Friday, August 22, 2025

प्रेरणा गीत डॉ. चद्रपाल राजभर

प्रेरणा गीत 🌟

गिरते हुए तारे भी, उजाला छोड़ जाते हैं,
संघर्षों की राहों में, हीरे गढ़े जाते हैं।

मंज़िल नहीं कठिन है, बस हिम्मत को जगाना है
अंधकार चाहे हो कितना, दिया फिर भी जलाना है।
जो थक कर रुक न जाएँ, वही तो जगमगाते हैं
संघर्षों की राहों में, हीरे गढ़े जाते हैं।

तूफ़ान रुक ही जाए, अगर नाविक अडिग हो जाए
पर्वत भी झुकें आगे, अगर साहस खड़ा हो जाए।
विश्वास जिनके भीतर हो, वही इतिहास बनाते हैं
संघर्षों की राहों में, हीरे गढ़े जाते हैं।

आशा की किरण बनकर, बढ़ो तुम देश में आगे 
सपनों को साकार करो, उठो नव प्रयास से आगे।
जिनके कदम थकते नहीं, वही दुनिया बदलते हैं,
संघर्षों की राहों में, हीरे गढ़े जाते हैं।

गीत 
डाक्टर चन्द्रपाल रजभर

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बदल जाए अगर माली, चमन होता नहीं खाली,
मेहनत से सजे बगिया, तो हर मौसम रहे आली।

आंधी चाहे आये तो, न घबराना तुम साथी,
बीजों में है उजियारा, वही देता है गवाही।
बदल जाए अगर माली, चमन होता नहीं खाली…

पत्थर राह में कितने, कदम को रोक पाएंगे,
जो चलते दृढ़ इरादे, वो मंज़िल छू ही जाएंगे।
पसीने की ही बूँदों से, बनें सपनों की थाली,
बदल जाए अगर माली, चमन होता नहीं खाली…

अंधेरा जब भी छाएगा, उजाला संग आएगा,
हौसला अगर न टूटे तो, समय भी रंग लाएगा।
उठा लो दीप विश्वास का, रहे न रात काली,
बदल जाए अगर माली, चमन होता नहीं खाली…


Thursday, August 21, 2025

उल्टी गतिविधि - डाॅ. चन्द्रपाल राजभर

उल्टी बोली – सीधी समझ" खेल

कैसे खेलें:

1. समूह को दो टीमों में बाँट दीजिए।

2. एक टीम का सदस्य कोई सामान्य वाक्य बोलेगा, लेकिन शब्दों का क्रम उल्टा करके।

जैसे: "मैं पानी पी रहा हूँ।" → "हूँ रहा पी पानी मैं।"

3. दूसरी टीम को इसे सही वाक्य में बदलकर बताना होगा।

4. सही जवाब देने पर अंक मिलेंगे।

5. जो टीम सबसे ज़्यादा वाक्य सही बनाएगी, वही जीतेगी।

मजेदार उदाहरण:

"खा खाना सबने आज" → "आज सबने खाना खा लिया।"

"हूँ रहा नाच मैं" → "मैं नाच रहा हूँ।"

"है प्यारा कितना यह खेल" → "यह खेल कितना प्यारा है।"

 डाक्टर चन्द्रपाल राजभर.

