दें, ताकि वे आत्मनिर्भर, मूल्यवान और समाज के लिए उपयोगी बन सकें।बड़ा वही होता है जो अपने विचारों से बड़ा हो, जो दूसरों के सम्मान में छोटा बन सके और जो दिखावे के शोर में भी सादगी और संवेदनशीलता की आवाज़ को जीवित रख सके। यही चिंतन आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर की सोच को विशेष बनाता है—जहाँ मनुष्य की महानता उसके व्यक्तित्व में बसती है, न कि उसके संसाधनों में।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

स्वार्थ में बनते हैं रिश्ते और स्वार्थ में ही बिगड़ते हैं रिश्ते आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

स्वार्थ में बनते हैं रिश्ते और स्वार्थ में ही बिगड़ते हैं रिश्ते आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

जब हम जीवन के गहराई से अवलोकन करते हैं, तो एक कटु सत्य सामने आता है कि आज अधिकतर रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिके हुए हैं। जिस क्षण वह स्वार्थ पूरा हो जाता है, वहीं से रिश्तों की नींव हिलने लगती है। यह चिंतन चंद्रपाल राजभर जैसे संवेदनशील कलाकार की सोच से उपजा प्रतीत होता है — जिन्होंने अपने जीवन और समाज के तजुर्बों से यह जाना कि आत्मीयता की जगह अब प्रयोजन ने ले ली है।रिश्तों में वह अपनापन तब तक रहता है जब तक आप किसी के काम आ रहे होते हैं। जैसे ही आपकी उपयोगिता समाप्त होती है, आप उनके लिए एक बोझ या परछाई मात्र बन जाते हैं। यह स्थिति केवल आमजन की नहीं, बल्कि संवेदनशील रचनात्मक व्यक्तित्वों की भी रही है, जिन्हें समाज ने तब तक सराहा जब तक उनकी कला किसी के स्वार्थ की पूर्ति करती रही चन्द्रपाल राजभर के इस चिंतन में एक गंभीर चेतावनी है — यदि हम केवल लाभ के आधार पर संबंध बनाते और निभाते रहेंगे, तो एक दिन समाज भावनात्मक दिवालियेपन की स्थिति में पहुंच जाएगा। जहां रिश्तों में भरोसा नहीं, केवल सुविधा का हिसाब-किताब होगा।हमें यह समझना होगा कि सच्चे रिश्ते न तो लेन-देन पर टिके होते हैं, न ही अवसरों पर। वे आत्मा की गहराइयों से जुड़ते हैं, बिना किसी अपेक्षा के। अगर हम अपने जीवन में उन संबंधों को प्राथमिकता दें जो नि:स्वार्थ हों, तो न केवल समाज का स्वरूप बदलेगा, बल्कि एक बेहतर और आत्मीय मानवता का निर्माण होगा। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर जैसे विचारकों के चिंतन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि रिश्तों को साधन नहीं, साधना समझें। वरना जिस स्वार्थ के लिए हम संबंधों को मोड़ते हैं, वही स्वार्थ एक दिन हमें अकेला कर देगा — और तब कोई चित्र, कोई कविता, कोई गीत हमारी संवेदना को लौटा नहीं पाएगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI

Tuesday, June 10, 2025

महाराजा सुहेलदेव के भर(राजभर) होने का प्रमाण

महाराजा सुहेलदेव को "राजभर" या "भर" समुदाय थे ।—इस संबंध में कुछ ऐतिहासिक, प्राचीन और औपनिवेशिक काल के ग्रंथ, रिपोर्ट्स और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में प्रमाण मिलते हैं। नीचे प्रमाण सहित उन प्रमुख ग्रंथों और स्रोतों की सूची दी जा रही है, जो इस दावे को आधार देते हैं:

✅ 1. मिरात-ए-मसूदी (Mirat-i-Masudi)

लेखक: अब्द-उर-रहमान चिश्ती (मुगल काल)

वर्णन:
यह किताब ग़ाज़ी सैयद सालार मसूद की जीवनी है। इसमें लिखा है कि "सुहेलदेव एक स्थानीय राजा थे जो भर जाति से थे।"

महत्त्व:
यह सुहेलदेव का सबसे प्राचीन उल्लेख करने वाली फारसी रचना है और सीधे "भर राजा" कहा गया है।

✅ 2. गज़ेटियर ऑफ़ यूनाइटेड प्रोविंस (Bahraich District Gazetteer)

प्रकाशन वर्ष: ब्रिटिश काल में 1904, 1928 संस्करण

विवरण:
इसमें चित्तौरा झील और सुहेलदेव का उल्लेख करते हुए उन्हें "a powerful Bhar king" कहा गया है।

पेज:
Bahraich Gazetteer, 1928, Page 174-175 पर स्पष्ट वर्णन है कि राजा सुहेलदेव भर जाति के थे जिन्होंने मुस्लिम आक्रांताओं को पराजित किया।

✅ 3. बहराइच का स्थानीय इतिहास (Local Records & Oral Traditions)

स्रोत:
बहराइच और श्रावस्ती क्षेत्र की लोककथाएं और स्थानीय दस्तावेजों में भर जाति और राजभरों की वंशावली से सुहेलदेव का संबंध बताया गया है।

✅ 4. बाबू शोभाराम द्वारा रचित “राजभार इतिहास” (19वीं सदी)

विवरण:
शोभाराम ने अपने इतिहास में महाराजा सुहेलदेव को भरवंशी या राजभर वंश का बताया है।

महत्त्व:
बहुजन नायकों को खोजने वाले समाज सुधारकों के लिए यह प्रमाणिक स्रोत रहा है।

✅ 5. “राजभार समाज और इतिहास” – लेखक: रामनिवास रामभर

सामग्री:
यह पुस्तक सामाजिक इतिहास की दृष्टि से लिखी गई है जिसमें गज़ेटियर व मिरात-ए-मसूदी के आधार पर महाराजा सुहेलदेव को राजभर बताया गया है।

✅ 6. “पिछड़ा समाज और इतिहास” – डॉ. रामशरण लाल

मुख्य विचार:
लेखक ने भर समाज को प्राचीन नागवंशीय क्षत्रिय मानते हुए सुहेलदेव को राजभर समाज का वीर बताया है।


✅ 7. “बहुजन नायक सुहेलदेव” – प्रो. बद्रीनारायण (GSU, प्रयागराज)

विवरण:
प्रो. बद्रीनारायण ने अपने शोध में सुहेलदेव को बहुजन समाज का नायक बताते हुए भर जाति से संबंधित बताया है।

✅ 8. “भारतीय इतिहास कोश” – लेखक: डॉ. रामशरण शर्मा

संकेत:
यह स्पष्ट रूप से भरों के बारे में चर्चा करता है और उन्हें प्राचीन भारत का क्षत्रिय समाज बताता है, जो मध्यकाल तक राजाओं की भूमिका में रहा, जिससे सुहेलदेव की जातीयता को जोड़ा जाता है।

✅ 9. पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

स्थान:
चित्तौरा झील, बहराइच

विवरण:
वहां खुदाई में मिले अवशेषों और लेखों से संकेत मिलता है कि यह क्षेत्र भर शासकों के अधीन था।


✅ 10. लोक साहित्य और जनश्रुतियां

गाथाएं:
अवध क्षेत्र के लोकगीतों और वाचिक परंपरा में सुहेलदेव को भर राजा कहा गया है, जो साम्राज्यवादी आक्रमणकारियों से लड़े थे।

निष्कर्ष 
इससे पूर्णता स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा सुहेलदेव भर जिसे वर्तमान में राजभर कहा जाता है राजभर समाज से थे अब इसमें कोई मतभेद नहीं होना चाहिए 

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI

Thursday, May 29, 2025

हम एक अभिशापित समाज में जी रहे हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

हम एक अभिशापित समाज में जी रहे हैं। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक लघु चिंतन

    हम एक ऐसे दौर में साँस ले रहे हैं, जहाँ मनुष्य अपनी संवेदनाओं से कटता जा रहा है, जहाँ रिश्ते औपचारिकता बन चुके हैं, और जहाँ जीवन की गति ने मनुष्य को मशीन से अधिक कुछ नहीं छोड़ा। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन — "हम एक अभिशापित समाज में जी रहे हैं" — कोई आकस्मिक या आवेशजन्य वक्तव्य नहीं है, बल्कि यह आज की सामाजिक, मानसिक और नैतिक स्थिति का गहन, आत्ममंथन से उपजा हुआ निष्कर्ष है। यह एक कलाकार की पीड़ा नहीं, पूरे समाज की छुपी हुई चीख है जिसे अब तक अनसुना किया गया है।इस अभिशाप की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह अभिशाप न तो किसी ग्रंथ में वर्णित है, न ही किसी ज्योतिषी की गणना में, बल्कि यह हमारे रोज़मर्रा के आचरण, हमारी सोच, और हमारी प्राथमिकताओं से उपजा हुआ है। जब एक समाज में ईमानदार को मूर्ख समझा जाने लगे, जब संवेदनशीलता को कमजोरी मान लिया जाए, जब कला, साहित्य, शिक्षा और अध्यात्म की जगह केवल धन और प्रदर्शन को महत्त्व मिलने लगे—तो समझिए कि वह समाज एक मौन अभिशाप से ग्रसित हो चुका है।मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। बच्चे जो स्वाभाविक रूप से कल्पनाशील और जिज्ञासु होते हैं, उन्हें हम अंकों और रट्टा मार परीक्षा पद्धतियों में उलझाकर उनकी मौलिकता को कुचल रहे हैं। युवाओं को हम केवल प्रतियोगिता में धकेल रहे हैं—'बेहतर से बेहतर' की ऐसी दौड़ में, जिसमें वे अपने भीतर के 'स्व' से बहुत दूर निकल जाते हैं। और वयस्क वर्ग—वह या तो सामाजिक मुखौटों में कैद है, या फिर मानसिक थकान और आत्मिक रिक्तता से जूझ रहा है।इस मानसिक और आत्मिक सूखे का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि समाज सामूहिक रूप से सहानुभूति खो रहा है। अब कोई किसी की पीड़ा को नहीं समझता, न महसूस करता है। कोई रो रहा हो तो हम फ़ोन निकालकर वीडियो बनाते हैं; कोई गिरता है तो हम हँसते हैं, कोई जला दिया जाता है तो हम हैशटैग ट्रेंड करते हैं, लेकिन मदद नहीं करते। यही तो है वह अभिशाप, जो हमें मनुष्य से केवल 'प्रतिक्रियाशील दर्शक' में बदल देता है।परंतु इस घने अंधकार में भी आशा की एक ज्योति है—विचारशीलता, आत्मचिंतन और कला। चन्द्रपाल राजभर जैसे कलाकार हमें स्मरण कराते हैं कि अभिशाप से मुक्ति भी संभव है, यदि हम भीतर झाँकने की साहसिकता रखें। एक कलाकार का कार्य केवल चित्र बनाना नहीं होता, वह समाज की चुप्पी को तोड़ता है, वह उन बातों को स्वर देता है जो हम कहते हुए डरते हैं। उनकी कला और चिंतन समाज के उस गूंगे आईने को भाषा देते हैं, जिसमें हम अपना कुरूप चेहरा देख सकें और फिर उसे बदलने की प्रेरणा पा सकें।हमें अब प्रश्न पूछने होंगे—क्या हमारी शिक्षा केवल रोज़गार के लिए है, या मानवता के निर्माण के लिए? क्या हमारे संबंध आत्मीय हैं, या केवल उपयोगी? क्या हमारी धार्मिकता केवल परंपराओं तक सीमित है, या करुणा और समता तक विस्तारित? और सबसे अहम—क्या हम अब भी संवेदनशील मनुष्य हैं, या केवल 'डेटा' बनकर जी रहे हैं?इस चिंतन का उद्देश्य केवल आलोचना नहीं है, बल्कि जागरण है। यह हमें झकझोरने आया है, यह हमें नींद से उठाकर आत्मा के आईने के सामने लाकर खड़ा करता है। यह हमें स्मरण कराता है कि हम चाहे जितना भी गिर गए हों, पुनः उठ सकते हैं। लेकिन उठने के लिए भीतर झाँकना होगा, स्वीकार करना होगा कि हम अभिशप्त हैं, और फिर उस अभिशाप को तोड़ने का साहसिक संकल्प लेना होगा।एक सच्चा समाज वहीं बनता है जहाँ संवेदना जीवित हो, जहाँ बच्चों की कल्पनाएँ खुलकर उड़ सकें, जहाँ बुज़ुर्गों की आँखों में तिरस्कार नहीं, सम्मान झलके, और जहाँ कलाकारों की पुकारें केवल दीवारों पर टँगी न रहें, बल्कि लोगों के हृदय तक पहुँचें चन्द्रपाल राजभर की यह चेतावनी हमें थमकर सोचने के लिए विवश करती है। क्या हम वाकई एक अभिशापित समाज में जी रहे हैं? यदि हाँ, तो आइए—हम एक-एक दीप जलाएँ, अपने भीतर। परिवर्तन वहीं से शुरू होगा। यही चिंतन की शक्ति है, और यही कला का असली प्रयोजन।

Saturday, May 24, 2025

जीवन एक संघर्ष है इस संघर्ष के दौर में अपने अनुभव को जरूर लिखना चाहिए आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

                      आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
चिंतन 
जीवन अपने आप में एक निरंतर चलने वाला संघर्ष है, जिसमें हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। यह संघर्ष कभी बाहरी परिस्थितियों से होता है, तो कभी अपने ही अंतरमन से। ऐसे दौर में जब मनुष्य असमंजस, पीड़ा और उतार-चढ़ावों से गुजर रहा होता है, तब सबसे बड़ी आवश्यकता होती है आत्ममंथन की — एक ऐसे चिंतन की जो उसकी चेतना को जागृत करे और उसे अपनी यात्रा का साक्षी बनाए।कलाकार चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन कि "संघर्ष के दौर में अपने अनुभव को जरूर लिखना चाहिए" न केवल व्यक्तिगत आत्माभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि सामाजिक चेतना का भी संप्रेषण है। जब कोई व्यक्ति अपने संघर्षों को लिपिबद्ध करता है, तो वह केवल एक डायरी नहीं भर रहा होता, बल्कि वह आने वाली पीढ़ियों के लिए जीने की राहें और सोचने की दृष्टि संजो रहा होता है। ये अनुभव न सिर्फ प्रेरणा का स्रोत बनते हैं, बल्कि समाज के अंदर दबी हुई आवाज़ों को उजागर भी करते हैं।चन्द्रपाल राजभर ने अपने चित्रों, कविताओं और लेखों के माध्यम से जिस तरह जीवन के कठोर पक्षों को उकेरा है, वह इस बात का प्रमाण है कि संघर्ष केवल पीड़ा नहीं देता, बल्कि एक नई दृष्टि भी देता है। उनके कला-सृजन में एक विशेष प्रकार की संवेदना दिखाई देती है — वह संवेदना जो मिट्टी से जुड़ी है, समाज से उपजी है और जीवन की ठोस वास्तविकताओं से टकरा कर आकार लेती है।जब कोई व्यक्ति अपने अनुभवों को कलमबद्ध करता है, तो वह अपने अंदर की ऊर्जा को दिशा देता है। वह अपने दर्द, अपनी उम्मीदों और अपनी जिजीविषा को शब्दों में ढाल कर न केवल खुद को हल्का करता है, बल्कि समाज के लिए एक आईना भी तैयार करता है। संघर्षों का लेखन दरअसल वह स्याही है जो भविष्य की किताबों में नायकत्व और प्रेरणा की कहानियाँ रचती है।वर्तमान समय में जब मानसिक अवसाद, सामाजिक विषमता और आंतरिक द्वंद्व बढ़ रहे हैं, ऐसे में लेखन और आत्म-अभिव्यक्ति का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह केवल कला की दृष्टि से नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी आवश्यक है। चन्द्रपाल राजभर की यह सोच इस युग की मांग को साकार करती है कि हर व्यक्ति को अपने संघर्षों को शब्दों में पिरोना चाहिए, ताकि वे केवल दुःख की गाथा न रहकर समाज के लिए सीख बन सकें।संघर्ष का अनुभव केवल व्यक्तिगत नहीं होता, उसमें सामूहिक पीड़ा भी गूंजती है। जब एक कलाकार, लेखक या कोई भी संवेदनशील व्यक्ति अपने संघर्षों को साझा करता है, तो वह दरअसल एक पूरी पीढ़ी की आवाज़ बन जाता है। यही कारण है कि चन्द्रपाल राजभर जैसे कलाकार का चिंतन केवल उनके व्यक्तिगत अनुभव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह सामाजिक दस्तावेज़ बन जाता है — एक ऐसा दस्तावेज़ जो समय की गति के साथ भी प्रासंगिक बना रहता है इसलिए जीवन में जब भी संघर्ष आएं, हमें उनसे भागने के बजाय उन्हें समझने और उनसे सीखने की जरूरत है। और उस सीख को लेखन या कला के माध्यम से संसार के साथ साझा करना हमारी जिम्मेदारी भी है और साधना भी। चन्द्रपाल राजभर की यह सोच हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है जो जीवन के किसी मोड़ पर ठहर सा गया है — कि उठो, सोचो, लिखो और समाज को वह रास्ता दिखाओ जो तुमने अपने अनुभवों से सीखा है। यही संघर्ष की सार्थक परिणति है।

 आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI