Wednesday, March 12, 2025

होली गीत

होली है.........

होली में धमाल मचाएंगे,
गुलाल के रंग उड़ाएंगे।
बजाएं मृदंग संग ढोलक,
हर गली-गली में जाएंगे।।

पिचकारी भर-भर मारेंगे,
सबको गोरी कर डालेंगे।
हंसते-गाते झूमेंगे हम,
फागुन रस में नहाएंगे।।

भंग ठंडाई छलकाएंगे,
मौज-मस्ती में आएंगे।
चन्द्रपाल जी के संग मिलकर,
होली का रंग जमाएंगे।।

राधा-कृष्ण की लीला होगी,
बरसाने की महफ़िल होगी।
हर कोई गाए प्रेम के सुर,
होली सतरंगी होगी।।

रंग ना छूटे मनवा से,
सुर ना रूठे तनवा से।
गीत-ग़ज़ल में झूम उठे,
रंग लगा लो छनवा से।।

गीत 
चन्द्रपाल राजभर 

Monday, March 10, 2025

पुरानी पेंशन बहाली गीत

संघर्ष की ज्वाला जलाएंगे हम,
पुरानी पेंशन को लाएँगे हम!
 जो हक़ हमारा, वो लेकर रहेंगे,
सरकार से अब आर-पार करेंगे!

डाक्टर "रामाशीष सिंह जी अमर रहें! विजय कुमार बंधु, जिंदाबाद,नीरजपति त्रिपाठी जिंदाबाद ,अशोक सिंह गौरा ज़िंदाबाद!"
"जय युवा! जय अटेवा! अबकी बार – पुरानी पेंशन!"

 हमने बचाई ये धरती हरी,
हमने चलाई ये शिक्षा गली।
 मेहनत से हमने ये राष्ट्र संवारा,
अब क्यों हमें कर रहे हो बेसहारा?
 ना चुप रहेंगे, ना रुकेंगे हम,
पुरानी पेंशन बहाल करेंगे हम!

"डाक्टर रामाशीष सिंह जी अमर रहें! विजय कुमार बंधु जिंदाबाद,नीरजपति त्रिपाठी जिंदाबाद ,अशोक सिंह गौरा ज़िंदाबाद!"
"जय युवा! जय अटेवा! अबकी बार – पुरानी पेंशन!"

हक़ की लड़ाई, ये धर्म हमारा,
संघर्ष यही है अब कर्म हमारा।
 क़लम हमारी अब, हथियार बनेगी,
ये जंग हमारी,  जीत बनेगी !
अब देखेगी दुनिया हमारी हुंकार,
अबकी बार – पुरानी पेंशन बहाल!

"डाक्टर रामाशीष सिंह जी अमर रहें! विजय कुमार बंधु, जिंदाबाद ,नीरजपति त्रिपाठी जिंदाबाद ,अशोक सिंह गौरा ज़िंदाबाद!"
"जय युवा! जय अटेवा! अबकी बार – पुरानी पेंशन!"

 हमने दिया है ये जीवन सारा,
अब क्यों हमें कर रहे हो बेसहारा?
जब तक न होगी पेंशन बहाल,
हम लड़ेंगे, हम लड़ेंगे हर हाल!
एकता की ताकत दिखाएँगे हम,
पुरानी पेंशन को लाएँगे हम!

"जब तक सांस चलेगी, संघर्ष रहेगा!"
" डाक्टर रामाशीष सिंह जी अमर रहें! विजय कुमार बंधु जिंदाबाद, नीरजपति त्रिपाठी जी जिन्दाबाद,अशोक सिंह गौरा ज़िंदाबाद!"
"जय युवा! जय अटेवा! अबकी बार – पुरानी पेंशन!"

गीत -आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

समाज आपका साथ कभी नहीं देगा बल्कि आपका उपवास ही उड़ायेगा इसलिए समाज को पीछे छोड़कर जीना शुरू करो वरना यही समाज के पढ़े-लिखे लोग आपको पीछे खींचनें और दबाने की भरपूर कोशिश करेंगे

समाज आपका साथ कभी नहीं देगा बल्कि आपका उपवास ही उड़ायेगा इसलिए समाज को पीछे छोड़कर जीना शुरू करो वरना यही समाज के पढ़े-लिखे लोग आपको पीछे खींचनें और दबाने की भरपूर कोशिश करेंगे सामने तो नहीं आएंगे लेकिन दूसरों के सहारे आपको नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन 


समाज में स्वीकृति और अस्वीकृति की अवधारणा सदियों से चली आ रही है। जब कोई व्यक्ति अपनी अलग राह बनाता है, अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करता है या समाज की पारंपरिक सोच से अलग हटकर कुछ नया करने का प्रयास करता है, तो अक्सर उसे आलोचनाओं, विरोध, और अवहेलना का सामना करना पड़ता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि समाज हमेशा स्थिरता और पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने की प्रवृत्ति रखता है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह अपनी पहचान को समाज के साथ जोड़कर देखता है। लेकिन जब यही समाज किसी व्यक्ति को उसके विचारों के कारण हतोत्साहित करने लगता है, तो वह मानसिक दबाव में आ जाता है। खासकर जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष कर रहा होता है, अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा होता है, तब समाज उसके संघर्ष को पहचानने की बजाय उसका उपहास उड़ाता है। यह एक प्रकार की मानसिकता है जिसे "क्रैब मेंटेलिटी" (Crab Mentality) कहा जाता है—जिसमें जैसे ही कोई व्यक्ति ऊपर उठने की कोशिश करता है, बाकी उसे नीचे खींचने लगते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो अधिकांश महान व्यक्तियों को समाज से ही सबसे अधिक विरोध का सामना करना पड़ा है। गैलिलियो को जब यह कहा गया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, तो तत्कालीन समाज ने उसे नकार दिया और उसे दंडित किया गया। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जब दलितों के अधिकारों की बात की, तो समाज के ही कुछ प्रभावशाली वर्गों ने उन्हें नीचा दिखाने का हर संभव प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद जब भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर रख रहे थे, तब भी कई लोग उनके आलोचक थे।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समाज के पढ़े-लिखे और प्रभावशाली लोग भी परिवर्तन से डरते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई व्यक्ति सामाजिक ढांचे को चुनौती दे और अपनी अलग पहचान बनाए। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति अपने विचारों के साथ आगे बढ़ता है, तो उसे प्रत्यक्ष रूप से विरोध का सामना नहीं करना पड़ता, बल्कि परोक्ष रूप से उसका मज़ाक उड़ाया जाता है, उसे हतोत्साहित किया जाता है, और उसे दूसरों के माध्यम से दबाने की कोशिश की जाती है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो, यह समाज की 'सामूहिक मानसिकता' (Group Psychology) का परिणाम है। जब एक समूह किसी व्यक्ति को अपने नियमों से हटकर चलते हुए देखता है, तो उसे असहजता महसूस होती है। यह असहजता डर से उत्पन्न होती है—डर इस बात का कि यदि एक व्यक्ति सफल हो गया, तो बाकी लोगों को अपनी सीमित सोच को छोड़ना पड़ेगा। और यहीं से समाज की प्रतिरोधी मानसिकता जन्म लेती है।
व्यक्ति को यदि अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो उसे समाज की परवाह किए बिना आगे बढ़ना होगा। गांधी जी ने कहा था, "पहले वे आपको नज़रअंदाज़ करेंगे, फिर आप पर हंसेंगे, फिर वे लड़ेंगे, और अंत में आप जीत जाएंगे।" यह प्रक्रिया हर उस व्यक्ति के जीवन में घटित होती है जो अपनी राह खुद चुनता है।
इसलिए समाज के बंधनों में बंधकर जीने की बजाय, व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाना चाहिए। उसे समझना होगा कि समाज का कार्य केवल प्रतिक्रिया देना है, निर्णय स्वयं व्यक्ति को लेना होता है। जब वह अपने विचारों और सपनों पर अडिग रहेगा, तब यही समाज जो आज उपहास कर रहा है, कल उसकी प्रशंसा करेगा।

Sunday, March 9, 2025

कभी-कभी लोग अर्थ का अनर्थ समझ बैठते हैं कहा जाता है आम समझ बैठते हैं इमली आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

कभी-कभी लोग अर्थ का अनर्थ समझ बैठते हैं कहा जाता है आम समझ बैठते हैं इमली आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

मानव स्वभाव की सबसे जटिल विशेषताओं में से एक है उसकी व्याख्या करने की प्रवृत्ति—कभी-कभी बिना गहराई से समझे ही किसी बात का निष्कर्ष निकाल लेना। संचार की इस त्रुटि का परिणाम अक्सर गलतफहमियों, अनावश्यक विवादों और सामाजिक असंतुलन के रूप में सामने आता है। जब लोग किसी संदेश, शब्द, या कला के पीछे के वास्तविक भाव को समझे बिना ही उस पर अपनी धारणाएँ आरोपित कर देते हैं, तब अर्थ का अनर्थ होने की स्थिति उत्पन्न होती है। यह समस्या सिर्फ व्यक्तिगत वार्तालाप तक सीमित नहीं है, बल्कि साहित्य, कला, राजनीति, धर्म और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी देखी जाती है।

मनुष्य की सोचने और समझने की प्रक्रिया अनेक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों से प्रभावित होती है। मस्तिष्क एक जटिल संरचना है जो सूचना को संसाधित करने के लिए पूर्व-अनुभव, संस्कार, शिक्षा और व्यक्तिगत धारणाओं का उपयोग करता है। जब कोई व्यक्ति किसी सूचना को ग्रहण करता है, तो वह उसे अपने पूर्वाग्रहों और अनुभवों के चश्मे से देखता है, जिससे उसकी व्याख्या अन्य लोगों से भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी चित्रकार ने एक ऐसी पेंटिंग बनाई जिसमें लाल और काले रंगों का अधिक प्रयोग किया गया हो, तो कुछ लोग इसे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक मान सकते हैं, जबकि कलाकार ने शायद उसमें गहराई, संघर्ष और शक्ति का भाव भरा हो।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन कि "कहा जाता है आम, समझ बैठते हैं इमली" इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है। यह कथन केवल भाषाई स्तर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी हमारी व्याख्या करने की सीमा को उजागर करता है। जब कोई व्यक्ति कुछ कहता है, तो आवश्यक नहीं कि श्रोता उसे उसी रूप में ग्रहण करे। एक ही शब्द अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग अर्थ रख सकता है। यही कारण है कि साहित्य और कला में प्रतीकों की व्याख्या भिन्न-भिन्न रूपों में होती है।

इस समस्या को गहराई से समझने के लिए एक और उदाहरण देखें। मान लीजिए कि कोई वैज्ञानिक कहता है कि "परमाणु विभाजन से ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।" यदि यह कथन किसी वैज्ञानिक समुदाय तक पहुँचे, तो वे इसे ऊर्जा उत्पादन और न्यूक्लियर फिजिक्स के संदर्भ में समझेंगे। लेकिन यदि यही कथन किसी ऐसे व्यक्ति तक पहुँचे जो केवल द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभावों से परिचित है, तो वह इसे नकारात्मक रूप में ग्रहण कर सकता है, क्योंकि उसके लिए परमाणु विभाजन का अर्थ केवल बम और विनाश से जुड़ा होगा। इस तरह, व्याख्या करने की प्रक्रिया में अनुभव और पूर्वग्रह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह प्रवृत्ति हमारे संज्ञानात्मक पूर्वग्रह (cognitive biases) के कारण भी होती है। कन्फर्मेशन बायस (Confirmation Bias) इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ लोग वही अर्थ निकालते हैं जो उनकी पहले से बनी धारणा का समर्थन करता हो। इसी तरह हेलो इफ़ेक्ट (Halo Effect) के कारण लोग किसी व्यक्ति, विचार या वस्तु के एक पहलू को देखकर उसके अन्य पहलुओं के बारे में भी निष्कर्ष निकाल लेते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई कलाकार सामाजिक मुद्दों पर कलाकृति बनाता है, तो कुछ लोग उसे सामाजिक कार्यकर्ता मान सकते हैं, जबकि उसका उद्देश्य केवल कलाकृति के माध्यम से भावनाएँ व्यक्त करना हो सकता है।

समाज में इस समस्या को कम करने के लिए हमें अपनी व्याख्या करने की क्षमता को अधिक तार्किक और खुली सोच वाला बनाना होगा। इसका एक तरीका यह है कि हम पहले सुनी और देखी गई बातों का पूरा संदर्भ समझें और फिर निष्कर्ष निकालें। यह सिर्फ कला या भाषा तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में लागू होता है। उदाहरण के लिए, जब कोई बच्चा माता-पिता से कहता है कि "मुझे अकेला छोड़ दो," तो माता-पिता इसे अनुशासनहीनता मान सकते हैं, जबकि वास्तव में यह बच्चा मानसिक रूप से किसी तनाव से गुजर रहा हो सकता है।
संवाद और व्याख्या के दौरान हमें पूर्वग्रहों से बचकर निष्पक्षता को अपनाने की आवश्यकता है। कोई भी संचार केवल शब्दों तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसके पीछे की भावना, संदर्भ और व्यक्ति की मानसिक स्थिति भी उसमें शामिल होती है। जब तक हम केवल सतही रूप से बातों को ग्रहण करते रहेंगे, तब तक "कहा जाता है आम, समझ बैठते हैं इमली" जैसी स्थितियाँ बनी रहेंगी। वास्तविक समझदारी इसी में है कि हम चीजों को केवल अपनी दृष्टि से नहीं, बल्कि एक व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करें।
 आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Sunday, March 2, 2025

डगर कठिन है, पहर कठिन है।। प्रेरणा गीत- चन्द्रपाल राजभर

डगर कठिन है, पहर कठिन है
(प्रेरणा गीत – कहरवा ताल)

मुखड़ा
डगर कठिन है, पहर कठिन है।।2।।
चलना फिर भी पड़ता है।
अंधियारों में दीप जलाकर,
चलना फिर भी पड़ता है 
डगर......

अंतारा
आंधियों से डरना क्या 
मंज़िल कोs पाना है।
घाव लगे राहों में तो क्या 
मरहम खुद बन जाना है।
सपनों का ये शहर कठिन है
चलना फिर भी पड़ता है।
डगर....

थकना मना है, रुकना मना है,
सपनों का ये कहना है।
हौसलों की छांव में रहकर,
अग्निपथ पर चलना है।
सफर में हर इक पहर कठिन है,
चलना फिर भी पड़ता है।
डगर.....

बांध लिया है जज़्बा जिसने
जीता वही तूफानों से
हार गया वो बैठ गया जो
लड़ा नहीं तूफानों से 
कांटों का ये सफर कठिन है
चलना फिर भी पड़ता है।
डगर.....

(स्वरचित)
लेखक - चन्द्रपाल राजभर
_______________________

चलते जाना है जब तक जान है
(प्रेरणा गीत – कहरवा ताल)

मुखड़ा
चलते जाना है, जब तक जान है,
राहें मुश्किल हैं, पर पहचान है।
जो डगमगाए वो इंसान कैसा,
सपनों के पीछे ये अरमान है।

अन्तरा
तूफ़ां आए या बरसे अंगारे,
चलना होगा बनके उजियारे।
हिम्मत के दीपक जलते रहें,
मंज़िल खुद चूमेगी तेरी प्यारे।
जो लड़ जाए वो ही यहा महान है,
चलते जाना है,जब तक जान है।

हर ठोकर से बनता नया रास्ता,
हार में छुपा है जीत का वास्ता।
जो गिरके संभले वही जीतता,
हौसला रख, यही है सहारा तेरा।
कदम बढ़ाओ चलो नई उड़ान है,
चलते जाना है,जब तक जान है।

धूप है, कांटे हैं, बडीs राहों में,
फूल खिलेंगे हैं,इन बाहों में।
डर से डरना नहीं, बस चलना है 
सपनों की दुनिया सच करना है।
हर मुश्किल में छुपा, कई वरदान है,
चलते जाना है, जब तक जान है।

(स्वरचित)
लेखक - चन्द्रपाल राजभर

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3
प्रेरणा गीत 
(संघर्ष भरा जीवन गीत)

चलो मशाल जलाते हैं, अंधेरों से टकराते हैं,
जहां रुके थे कल सपने, वहां नयी राह बनाते हैं।

कांटों पे चलके जो बढ़ते हैं,
वही तो फूल खिलाते हैं,
घबराए जो तूफानों से,
वो साहिल क्या पा सकते हैं?
छोटे छोटे क़दमों से, एक दिन सूरज लाते हैं,
चलो मशाल जलाते हैं, अंधेरों से टकराते हैं।

पसीने की हर इक बूंद में,
छुपा है इक अरमान नया,
जो गिर के फिर से उठ जाए,
वो होता है इंसान नया।
संघर्षों की छांव तले, एक दिन आसमान पाते हैं,
चलो मशाल जलाते हैं, अंधेरों से टकराते हैं।

राहों में जो पत्थर आए,
उनसे ही सीढ़ियां बनती हैं,
जो आंखों में सपना रखते,
उनकी किस्मत खुद सजती है।
हर धड़कन में आग लिए, हम जीत की थाह पाते हैं,
चलो मशाल जलाते हैं, अंधेरों से टकराते हैं।

छोटे से दीपक की लौ से,
सूरज बनकर चमकेंगे,
जो मन में हो सच्ची मेहनत,
वो खुद को रौशन करेंगे।
मिट्टी में जो बीज पड़े, एक दिन सागर बन जाते हैं,
चलो मशाल जलाते हैं, अंधेरों से टकराते हैं।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

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4
प्रेरणा गीत 
मंजिल को पाना है...
(लय- दादरा ताल, धीमी गति में भावनात्मक सुर के साथ)

चल उठ मेरे साथी, तुझे चलना ही होगा,
अंधेरों के साए से, तुझे लड़ना ही होगा।
रुक जाए जो राहों में, वो किस्मत बदलता नहीं,
जो कांटों से डर जाए, वो इतिहास रचता नहीं।

आंधियों में जो दीप जले,
वही सवेरा लाएगा,
जो गिरके भी मुस्काएगा,
वही मुकाम पाएगा।
सपने नहीं हैं खिलौने,
इन्हें संघर्ष से सजाना होगा,
चल उठ मेरे साथी, तुझे चलना ही होगा।

टूट जाए जो हौसले,
तो मंजिलें भी रूठ जाती हैं,
जो खुद पर ऐतबार करे,
वही किस्मत संवार जाती हैं।
हर चोट को सहकर,
तुझे चट्टान बन जाना होगा,
चल उठ मेरे साथी, तुझे चलना ही होगा।

पसीने की वो बूंदें,
तेरे ख्वाबों का श्रृंगार हैं,
हर मेहनत की सांस में,
तेरी जीत के इकरार हैं।
सूरज भी तेरे आगे झुकेगा,
बस तुझे जलना होगा,
चल उठ मेरे साथी, तुझे चलना ही होगा।

मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं,
जो चलते हैं टूट जाने तक,
सपने उन्हीं के पूरे होते हैं,
जो लड़ते हैं खुद को पाने तक।
हर दर्द को मोती बना,
तेरे नाम का सूरज चमकेगा,
चल उठ मेरे साथी, तुझे चलना ही होगा।

गीत 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5
प्रेरणा गीत 

कुछ लोगों के बेवफा हो जाने से पूरा समाज बेवफा नहीं हो जाता आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

कुछ लोगों के बेवफा हो जाने से पूरा समाज बेवफा नहीं हो जाता आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

कुछ लोगों की बेवफाई इंसान के मन को इतना तोड़ देती है कि उसे पूरी दुनिया ही बेवफा नजर आने लगती है। जब अपनों के धोखे का दर्द दिल में घर कर जाता है, तो विश्वास की दीवारें धीरे-धीरे गिरने लगती हैं। जिस इंसान ने सच्चाई और मोहब्बत के बीज बोए होते हैं, वही खुद को अकेला और ठगा हुआ महसूस करता है। लेकिन यह दुनिया उतनी भी बुरी नहीं है जितनी हमें कुछ लोगों की बेवफाई के बाद नजर आने लगती है।

जीवन का यह कठोर सत्य है कि हर इंसान एक जैसा नहीं होता। कुछ लोग अपनी स्वार्थ की दुनिया में इतने डूबे होते हैं कि वे रिश्तों की गहराइयों को समझ ही नहीं पाते। वे जब तक साथ होते हैं, तब तक वफादारी का दिखावा करते हैं और मौका मिलते ही बेवफाई की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे लोग किसी के समर्पण और भावनाओं को एक खिलौने की तरह इस्तेमाल कर छोड़ जाते हैं।
लेकिन क्या कुछ लोगों की बेवफाई के कारण पूरी दुनिया से उम्मीद छोड़ देना सही है? नहीं। क्योंकि इंसानियत की बुनियाद ही अच्छाई और विश्वास पर टिकी होती है। इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों के दुख में साथ खड़े होते हैं। वे न तो दिखावा करते हैं और न ही अपनी वफादारी का ढिंढोरा पीटते हैं।
बेवफाई से टूटने वाले इंसान को यह समझना जरूरी है कि कुछ लोगों की फितरत पूरी दुनिया की पहचान नहीं होती। विश्वासघात से सबक लेना चाहिए, लेकिन हर किसी पर शक करना इंसान की अपनी अच्छाई को कमजोर करने जैसा है। दर्द को हथियार बनाकर जिंदगी को और मजबूत बनाना ही असली जीत होती है।
हर अंधेरी रात के बाद सुबह जरूर आती है। अगर दुनिया में बेवफा लोग हैं तो वफादार लोग भी हैं। हमें उन पर ध्यान देना चाहिए जो बिना किसी शर्त के हमारे साथ खड़े होते हैं। जिनके दिलों में इंसानियत की रोशनी जलती है, वे समाज की असली पहचान होते हैं।
बेवफाई के जख्म गहरे जरूर होते हैं, लेकिन इन जख्मों को अपनी ताकत बनाकर आगे बढ़ना ही जिंदगी का असली मकसद है। विश्वास टूटने से इंसान कमजोर नहीं होता, बल्कि उसे यह समझने का मौका मिलता है कि कौन अपना था और कौन सिर्फ वक्त का मुसाफिर। जो दिल दुखाने वाले थे, वे चले गए, लेकिन जो दिल जीतने वाले हैं, वे हमेशा साथ रहेंगे।
इसलिए कुछ लोगों के बेवफा हो जाने से पूरी दुनिया पर सवाल उठाना खुद के अस्तित्व को नकारने जैसा है। इंसानियत आज भी जिंदा है, बस उसे परखने के लिए धैर्य और हौसले की जरूरत होती है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Saturday, March 1, 2025

हमारा देश ऐसे रास्तों पर आगे बढ़ चुका है जो अच्छे इंसानों के लिए बहुत ही दुःखद है


हमारा देश ऐसे रास्तों पर आगे बढ़ चुका है जो अच्छे इंसानों के लिए बहुत ही दुःखद है अगर ऐसे ही चलता रहा तो अच्छे इंसान इस देश में रह ही नहीं जाएंगे आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन 

हमारा देश प्राचीन काल से ही अपनी संस्कृति, सद्भावना और नैतिक मूल्यों के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता रहा है। लेकिन आज देश ऐसे रास्तों पर बढ़ चुका है जहां अच्छाई के लिए संघर्ष करना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है। जिस समाज में कभी सच्चाई, ईमानदारी और नैतिकता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था, वही समाज अब स्वार्थ, भ्रष्टाचार और झूठ के बोझ तले दबता जा रहा है।
अच्छे इंसान इस देश की रीढ़ होते हैं। वे समाज को दिशा देते हैं, नई पीढ़ी को संस्कार सिखाते हैं और देश की सच्ची उन्नति में योगदान करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि आज के हालात ऐसे हो चुके हैं कि ईमानदार और अच्छे लोग खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनका सम्मान कम हो रहा है, उनकी आवाज दबाई जा रही है और उनके आदर्शों का मजाक उड़ाया जा रहा है।
अगर हम गौर करें तो समाज में वो लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जो चालाकी, झूठ और भ्रष्टाचार के रास्ते को अपनाते हैं। सच्चाई की राह पर चलने वाले लोग अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरकारी व्यवस्थाएं हैं, जहां ईमानदार अधिकारी या तो साजिशों का शिकार हो जाते हैं या सिस्टम से हार मानकर चुपचाप कोने में बैठ जाते हैं।

महात्मा गांधी ने कहा था – "सत्य कभी हार नहीं सकता, भले ही उसे कुचलने की कितनी भी कोशिश की जाए।" लेकिन आज सच बोलने वालों को ही सबसे ज्यादा कुचला जा रहा है। देश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षकों ने अपनी ईमानदारी की कीमत जान देकर चुकाई है।
हाल ही के वर्षों में हमने कई ऐसे ईमानदार अधिकारियों को खो दिया जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। गरीबों और समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए काम करने वाले लोग या तो हाशिए पर डाल दिए गए या उनकी आवाज को खामोश कर दिया गया।

समाज में अच्छाई की गिरती स्थिति का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने नैतिकता और मूल्यों को महत्व देना बंद कर दिया है। बच्चों को पढ़ाया तो जा रहा है कि सच बोलो, ईमानदारी से चलो, लेकिन जब वही बच्चे बड़े होते हैं तो देखते हैं कि समाज में झूठे, चापलूस और भ्रष्ट लोग ही सबसे ज्यादा सम्मानित हो रहे हैं। ऐसे में उनके मन में अच्छाई के प्रति विश्वास कमजोर पड़ने लगता है।

हालांकि हर अंधकार के बाद उजाला जरूर आता है। समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो तमाम संघर्षों के बावजूद अपनी अच्छाई को नहीं छोड़ते। हमें इन लोगों को पहचानने और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अच्छे इंसानों को हतोत्साहित करने के बजाय उन्हें समाज का मार्गदर्शक बनाना चाहिए।
हमें एक ऐसी सोच विकसित करनी होगी जहां ईमानदारी को कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत समझा जाए। शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों को फिर से प्रमुख स्थान देना होगा। सरकारों को ईमानदार लोगों को सुरक्षा और सम्मान देने के लिए सख्त कानून बनाने होंगे।
अगर समाज में अच्छे इंसानों का पलायन यूं ही जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में सिर्फ स्वार्थी, भ्रष्ट और लालची लोगों का ही बोलबाला होगा। ऐसे में देश का नैतिक पतन निश्चित है। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम अच्छाई को बचाने के लिए खड़े हों, क्योंकि जब तक अच्छे इंसान इस धरती पर हैं, तब तक इंसानियत भी जिंदा रहेगी।

याद रखिए –
"अच्छाई अकेले चलती है, लेकिन जब उसके पीछे लोग जुड़ जाते हैं तो इतिहास बदल जाता है।"