Sunday, August 10, 2025

पर्यावरण पर लेख एवं संक्षिप्त परिचय

🎤 तपती धरती पर संवेदना की हरियाली: डाॅ.चन्द्रपाल राजभर का पर्यावरणीय योगदान
नाम - डॉ.चन्द्रपाल राजभर 
पिता/पति का नाम-: राम अनुज राजभर 
जन्म स्थल-: ग्राम सजमपुर जनपद सुल्तानपुर
जन्मतिथि -:06/07/1990 
राष्ट्रीयता-:भारतीय 
पता 
स्थाई पता -:ग्राम सजमपुर पोस्ट हरपुर थाना अखण्डनगर तहसील कादीपुर जनपद सुलतानपुर उत्तर प्रदेश पिन कोड 22 8172
वर्तमान पता-: प्राथमिक विद्यालय रानीपुर कायस्थ कादीपुर जनपद सुलतानपुर उत्तर प्रदेश पिन कोड 228145 
ई-मेल-:chandrapal6790@gmail.com
मोबाइल नम्बर-:9721764379,7984612205
शिक्षा-: बीटीसी,एम.ए.(चित्रकला)मास्टर आॅफ योगा,मास्टर आॅफ जर्नलिज्म(MJ) डॉक्ट्रेट उपाधि (ड्राइंग पेंटिंग)
पद-
चित्रकारिता /बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक विद्यालय रानीपुर कायस्थ ब्लॉक-कादीपुर में सहायक अध्यापक
कार्यक्षेत्र /विधा-: कला एवं शिक्षा
वर्तमान पद पर सेवा -
राष्ट्रीय अध्यक्ष (कला एंव शिक्षक विंग) क्राइम इन्फार्मेशन ब्यूरो इण्डिया, 
जिला आईटी सेल प्रभारी आॅल टीचर/इम्पलाईज बेलफेयर ऐसोशिऐशन उत्तर प्रदेश
जिलाध्यक्ष क्राइम इन्फार्मेशन ब्यूरो इण्डिया
जिला मीडिया प्रभारी उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ सुल्तानपुर 
लेखक गीतकार- (SWA) स्क्रीन राइटर एसोसिएशन अंधेरी मुंबई
संपादक(पूर्व)नयी दिशा पत्रिका
लेखक- प्रकृति चित्रण पुस्तक आईजी/इण्टरमीडिएट), ग़ज़ल अभिलाषा दर्द-ए-बेवफाई खण्ड-१, ग़ज़ल अभिलाषा दर्द-ए-तन्हाई खण्ड-2, अभिलाषा मोटिवेशनल ग़ज़ल खण्ड-3
सहायक अध्यापक वेसिक शिक्षा विभाग सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
कवि,लेखक,चित्रकार,पत्रकार, मूर्तिकार ,संगीतकार, सिंगर,शिक्षक,सोसल ऐक्टविष्ट, 
वैज्ञानिकवादी सामाजिक कला चिन्तक
 1. परिचय: जब तपिश ने चेतना जगाई
बढ़ती गर्मी, तेज़ धूप और पर्यावरणीय असंतुलन ने जब मन को विचलित किया, तब मेरे भीतर एक भाव जगा कि अगर आज भी प्रकृति के लिए कुछ नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ केवल ताप, प्रदूषण और सूखे भविष्य की विरासत पाएंगी। मैं डाॅ.चन्द्रपाल राजभर, एक चित्रकार, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता, वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहा हूं। मेरा मानना है कि प्रकृति केवल चित्रों में रंगों का विषय नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। प्रकृति के प्रति मेरा प्रेम केवल कैनवास तक सीमित नहीं रहा, वह पौधों, वृक्षों और हरियाली में भी प्रकट होता है।



 2. वृक्षारोपण की प्रेरणा: तपती धूप से उपजा संकल्प
वृक्षारोपण की प्रेरणा मुझे मार्च की उस दोपहर से मिली जब विद्यालय परिसर में खड़ा होकर मैंने सूरज की तीखी किरणों को सीधे महसूस किया। उस समय मन में एक विचार कौंधा—"अगर आज छांव नहीं बनाई गई, तो कल कोई छांव मिलेगी ही नहीं।" उसी क्षण मैंने ठान लिया कि पर्यावरण को बचाने का सबसे सरल, सस्ता और प्रभावी तरीका यही है कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं। मैंने ढिटर का एक पौधा लगाया, जो आज एक सुंदर, घना वृक्ष बन चुका है और विद्यालय में आने वाले बच्चों को छांव देता है।

 3. अब तक कुल लगाए गए पौधों की संख्या
वर्ष 2007 से लेकर अब तक, मैंने अपने विद्यालय, घर, गाँव और विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर लगभग 1200 से अधिक पौधे लगाए हैं। यह कार्य मेरे लिए कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन गया है। इन पौधों को लगाना मेरे लिए किसी सामाजिक सेवा से कम नहीं। हर पौधा मेरे लिए एक जीवन के अंकुर के समान है, जो भविष्य को सांसें देगा।

 4. वृक्ष बन चुके पौधों की संख्या
इन लगाए गए पौधों में से अब तक लगभग 402 पौधे पूर्ण रूप से वृक्ष बन चुके हैं। कुछ विद्यालय के बच्चों की देखरेख में, कुछ ग्रामीणों द्वारा संरक्षित किए गए, और कुछ स्वयं मेरी देखरेख में बड़े हुए हैं। ढिटर, नीम, पीपल, आम,अमरूद, सहजन, अर्जुन और आम जैसे पेड़ आज अपनी शाखाओं में न केवल छांव देते हैं, बल्कि पर्यावरण को शुद्ध भी करते हैं। इन वृक्षों ने यह प्रमाणित किया है कि एक व्यक्ति की पहल समाज को बदल सकती है।

5. पर्यावरण संरक्षण के प्रति जन-जागरूकता का कार्य
सिर्फ पेड़ लगाना काफी नहीं होता, लोगों को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करना ज़रूरी होता है। मैंने बच्चों को प्रकृति की महत्ता समझाने के लिए विशेष कक्षाएं चलाईं। दीवारों पर प्रेरक पर्यावरणीय चित्र बनवाए, स्कूल के हर कार्यक्रम में एक पौधा लगाने की परंपरा शुरू की। साथ ही सामाजिक मंचों, कार्यशालाओं और लेखों के माध्यम से आम जनता को जागरूक करता रहा हूं कि "विकास केवल इमारतें नहीं, हरियाली भी है।" मेरे गीतों, कविताओं और चित्रों में भी पर्यावरणीय संदेश समाहित रहता है।

6. पर्यावरण संरक्षण हेतु सम्मान एवं पहचान
मेरे द्वारा किए गए कार्यों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी मिली है। मुझे पर्यावरण प्रहरी सम्मान 2020,पर्यावरण प्रहरी सम्मान-2021,अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण योद्धा सम्मान 2022,अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण योद्धा सम्मान- 2023,अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण वॉरियर सम्मान 2024,राष्ट्रीय पर्यावरण एवं बालिका शिक्षा पुरस्कार-2025,इंटरनेशनल एनवायरनमेंट वॉरियर अवार्ड 2025 आदि लगभग 30 से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए हैं, जो इस बात के प्रमाण हैं कि अगर कार्य सच्चे मन से किया जाए, तो समाज उसे सराहता भी है।

इन सम्मानों से मुझे व्यक्तिगत संतोष तो मिलता ही है, साथ ही यह जिम्मेदारी भी महसूस होती है कि मैं और अधिक लोगों को इस अभियान से जोड़ूं, ताकि हर गली, हर आंगन, हर विद्यालय एक हरित दिशा में कदम बढ़ा सके।

 "पेड़ लगाइए, पीढ़ियाँ बचाइए"—यही मेरा संदेश है।
— आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर

Thursday, July 31, 2025

एक भारत प्यारा लगे

गीत: एक भारत प्यारा लगे

पर्वत, नदियाँ, खेत हरे हैं
सबके मन में दीप जले हैं।
रंग अनेक, विssचार नयेsss हैं,
दिल में भारत प्रेम पलेsss हैं।
पर्वत......

बोली-बानी लाख रही है
पर मिट्टी की ,खुशबू वही है।
चलो मिलाएँ हाथ सभी से,
देश बने मिसाल सही है।
पर्वत.....

जात-पात की ,छोड़ गुलामी,
भारत को दे, प्रेम निशानी।
भाईचारे का स्वर जब गूंजे,
हर कोना फिर, फूलों से पूंजे।
पर्वत.......

गीत 
चन्द्रपाल राजभर 
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गीत: "एक भारत प्यारा है"

नीला अम्बर, हरे नज़ारे,
फूल खिले हर बाग़ किनारे।
हर दिल में है प्रेम हमारा,
सपनों जैसा देश हमारा।

एक भारत प्यारा है,
सबका इसमें सहारा है।

भाषा-भेष भले हों कितने,
मन के दीप जलें हैं अपने।
मिलकर बोलें स्नेह की बोली,
सदियों तक ये बात न भूली।

एक भारत प्यारा है,
सबका इसमें सहारा है।

cp
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कजरी: “चलो दीप जलाएं 

चलो रे मनवा, कुछ कर दिखाएँ
अंधियारी रातों में,चलो दीपक जलाएँ।
चलो रे मनवा ,कुछ करके दिखायें ।।

हिम्मत की नैया है, साहस की पतवार
छू लेंना अंबर को, कभी पाँव न पसार  
चलो रे मनवा......

रुकना नहीं अब,थकना नहीं है
हर मुश्किल को अब, सुलझाना यहीं है।

चलो रे मनवा , कुछ कर दिखाएँ,
अंधियारी रातों में, चलो दीपक जलाएँ।

चन्द्रपाल राजभर

Sunday, July 27, 2025

तपती धूप ने जब सताया,तब छाया के बीज से एक कलाकार ने धरती को संवेदना का आँचल पहनाया।

तपती धूप ने जब सताया,तब छाया के बीज से एक कलाकार ने धरती को संवेदना का आँचल पहनाया।


तपती हुई दोपहर, जब अप्रैल की धूप मानों धरती को जलानें पर उतारू हो, उस समय कोई यदि छाया का सपना देखे तो वह केवल कल्पना नहीं, संवेदनशीलता की चरम अभिव्यक्ति है। ऐसा ही एक संवेदनशील क्षण था, जब मैंने अपने विद्यालय परिसर में ढिठोर का पौधा रोपा। उस क्षण मेरे मन में बस एक ही बात चल रही थी—यदि आज हम न सोचे, तो आने वाले बच्चे/पीढ़ियाँ तपती धूप में जलते रहेंगे, छाया के लिए तरसते रहेंगे।प्रकृति से मेरा लगाव केवल एक चित्रकार का सौंदर्यबोध भर नहीं है, यह मेरे भीतर की उस पीड़ा की अभिव्यक्ति है, जो हर बार जलती गर्मी में और सूखती नदियों में महसूस होती है। एक कलाकार के रूप में मैंने प्रकृति को न केवल रंगों में उतारा है, बल्कि उसे जिया भी है। हर पेड़ जो मैंने लगाया, वह मेरे चित्र का जीवंत अंश है—कभी वह पत्तियों की सरसराहट में मेरी कविता बनती है, तो कभी उसकी छाया मेरे विचारों की शांति बन जाती है।मनोविज्ञान यह कहता है कि हर संवेदनशील मनुष्य भीतर से प्रकृति से जुड़ा होता है। जब हम किसी फूल को मुरझाता देखते हैं और मन दुखी होता है, तो वह हमारी आत्मा का संकेत होता है कि हम अभी भी इंसान हैं। यह इंसानियत ही तो है, जो हमें पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करती है, बिना किसी शोर, बिना किसी अपेक्षा के। और जब वही संवेदनशीलता मेरे भीतर कलाकार बनकर फूटती है, तो मैं उसे केवल चित्रों में नहीं, पेड़ों की छाया में भी उकेरता हूं।5 जून, जब विश्व पर्यावरण दिवस आता है, तब मैं उसे एक औपचारिकता की तरह नहीं देखता। यह दिन मेरे लिए आत्ममंथन का दिन होता है—क्या मैंने इस वर्ष धरती के लिए कुछ किया? क्या मेरी आत्मा ने प्रकृति को कुछ लौटाया? शायद इसी सोच के चलते मैं केवल विद्यालय परिसर में ही नहीं, बल्कि नगर के विविध स्थलों पर भी पौधे लगाने का निरंतर प्रयास करता हूं।ढिठोर का वह पेड़, जो अब विद्यालय में विद्यार्थियों को छाया दे रहा है, मेरी सोच और चिंता का जीवंत प्रमाण है। बच्चों को जब उस पेड़ के नीचे बैठते देखता हूं, तो मन को सुकून मिलता है कि मैंने उन्हें सिर्फ शिक्षा ही नहीं, जीवन को बचानें की एक दिशा भी दी है। वे अब पेड़ों को किताबों की तरह पढ़ते हैं, उन्हें समझते हैं, और सबसे बड़ी बात—उन्हें अपनाते हैं।मनुष्य जब तक प्रकृति से अलग होकर विकास की बातें करेगा, तब तक विनाश तय है। वनों की कटाई, कंक्रीट की दीवारें, और हवा में घुलते ज़हर ने इस धरती को जर्जर बना दिया है। यह वही धरती है जो कभी पुष्पों से लदी रहती थी, अब धूल से भरी है। जब गर्मी का ताप असहनीय हो गया, तब मैंने जाना कि राहत केवल मशीनों में नहीं, पेड़ों में है। और यह समझ ही मेरे जीवन की प्रेरणा बन गई।शायद यही कारण है कि मेरे प्रयासों को समाज ने पहचाना, और मुझे पर्यावरण योद्धा जैसे सम्मानों से नवाजा गया। लेकिन पुरस्कार मेरे लिए केवल प्रमाण नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का एहसास हैं—कि मुझे और करना है, औरों को भी जोड़ना है।विद्यालय अब केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक बन गया है। बच्चे अब जानते हैं कि किताबों से ज़्यादा जरूरी पेड़ भी हैं। और मैं, एक शिक्षक, एक कलाकार, एक लेखक, एक कवि, एक सिंगर,एक भारत का नागरिक होने के नाते, यह संकल्प लेता हूं कि जब तक सांसें हैं, हर वर्ष कुछ पौधे धरती को अर्पित करता रहूंगा।
क्योंकि एक कलाकार होने के नाते मैं मानता हूं—धरती सबसे सुंदर चित्र है, और हम सब उसके रंग। अगर हमनें यह चित्र बिगाड़ दिया, तो फिर कोई कैनवास नहीं बचेगा।

— आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर