Monday, December 30, 2024

नवाचार स्क्रीन स्लाइड

नवाचार: स्क्रीन स्लाइड
नाम: चन्द्रपाल राजभर
पद: सहायक अध्यापक
विद्यालय का नाम: प्राथमिक विद्यालय रानीपुर कायस्थ, कादीपुर
जनपद: सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
9721764379
EMAIL- chandrapal6790@gmail.com

टाइटल: स्क्रीन स्लाइड

उद्देश्य:-
सरल और रोचक तरीके से बच्चों को वर्णमाला सीखने में दक्ष बनाना।

आवश्यक सामग्री:-
1. ड्राइंग सामग्री
2. ड्राइंग पेपर या चार्ट पेपर
3. मास्किंग टेप

प्रयोग विधि की अवधि:-
सीखने के परिणाम प्राप्त होने तक।

नवाचार क्रियान्वयन कक्षा:-
वह सभी कक्षाएँ, जिनमें बच्चे वर्णमाला में दक्ष नहीं हैं।

गतिविधि का विवरण:-
1. कक्षा की तैयारी:
शिक्षक कक्षा में प्रवेश करते ही बच्चों से संवाद स्थापित करेंगे।
बच्चों की बैठक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करेंगे।

2. भूमिका निर्माण:-
शिक्षक बच्चों को रोचकता और जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए प्रेरित करेंगे।
स्क्रीन स्लाइड की ओर बच्चों का ध्यान आकर्षित करेंगे।

3. स्क्रीन स्लाइड का परिचय:-
शिक्षक पहले स्वयं अ से ज्ञ तक की वर्णमाला चलाकर बच्चों को दिखाएंगे।
एक-एक चित्र देखकर शब्द पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित करेंगे।

4. बच्चों की भागीदारी:-
प्रत्येक बच्चे को बारी-बारी से बुलाकर स्क्रीन स्लाइड घुमाने को कहेंगे।
बच्चे चित्र देखकर संबंधित शब्द बोलेंगे।
सभी बच्चों को इस गतिविधि में शामिल किया जाएगा।

5. पुनरावृत्ति:-
प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाएगा, जिससे बच्चों की रोचकता और सीखने की गति बढ़ेगी।
धीरे-धीरे बच्चे अ से ज्ञ तक की वर्णमाला सीखने लगेंगे।

परिणाम:-
1. बच्चे चित्र पहचान कर शब्द बोलने में सक्षम हो रहे हैं।
2. रोचक और गतिविधि-आधारित शिक्षण से बच्चे आसानी से वर्णमाला सीख रहे हैं।
3. बच्चों में वर्णमाला सीखने के प्रति रुचि और जिज्ञासा बढ़ रही है।

निष्कर्ष:-
यह नवाचार न केवल बच्चों को वर्णमाला सिखाने का एक रोचक और सरल तरीका है, बल्कि उनकी स्मरण शक्ति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी बढ़ाता है।

Saturday, December 28, 2024

समय जो सिखाता है वह कोई नहीं सिखाता आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

समय एक अनूठा शिक्षक है। इसकी कक्षाओं में कोई निश्चित पाठ्यक्रम नहीं होता, और न ही कोई पूर्वनिर्धारित परीक्षाएं। यह हमारे जीवन का सबसे गूढ़ और कठोर अध्यापक है, जो हमें न केवल सही और गलत के बीच का अंतर समझाता है, बल्कि हमें हमारे अस्तित्व, हमारी सीमाओं और हमारी क्षमताओं का भी बोध कराता है। चन्द्रपाल राजभर जैसे कलाकार, जिन्होंने समय की अनुभूतियों को अपनी कला और चिंतन का हिस्सा बनाया है, यह मानते हैं कि समय का शिक्षण अन्य किसी भी शिक्षण से कहीं अधिक प्रभावशाली और स्थायी होता है।

समय का एक अदृश्य पक्ष यह है कि यह हमें भीतर से बदलता है। यह बदलाव अक्सर दर्दनाक होता है, क्योंकि यह हमें हमारी कमजोरियों और सीमाओं से परिचित कराता है। जब हम किसी कठिन परिस्थिति से गुजरते हैं, तो समय धीरे-धीरे हमें सहनशीलता और धैर्य का पाठ पढ़ाता है। यह हमें बताता है कि हर संघर्ष के साथ हम कुछ खोते नहीं, बल्कि कुछ नया सीखते हैं। चन्द्रपाल राजभर ने भी इस दर्शन को अपने जीवन और कला में समाहित किया है। उनके चित्रों और लेखन में समय की परतें दिखाई देती हैं, जो हमें बताती हैं कि कैसे वे अपने अनुभवों को आत्मसात कर एक नए दृष्टिकोण के साथ दुनिया को देखते हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो समय हमें आत्मनिरीक्षण और आत्मबोध की ओर ले जाता है। यह हमारे भीतर छिपे अंधकार को प्रकाश में लाने का कार्य करता है। जब हम समय के साथ बदलते हैं, तो हमारे दृष्टिकोण, हमारी प्राथमिकताएं, और हमारी सोचने की क्षमता भी विकसित होती है। यह हमें सिखाता है कि विफलता जीवन का अंत नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है। समय हमें यह भी सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति को स्वीकार करना और उससे सीखना ही वास्तविक परिपक्वता है।

चन्द्रपाल राजभर की कला में इस विचार का प्रतिबिंब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके 'चांद चिंतन' और 'वेदना' जैसे चित्रण समय के इस पाठ को समझने और दूसरों तक पहुंचाने का माध्यम बनते हैं। उनकी कलाकृतियों में गहरी संवेदनशीलता और एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिखाई देता है, जो दर्शकों को समय और परिस्थितियों के महत्व पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

समय की शिक्षाओं का एक और पहलू यह है कि यह हमें वर्तमान में जीने का महत्व सिखाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि अतीत को सुधार नहीं सकते और भविष्य को नियंत्रित नहीं कर सकते। इसलिए, सबसे अच्छा विकल्प वर्तमान को समझदारी और जिम्मेदारी से जीना है। चन्द्रपाल राजभर इस विचार को अपनी कविताओं और चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं, जो न केवल दर्शकों को आत्मविश्लेषण की ओर प्रेरित करती हैं, बल्कि उन्हें जीवन के हर पल को सराहने के लिए भी प्रेरित करती हैं।

समय का एक और महत्वपूर्ण शिक्षण यह है कि यह हमें क्षमा और सहिष्णुता का महत्व सिखाता है। जब हम समय के साथ पुराने घावों को भरते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए क्षमा करना कितना आवश्यक है। चन्द्रपाल राजभर की कलात्मक दृष्टि में यह भावना स्पष्ट रूप से झलकती है। उनकी रचनाओं में वेदना के साथ-साथ शांति और स्वीकार्यता का संदेश भी मिलता है।

 समय हमें यह सिखाता है कि हर अनुभव, चाहे वह सुखद हो या दुखद, हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। यह हमें एक बेहतर इंसान बनने के लिए तैयार करता है, जो अपनी कमियों को समझता है और उन्हें स्वीकार करता है। चन्द्रपाल राजभर का चिंतन हमें यह सिखाता है कि समय की शिक्षाएं हमारी सबसे मूल्यवान पूंजी हैं, और इन्हें आत्मसात करना ही सच्चा ज्ञान है। उनकी कला और चिंतन समय के इस संदेश को गहराई और सुंदरता के साथ व्यक्त करते हैं, जो हमारे लिए प्रेरणा का एक स्रोत बनता है।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Friday, December 27, 2024

आधुनिकता के दौर में बच्चे और बच्चियों संवेदना,मर्म और सहयोग की भावना खोकर रोबोट होते जा रहे हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

आधुनिकता के इस दौर में समाज का सबसे बड़ा संकट उसकी मानवीय संवेदनाओं का क्षरण है। तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास ने हमें सुविधाओं का दास बना दिया है, परंतु इसके बदले में हमने अपनी सभ्यता, संस्कृति और भावनात्मक मूल्यों को दांव पर लगा दिया है। बच्चों और बच्चियों के मनोविज्ञान में अब दया, करुणा, और सहयोग जैसी भावनाएँ स्थान खो रही हैं। वे संवेदनशील इंसान बनने के बजाय ऐसे यंत्रवत प्राणी बनते जा रहे हैं जो केवल भौतिक उपलब्धियों को ही जीवन का लक्ष्य समझते हैं।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर के अनुसार, "यदि आज हम बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता का महत्व नहीं समझाएंगे, तो भविष्य में इंसानियत केवल एक इतिहास बनकर रह जाएगी। यह आवश्यक है कि हम बच्चों को न केवल तकनीकी शिक्षा दें, बल्कि उनके भीतर संवेदनाओं, करुणा, और सहयोग की भावना को भी विकसित करें।"

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो बचपन ही वह अवस्था होती है, जब मनुष्य के व्यक्तित्व की नींव डाली जाती है। यह वह समय होता है जब बच्चों में सही और गलत के बीच अंतर करने की समझ विकसित होती है। यदि इस अवस्था में बच्चों को केवल प्रतियोगिता और भौतिक सफलता का पाठ पढ़ाया जाए, तो वे मानवीय मूल्यों से दूर होते चले जाते हैं। इसका परिणाम समाज में बढ़ते हुए एकाकीपन और आपसी अविश्वास के रूप में दिखाई देता है।

चन्द्रपाल राजभर का चिंतन इस बात पर भी जोर देता है कि बच्चों को उनके परिवार, समुदाय और समाज से जोड़ने के लिए भावनात्मक शिक्षा को प्रोत्साहित करना होगा। यह केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि कला, संगीत, और साहित्य के माध्यम से बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता से परिचित कराना चाहिए। राजभर कहते हैं, "कला एक ऐसा माध्यम है जो बच्चों के भीतर सोई हुई संवेदनाओं को जाग्रत कर सकता है।"

मनोविज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि बच्चों को सह-अस्तित्व और सामूहिकता का पाठ पढ़ाने के लिए व्यावहारिक अनुभव आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए, यदि बच्चों को पर्यावरण संरक्षण, वृद्धजनों की सेवा, या जरूरतमंदों की मदद में शामिल किया जाए, तो उनमें करुणा और सहयोग की भावना स्वाभाविक रूप से विकसित होगी।

संस्कृति और सभ्यता की रक्षा केवल भाषणों से नहीं हो सकती। इसके लिए परिवार, विद्यालय और समाज के प्रत्येक सदस्य को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों के सामने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें, जिससे वे सीख सकें कि सफलता केवल धन और प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि मानवता और नैतिक मूल्यों से प्राप्त होती है।

राजभर का यह कथन विशेष रूप से प्रेरक है: "यदि हम आज अपने बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ने का प्रयास नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक ऐसी सभ्यता का हिस्सा बनेंगी, जो संवेदनहीनता और अलगाव का शिकार होगी।"

यह समय की मांग है कि बच्चों को केवल रोबोटिक दक्षता प्रदान करने के बजाय, उन्हें एक ऐसा इंसान बनाने पर ध्यान दिया जाए, जो संवेदनशील हो, करुणामय हो, और सहयोग की भावना से ओतप्रोत हो। यह केवल भारत की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा का ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज को बचाने का प्रयास होगा।

यह चिंतन न केवल चेतावनी है, बल्कि एक आह्वान भी है—मानवता को बचाने के लिए हमें बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता का पाठ पढ़ाना ही होगा।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI

एक सच जो आप सुन नहीं पाएंगे आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एकचिंतन

एक सच जो आप सुन नहीं पाएंगे आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एकचिंतन
भारत हमेशा से अपनी सांस्कृतिक विरासत, पारिवारिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं के लिए विश्वभर में आदर्श रहा है। यह देश वह भूमि है, जहाँ रिश्तों की नींव विश्वास, त्याग और संस्कारों पर टिकी होती थी। लेकिन आज, आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अंधी दौड़ ने इस नींव को हिला दिया है। परिवार, जो भारतीय समाज की आत्मा हुआ करता था, अब टूटन और विघटन का शिकार हो रहा है। ऐसे में आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर का यह विचार कि "जब एक पिता अपनी जिम्मेदारियों का पूरी तरह निर्वहन नहीं कर पाता, तब बच्चों में संस्कारों की कमी और स्वतंत्र जीवनशैली की लालसा जन्म लेती है," हमारे समय की सच्चाई को दर्शाता है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण उनके बचपन में प्राप्त शिक्षा, अनुभव और पारिवारिक माहौल से होता है। पिता परिवार का वह स्तंभ होता है, जो न केवल आर्थिक रूप से घर को संभालता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी परिवार को जोड़े रखता है। जब पिता अपनी जिम्मेदारियों से विमुख हो जाता है या उन्हें अधूरा छोड़ देता है, तो बच्चों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है। यह भावना उन्हें आत्मकेंद्रित बनाती है और वे अपने परिवार, समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने में विफल रहते हैं।
आधुनिक जीवनशैली ने स्वतंत्रता का ऐसा मोहजाल बुन दिया है, जो बच्चों को यह विश्वास दिलाता है कि संस्कार और परंपराएँ उनके विकास में बाधा हैं। वे इसे प्रगति के मार्ग में रुकावट मानते हैं। लेकिन यह स्वतंत्रता वस्तुतः उन्हें संस्कारविहीनता और स्वार्थ की ओर धकेलती है। इसका परिणाम यह होता है कि परिवार केवल औपचारिकता बनकर रह जाते हैं, और रिश्तों में आत्मीयता के स्थान पर औपचारिकता हावी हो जाती है।
यह स्थिति केवल पारिवारिक विफलता नहीं है, बल्कि यह समाज के बिखरते मूल्यों का संकेत है। जब बेटा या बेटी अपने माता-पिता की भावनाओं और उनकी जरूरतों को नजरअंदाज कर अपने स्वार्थ की पूर्ति में लीन हो जाते हैं, तो यह समाज में बेवफाई के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। यह बेवफाई केवल पारिवारिक संबंधों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र को भी प्रभावित करती है।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर के चिंतन का यह पक्ष विशेष रूप से गहरा है कि "संस्कारविहीनता केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का परिणाम नहीं, बल्कि माता-पिता की असफलता का दर्पण है। जब माता-पिता स्वयं अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा देने में असफल रहते हैं, तो बच्चे समाज में अपने कर्तव्यों को नहीं समझ पाते।" यह कथन हमारे समाज की जड़ों में पनपती समस्या को उजागर करता है।
आज बच्चों को स्वतंत्रता देने का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि वे अपनी परंपराओं और संस्कारों से कट जाएँ। स्वतंत्रता का अर्थ जिम्मेदारी है, और यह जिम्मेदारी माता-पिता की है कि वे अपने बच्चों को यह समझाएँ। उन्हें यह सिखाना आवश्यक है कि स्वतंत्रता और संस्कार साथ-साथ चल सकते हैं। आधुनिकता की दौड़ में हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि यही जड़ें हमें हमारी पहचान देती हैं।
मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट होता है कि बच्चों को बचपन से ही अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए उन्हें व्यवहारिक अनुभव देना जरूरी है। यह अनुभव उन्हें यह समझने में मदद करेगा कि रिश्ते केवल कर्तव्यों का नहीं, बल्कि भावनाओं का भी बंधन हैं। जब एक पिता अपने बच्चों को समय देता है, उनके साथ संवाद करता है और उन्हें नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाता है, तो यह बच्चों के व्यक्तित्व में स्थायी रूप से जुड़ जाता है।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का यह चिंतन न केवल एक चेतावनी है, बल्कि एक आह्वान भी है। यदि भारत को अपनी मूल पहचान और संस्कृति को बचाना है, तो परिवारों को फिर से अपने बच्चों के लिए संस्कार और परंपराओं के स्रोत बनना होगा। बच्चों को केवल भौतिक सफलता की शिक्षा देने के बजाय, उन्हें यह सिखाना होगा कि सच्चा सुख मानवता, करुणा और संस्कारों में निहित है।
यह समय की मांग है कि हम आत्मनिरीक्षण करें और अपने परिवारों को पुनः उनके मूल स्वरूप में वापस लाएँ। क्योंकि यदि हमने आज इस समस्या का समाधान नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियाँ केवल संस्कारविहीन स्वतंत्रता और संबंधविहीन स्वार्थ का ही अनुभव करेंगी। आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर के विचार हमें यह स्मरण कराते हैं कि "संस्कारों की रक्षा केवल परिवार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। यदि हम यह दायित्व नहीं निभाएंगे, तो हमारा भारत वह भारत नहीं रहेगा, जिस पर हम गर्व कर सकें।"
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक-SWA MUMBAI


Monday, December 23, 2024

एक अच्छे इंसान के साथ बेवफाई होती है, तो उसका असर केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता बल्कि समाज की नीव तक पड़ता है आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

आर्टिस्ट चंद्रपाल राजभर का एक चिंतन 
 एक अच्छे इंसान के साथ बेवफाई होती है, तो उसका असर केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज की नींव पर भी चोट करता है। एक ईमानदार और जिम्मेदार व्यक्ति, जो अपने मूल्यों और कर्तव्यों के लिए समाज में आदर्श माना जाता है, जब विश्वासघात का शिकार होता है, तो यह घटना न केवल उसकी व्यक्तिगत पीड़ा का कारण बनती है, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना को भी प्रभावित करती है।
ऐसे व्यक्ति की पीड़ा केवल उसकी निजी जिंदगी तक सीमित नहीं रहती। उसकी मनोस्थिति, कार्यक्षमता और समाज में उसकी भूमिका सभी पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि एक शिक्षक, लेखक,चित्रकार, कलाकार के साथ जब बेवफाई होती है तो उसका असर समाज पर भी होता है

और वही शिक्षक के रूप में देखा जाए तो एक शिक्षक बच्चों को नैतिकता ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है, अपने जीवन में बेवफाई का अनुभव करता है, तो उसकी आंतरिक पीड़ा उसके शिक्षण में झलक सकती है। वह अपनी जिम्मेदारियों को उस उत्साह और समर्पण के साथ नहीं निभा पाता, जैसा कि वह पहले करता था। यह प्रभाव केवल उसकी नौकरी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसके विद्यार्थियों के भविष्य पर भी पड़ता है, जो समाज के लिए दीर्घकालिक नुकसान है।

समाज में विश्वास और नैतिकता की कमी का यह एक बड़ा कारण बन सकता है। जब लोग यह देखते हैं कि अच्छाई और ईमानदारी के बावजूद किसी व्यक्ति को बेवफाई झेलनी पड़ती है, तो उनके मन में यह धारणा बनती है कि नैतिकता का कोई महत्व नहीं है। यह धारणा धीरे-धीरे समाज की सोच में गहराई तक उतर जाती है, जिससे युवा पीढ़ी के सामने एक गलत उदाहरण प्रस्तुत होता है। यह समाज में एक नकारात्मक प्रवृत्ति को जन्म दे सकता है, जहां लोग ईमानदारी और परिश्रम की जगह स्वार्थ और छल-कपट को अपनाने लगते हैं।

इसके साथ ही, बेवफाई की घटनाएं समाज की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाती हैं। जब किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ विश्वासघात होता है, तो अक्सर उसका प्रभाव उसके समुदाय या समाज पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यापारी समुदाय का कोई सदस्य धोखाधड़ी का शिकार होता है, तो समाज के अन्य सदस्यों को भी इसी निगाह से देखा जाता है। यह स्थिति समाज के लिए लंबे समय तक बदनामी और अविश्वास का कारण बन सकती है।

इन घटनाओं का दीर्घकालिक प्रभाव समाज में नैतिकता और सहानुभूति के पतन के रूप में सामने आता है। जब अच्छे लोगों के साथ बार-बार बुरा होता है, तो वे भी कठोर और असंवेदनशील हो जाते हैं। यह स्थिति समाज में एक दुश्चक्र को जन्म देती है, जहां विश्वास और सहानुभूति के अभाव में मानवता का पतन होने लगता है।

इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए समाज को सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए। पीड़ित व्यक्ति को सहानुभूति और समर्थन प्रदान करना आवश्यक है ताकि वह अपनी पीड़ा से उबर सके। साथ ही, विश्वासघात करने वाले व्यक्ति को उसके कृत्य के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, ताकि समाज में नैतिकता और न्याय का संदेश स्पष्ट हो।

जब एक अच्छे इंसान के साथ बेवफाई होती है, तो यह केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं होती, बल्कि समाज के मूल्यों और आदर्शों पर आघात करती है। इसे रोकने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए समाज को अपनी नैतिकता, विश्वास और परस्पर सम्मान को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। समाज की मजबूती उसके सदस्यों के परस्पर विश्वास और सहयोग पर निर्भर करती है, और इसे बनाए रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Saturday, December 21, 2024

ग़ज़ल एल्बम 60 टाईप

1
ग़ज़ल 
वक्त 
अब वक्त ही करेगा उनके गुनाहों का फैसला
हिंसा और भगवान से तो हुआ नहीं।
खुद को समझते रहे वो फ़रिश्ता ज़माने का
आईने में सच कभी दिखा नहीं।

गुज़रती है सदी दर सदी इंसाफ़ की आस में
पर वक्त से बड़ा कोई मसीहा बना नहीं।
चमकते महलों में रोशनी की खता है
वो ॲंधेरों में इंसानियत को समझा नहीं।

अब देखेगा ज़हाॅं उनका हश्र कैसे होता है
जो बोया था उन्होंने, वक्त  कभी भूला नहीं।
जो ख़ुदा के नाम पर खेलते रहे खेल नफ़रत के
वो भूल गए, हिसाब वक्त कभी भूला नहीं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल 
गुनाहों का फैसला
अब वक्त ही करेगा उनके गुनाहों का फैसला
क्योंकि इंसान के दायरे में ख़ुदा मिला नहीं।
पलकों पर ख्वाब सजे थे इंसाफ़ के कभी
मगर आँसुओं में सच्चाई अब छुपा नहीं।

जो कह रहे थे ख़ुद को हक़ का रखवाला
उनके कदमों से ज़मीन ने भी वफ़ा किया नहीं।
सजदे में झुकी थी दुआएं तमाम उनकी
मग़र दिलों का नूर तो कभी खिला नहीं।

वो सोचते रहे झूॅंठ से जीतेंगे दुनिया
पर वक्त ने उनकी चाल को बर्दाश्त किया नहीं।
अब देखना है, क्या सवेरा होगा ॲंधेरों का
या सूरज भी इनके हिस्से में जला नहीं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल 

Saturday, December 14, 2024

ग़ज़ल एल्बम 59 टाईप

1
ग़ज़ल
तेरे शहर से हवा चली 
तेरे शहर से एक हवा चली और बदनाम कर गई पूरे शहर को।
जो खुशबू थी कभी गली-गली, वो ज़हर कर गई पूरे शहर को।

कभी चिराग़ जलते थे हर जगह, थी रौशनी की बातें हर तरफ।
अब धुऑं-धुऑं है ये फिज़ा, और रा़ख कर गई पूरे शहर को।

कभी गूॅंजती थीं साज़ की धुनें, थे रा़ग हर दिल के अज़ीम।
अब तन्हाई का ये मंज़र, ख़ामोश कर गई पूरे शहर को।

लोग कहते थे ख़िस्से मोहब्बत के, था चाहत का ये मुक़ाम।
पर तेरी बेवफ़ाई की ये हवा, वीरान कर गई पूरे शहर को।

हर गली में बसती थी दुआओं की ख़ुशबू, जो ले जाती थी आसमान।
अब शोर-ओ-गुल का आलम ऐसा, नासूर कर गई पूरे शहर को।

हमने चाहा था बस तेरी वफ़ा, पर तूने क्या किया बता।
तेरे झूॅंठे वादों की एक सदा, लाचार कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल 
 तेरा शहर
तेरे शहर से एक हवा चली और बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी थी अमन की ज़मीं, खौफ़जदा कर गई पूरे शहर को।

ज़हाॅं परिंदा उड़ता था बेख़ौफ, थी चहचहाट हर कोने में
वहीं अब ख़ामोशी का साया, बेसुध कर गई पूरे शहर को।

बजती थीं घंटियां कहीं, कहीं अज़ान की गूॅंज थी
मग़र इस तूफ़ानी हवा ने, बेजान कर गई पूरे शहर को।

जो कभी थे दोस्त अपने, वो आज दुश्मन जैसे लगने लगे
तेरी अदाओं की वो हवा, दोराहे पर छोड़ गई पूरे शहर को।

खु़शियों की महफ़िलें थी कभी, हर दिल जुड़ा हुआ था ज़हाॅं 
अब वहाॅं हर गली में ग़म, वीरान कर गई पूरे शहर को।

तेरे झूॅंठे अफ़साने, तेरा वहमी इश्क़
यूॅं लगा जैसे ये हवा, धुॅंआ-धुॅंआ कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई गिला रहा, न कोई शिकायत ही बाकी
तेरी ख़ता से जो चला तूफ़ान, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल 
तेरी गली से जो ख़बर चली थी, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो ख़ुशबुओं से महकी थी ज़मीं, वो वीरान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं था हर कोई अपने क़रीब, ज़हाॅं रिश्तों का था उजाला
वहीं अफ़सानों का वो धुॅंआ, बेजान कर गई पूरे शहर को।

कभी जहाॅं थी दुआओं की सदा, हर दिल जुड़ा हुआ था ज़हाॅं 
तेरी ख़ामोशी की साजिश, परेशान कर गई पूरे शहर को।

जो था अज़ीम अपनी वफ़ा में, वो अब सवालों में घिर गया
तेरे वादों की वो बेवजह गूॅंज, तन्हा कर गई पूरे शहर को।

हर गली में जो थी उमंग कभी, वहाॅं अब सन्नाटों का डेरा है 
तेरे कदमों की वो चाल, वीरान कर गई पूरे शहर को।

जो मुहब्बत थी कभी आइना, वो अब चुभती है जैसे काॅंटा
तेरी झूॅंठी वफ़ाओं का असर, बेकरार कर गई पूरे शहर को।

अब लबों पर न हॅंसी, न ऑंखों में कोई चमक बाकी
तेरी ख़ता से जो उठा तूफ़ान, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
ग़ज़ल 

तेरी ज़ुबाॅं से जो बात निकली, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी थी आबाद बस्तियाॅं, सुनसान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं हर चौराहे पर हॅंसी थी, वहाॅं अब सिसकियों का राज़ है
तेरी मोहब्बत की वो ख़ता, गु़मनाम कर गई पूरे शहर को।

जो कभी थी रोशनी हर ओर, चिराग़ जलते थे हर गली
तेरे झूॅंठे अफ़सानों की आग, धुऑं कर गई पूरे शहर को।

कभी ज़हाॅं सजे थे रिश्तों के मेले, हर दिल में बसती थी चाहत
तेरी फ़रेबी मुस्कान की छाया, वीरान कर गई पूरे शहर को।

हर कोना जो गूॅंजता था दुवाओं से, अब वहाॅं सन्नाटों का जहाॅं है
तेरी अदाओं का वो तूफाॅं, बेजान कर गई पूरे शहर को।

न उम्मीदें बचीं, न ख़्वाबों का रंग, सब कुछ ख़ाक हो गया
तेरी नज़रों की वो ठंडी लहर, नाकाम कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई तजुर्बा रहा, न कोई शिकवा-शिकायत
तेरे क़दमों की वो दस्तक, बर्बाद कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
---------------------
5
तेरे ख़्याल से जो हवा चली, वो बदनाम कर गई पूरे शहर को
जो कभी था सुकून का चमन, वीरान कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं बहती थी मोहब्बत की नदियाॅं, था हर चेहरा गुलाब जैसा
तेरी बातों की वो कड़वाहट, बेजान कर गई पूरे शहर को।

रंगीन थीं जो फिज़ाएं कभी, थी ख़ुशबू हर साॅंस में घुली
तेरे वादों की वो कड़वाहट, परेशान कर गई पूरे शहर को।

हर गली में बसती थी रौनक, हर दिल से जुड़ा था कोई
तेरे इरादों की साजिश, वीरान कर गई पूरे शहर को।

ख़ुदा का घर भी सहमा है, बंद हो गईं अब दुआएं यहाॅं
तेरी बेवफ़ाई की वो लहर, ख़ामोश कर गई पूरे शहर को।

जहाॅं सपनों के महल थे खड़े, वहाॅं अब खंडहर दिखते हैं
तेरे फ़रेबी मुस्कान की वो कहानी, बर्बाद कर गई पूरे शहर को।

अब न कोई उम्मीद बाकी, न कोई अरमान जिंदा
तेरे झूॅंठी मोहब्बत का तूफ़ाॅं, तबाह कर गई पूरे शहर को।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
---------------------*-----------
6
ग़ज़ल 
तेरे दामन से जो खुशबू उड़ी, वो जहर बना गई पूरे शहर को
जो कभी थी इश्क़ की गलियाॅं, खौफ बना गई पूरे शहर को।

जहाॅं हर शब नूर बिखरा था, वहाॅं साया भी डरने लगा
तेरे ख़यालों की वो हलचल, सहमा गई पूरे शहर को।

बसा था जहाॅं ख़ुशी का ज़हाॅं, हर चेहरा में गुल खिलाता था
तेरे फरेब की वो एक झलक, वीरान बना गई पूरे शहर को।

जो दिल थे कभी बेखौफ यहाॅं, अब काॅंपते हैं हर सदा पर
तेरी अदाओं की वो आंधी, बेबस बना गई पूरे शहर को।

जहाॅं सूरज भी झुकता था कभी, रौशनी की हद से परे
तेरी झूॅंठी मोहब्बत की कहानी, ॲंधेरा बना गई पूरे शहर को।

हर गली अब ख़ामोश है, हर दीवार उदास दिखती है
तेरी ख़ता का वो साया, ज़ख़्म दे गया पूरे शहर को।

अब न उम्मीदें बचीं, न कोई दुआएं बाकी हैं
तेरे कदमों की वो आहट, बर्बाद बना गई पूरे शहर को।

Friday, December 13, 2024

ग़ज़ल एल्बम 58

1
ग़ज़ल 
जब मैं मुस्कुरा राता हूॅं
मैं जब मुस्कुराता हूॅं, तो कुछ ग़मगीन होते हैं
मेरी रौनक से जलने वाले ज़मीन होते हैं।

कभी जो छुपके बैठे थे मेरी परछाईं में
आज वही मेरे सूरज से मलीन होते हैं।

उन्हें ख़बर नहीं मेरे इरादों की उड़ान की
जो समझते हैं कि मेरे जख़्म नमकीन होते हैं।

जहाॅं उम्मीद के दीप जलाए मैंने चुपचाप
वहीं साजिशों के साए भी कमीन होते हैं।

मैं चल रहा हूॅं अपनी राह पर यक़ीन से
जो देख रहे हैं दूर से, ग़मगीन होते हैं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल 
मैं जब भी हॅंस पड़ा 
मैं जब भी हॅंस पड़ा, उनके सवाल गहरे थे
जो कल थे साथ मेरे, अब फ़िज़ूल पहरे थे।

मेरी उड़ान से चौंकें जो आज ख़ामोश हैं
वही कहेंगे कल, रास्ते बहुत सुनहरे थे।

खु़शबुओं का ये सफ़र यूॅं ही नहीं बना
चमन के हर ग़ुलाब में छुपे कुछ ज़हर थे।

सफ़र की धूल ने मुझको चमका दिया
जो काॅंटों पर हॅंसे, वही मेरे कहकहे थे।

हर दर्द को मैंने अपने दिल में छुपा लिया
वो सोचते थे अश्क मिरे महज़ ठहरे थे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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3
ग़ज़ल 
ख़्वाब 
जो ख़्वाब मेरे थे, वो नज़रें चुराएंगे,
मेरी हर जीत पर लोग खि़स्से बनाएंगे।

मैं अपनी राह में काॅंटे बिछाने वालों से,
चमन के फूल बनकर ज़वाब दिलवाएंगे।

जो आज रोशनी से नजरें चुरा रहे हैं,
कल मिरे नाम का दिया जलाएंगे।

ॲंधेरों से जो लड़कर उजाला लाया हूॅं 
वो मेरे जज्बे की कहानियाॅं सुनाएंगे।

मुझे गिराने की कोशिशें हुईं थीं लाख मग़र 
मेरे मुकाम पर झुककर सलाम करेंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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4
ग़ज़ल 
ख़ुद ही पिघलते हैं
मैं जब ख़ुश हूॅं, तो कुछ तो दिल में जलते हैं
जो हसरतें मेरे लिए, वही ख़ुद ही पिघलते हैं।

जिन्हें लगता था कि मेरी राहें रुक जाएंगी
वो अब मेरी मंजिलों के पीछे चलते हैं।

मेरी ख़ामोशी में, जो समझते थे ग़म की बात
वही अब मेरी हॅंसी के लम्हे खोजते हैं।

जो चलते थे मेरी सफ़लता से दूर कभी
अब वही रास्ते मेरे साथ चलते हैं।

मेरी हिम्मत से डरकर, जो कभी बिखरे थे
अब वो मेरी सियाही से नयी रचनाएँ लिखते हैं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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5
ग़ज़ल 
मेरी ख़ुशी से जलन
मेरी ख़ुशी को देखकर कुछ तो जलते होंगे
वो कभी मेरे ऑंसू पर हॅंसी उड़ाते होंगे।

मैंने तो जी लिया हर दर्द को गले लगाकर
मग़र वो जिनसे कोई उम्मीदें जताते होंगे।

मेरे रास्तों की धूल में अब चमक है समाई
जो कभी मेरे क़दमों को नापते जाते होंगे।

जो कल मुझे गिराने के ख़्वाब देखते थे
आज मेरे साथ उनके सिर झुके होते होंगे।

सिर्फ़ मेरी मुस्कान से जो दूर थे पहले
अब वो मेरे ग़मों को भी अपने साथ लाते होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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6
ग़ज़ल 
बेचैन 
मेरी खुशियों को देखकर कुछ तो बेचैन होंगे
जो कभी मेरे ग़म में चुपके से शामिल थे।

मैंने हर दर्द को सीने में छुपाया है गहरे
मग़र वो अब मेरी हॅंसी में ही शामिल होंगे।

जो काॅंटे बोते थे राहों में कभी मेरे
आज फ़ूल बनकर मेरे क़दमों में बिछाएंगे।

हर एक पल में मैंने ख़ुद को तराशा है
मग़र वो लोग अब मेरी सूरत पे फ़िदा होंगे।

जो कल मेरी बर्बादी के ख़्वाब देखते थे
आज मेरी कामयाबी से हैरान होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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7
ग़ज़ल 
जब भी हॅंसता हूॅं 
मैं जब भी हॅंसता हूॅं, कुछ तो ख़ामोश होते हैं
जो मेरी राहों में काॅंटे बोते थे, वो ही घायल होते हैं।

मेरी बढ़ती हुई हिम्मत से अब वो डरते हैं
जो कल मेरे सपनों को चुराते थे, आज वो बेकार होते हैं।

मेरे हर एक क़दम में ताकत का एहसास है
जो सोचते थे मैं रुक जाऊॅं, वो ही अब निराश होते हैं।

जो कभी मुझे गिराने के लिए साजिशें करते थे
अब मेरी सफ़लता को देखकर सिर्फ़ चुप रहते हैं।

मेरे दर्द को जो देख रहे थे हॅंसी में बदलते
अब वही मेरी मुस्कान में अपने सवालों को पलते हैं।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
8
ग़ज़ल 
मेरे ख़्वाबों से 
मेरे ख्वाबों से जलने वाले अब कैसे बुझेंगे
जो मेरी राह में काॅंटे थे, वो अब फ़ूल होंगे।

मेरी हॅंसी को देखकर अब दिलों में घबराहट होगी
जो कभी मेरे ग़म में रास नहीं आते थे, अब सिखेंगे।

जो मेरी तकलीफों पर मुस्कुराते थे ग़लती से
अब मेरी खु़शियों को देखकर दुआ करेंगे।

मैंने हर दर्द को अपना साथी बना लिया है
अब वही लोग मेरे साथ चलते होंगे, जिनका रास्ता कभी और था।

मैंने ख़ुद को आज़माया और हर ग़म को जीते
जो सोचते थे कि मैं टूट जाऊॅं, वो अब ख़ुद टूटे होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 







ग़ज़ल 57

1
ग़ज़ल
मैं ख़ुश हूॅं मेरी खुशियों से कुछ तो परेशान होंगे,
मग़र मेरी उड़ानों से कई हैरान होंगे।

चमकते हैं सितारे जब मेरे आसमान में,
ज़मीं के लोग मुझसे कुछ सवालान होंगे।

ख़ुशी के गीत गाऊॅं, दिल में रोशनियाॅं हों,
मेरी हर एक धड़कन पर निगहबान होंगे।

चलूं जब भी मुसाफ़िर बनके इस राह-ए-हयात में
मेरे सफर पे गुमां करते कुछ इंसान तो होंगे।

हवा के रुख़ बदल देंगे मेरे इरादे जब
तो मेरी कामयाबी के चर्चे आम होंगे।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
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2
ग़ज़ल
मैं ख़ुश हूॅं
मैं ख़ुश हूॅं मेरी खु़शियों से कुछ तो परेशान होंगे
जो जल रहे हैं दिल में, वही तो हैरान होंगे।

खिलेंगे फूल उम्मीदों के हर एक राह पर
मेरे बढ़ते क़दमों से नए अफसाने होंगे।

नज़रें झुकी होंगी उनकी, अदाएं होंगी और
जो बातें करते थे, आज वो अनजान होंगे।

मेरा हर ख़्वाब सच होकर चमकेगा इस कदर
कि मेरे जश्न में शामिल सारा ज़हान होंगे।

ज़लन के आग में जलते हैं जो आज यहाॅं
कल मेरे नाम की ख़ुशबू से महकान होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
-------------------------***-
3
ग़ज़ल 
विरान होंगे 
मैं खुश हूॅं मेरी खुशियों से कुछ तो परेशान होंगे
मेरे ज़ुनून के किस्से सभी के ज़ुबान होंगे।

जहाॅं में रोशनी फैली, तो आंखें चौंधियाॅं गईं
मेरे चिराग़ ज़लते ही कई बेनिशान होंगे।

हवा के साथ बहना तो हर किसी को भा गया
मग़र जो डटके लड़ते हैं, वही पहचाने जायेगें।

मिरे सफ़र में काॅंटे थे, मग़र हौंसला बड़ा
जो देखेंगे अंजाम, वही हैरान होंगे।

ख़ुशी से जी रहा हूॅं मैं, ये उनको खल रह
जो सोचते थे सदियों तक मेरे विरान होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
---------------------------
4
ग़ज़ल 
हौसलों के परचम
मेरे हौंसलों के परचम से कुछ तो घबराएंगे
हर मोड़ पर वो मेरे क़दमों के निशां पाएंगे।

जो संग थे कभी, आज क्यों ख़ामोश हो गए
वो वक्त की सियासत में खुद को भुलाएंगे।

मुस्कानों की रोशनी से रोशन जहाॅं हुआ
ॲंधेरों में छुपे चेहरे भी सामने आएंगे।

जो देखना चाहते हैं मुझे गिरते हुए कभी
वो मेरे आसमान को अब सर उठाएंगे।

जिन्हें खलती थी मेरी हर छोटी सी कामयाबी
वो कल मेरे ही जश्न में हाथ मिलाएंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
-----------------------------
5
ग़ज़ल 
मेरे ख़्वाबों की उड़ान 
मेरे ख़्वाबों की उड़ानों से कुछ तो घबराएंगे
हर सितारे से मेरी राह के क़िस्से सुन पाएंगे।

जो छुपाते थे नफरत, अब वो चेहरे खुलेंगे
आज मुझसे दूर हैं, कल करीब नज़र आएंगे।

हवा के रुख़ से लड़कर मैंने सफ़र किया है
मेरी जीत देखकर कई सबक उठाएंगे।

जहाॅं उम्मीदें बुझीं थीं, वहां चिराग़ जलेंगे
जो कल ॲंधेरा बोते थे, वही रोश़नी लाएंगे।

जो मेरे गिरने की दुआएं किया करते थे
अब वो मेरे गीतों को गुनगुनाते पाएंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
-------------------------------
6
ग़ज़ल 
मेरी उड़ान 
मेरी उड़ान के रंगों से कुछ तो हैरान होंगे
जो कल ख़फ़ा थे मुझसे, वही तो मेहरबान होंगे।

खु़शबुओं का सिलसिला हर तरफ जो छेड़ दूॅं
चुपके से बात करने को कई परेशान होंगे।

जो काॅंटे बो रहे थे, वो अब समझेंगे बात
मिरे फूलों की महक से सब परेशान होंगे।

सफ़र में धूप थी, पर हिम्मत साथ थी
अब छाॅंव देख के वो लोग हैरान होंगे।

मैं रोशन कर दूॅंगा हर ॲंधेरी गली को
जिन्होंने ताने दिए, वो भी शुक्रगुजार होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
-----------------------
7
ग़ज़ल 
मेरी मुस्कान 
मेरी मुस्कान से दिलों में हलचलें होंगी,
खु़शियाॅं मेरी देखकर कई शिकवे होंगे।

जो मेरे रास्ते से बचकर चले थे कभी,
अब उन्हीं के ख़्वाबों में मेरे क़िस्से होंगे।

चमक जो मेरी ऑंखों में आज झलक रही,
कभी इसे मिटाने वाले खुद धुंधले होंगे।

ज़माना देखेगा मुझको नई ऊॅंचाई पर
जो पीछे छूटे थे, वहीं उलझे होंगे।

मैंने हर ग़म को जीतकर बनाया ज़हाॅं 
अब उस ज़हाॅं के राही मेरे अपने होंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
--------------------------
8
ग़ज़ल 
मेरी ख़ुशी के चिराग़
मेरी ख़ुशी के चिराग़ों से कुछ तो जल जाएंगे
जो छुपकर बैठते थे, अब सामने आएंगे।

हवा में गूॅंज रही है मिरी मेहनत की सदा
सुना है मेरे दुश्मन भी दुआ पढ़ जाएंगे।

जो राह में बिछाए थे काॅंटे किसी ने कभी
वही मिरे गुलशन में फूल बन जाएंगे।

मिरी हॅंसी का जवाब उनके पास क्या होगा
जो अश्क़ देकर मुझको मुझसे रूठ जाएंगे।

मैं रोशनी का समंदर हूॅं, बुझा नहीं सकते
जो ॲंधियारे थे कल तक, वही अब छुप जाएंगे।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 



Thursday, December 12, 2024

ग़ज़ल एल्बम 56

1
ग़ज़ल 
तूने वादा किया था साथ निभाने का
फिर क्यों चुना रास्ता बेवफ़ाई का।
ख़्वाब जो देखे थे साथ में हमने
अब हर सपना है निशान तन्हाई का।

तेरे लफ़्ज़ों में वो मिठास थी,
जो ज़हर बन गया मेरी जुदाई का।
दिल ने चाहा तुझे उम्रभर के लिए
पर तूने मज़ाक बनाया वफ़ाई का।

अब हर दिन है ग़म का साथी
और हर रात गवाह है रुसवाई का।
कभी सोचा था कि तेरा ही रहूँगा
पर सबक सीखा दिया बेवफ़ाई का।

अब न शिकवा, न शिकायत बाकी
बस किस्सा बन गया हूँ परछाई का।
तेरी यादों से नफ़रत भी नहीं करता
बस दर्द सहता हूँ, ये सच्चाई का।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
----------------------------
2
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई की दास्तां

दिल के दरिया में तूफ़ान आया
जिसे अपना समझा, उसे बेगाना पाया।
तेरी आँखों में थी वफ़ा की चमक
पर पीछे मुड़ा तो बेवफ़ाई का साया।

वो वादे, वो कसमें, सब झूॅंठे निकले
तुझे चाहा, पर रास्ते मेरे सूने निकले।
जिन ख़तों में लिखा था प्यार तेरा
वहीं अल्फ़ाज़ अब ज़हर के चूने निकले।

तूने जो दिया, वो दर्द था बस
मेरे अश्कों में भीग गया हर रस।
अब तेरी यादें भी बोझ लगती हैं
सपनों का महल बन गया विराने बस

जिंदगी ने सबक सिखा दिया
तेरी बेवफ़ाई ने रास्ता दिखा दिया।
अब तेरा नाम भी नहीं लूँगा कभी
दिल से हर ज़ख्म मैंने छुपा दिया।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
------------------------+
3
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई का मंजर

जिसे दिल दिया, उसी ने तोड़
मेरी मोहब्बत को हॅंसी में मोड़ा।
तेरे वादों की परछाई झूॅंठी निकली
दिल का हर कोना अब ख़ाली छोड़ा।

चाहा था तुझे ख़ुद से भी ज़्यादा 
पर तुझे क्या मिला ये दर्द बढ़ा के?
तेरे इश्क़ में ख़ुद को भुला दिया
और तूने मज़ाक बना दिया वफ़ा के।

तेरे बिना जीने का हुनर सीख लिया
खुद को दर्द के समंदर में डूबा लिया।
अब तेरी बेवफ़ाई का ग़म नहीं करता
बस यादों का धुंधला आईना बना लिया।

ये ज़िंदगी अब किसी मोड़ पर जाएगी
तेरे ज़ख्मों से ही तो ताक़त आएगी।
तूने जो किया, उसका गिला नहीं
तेरी बेवफ़ाई ही मेरी दुआ बन जाएगी।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
---------------------------
4
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई का दर्द

तू जो अपना था, अब पराया लगा
तेरे जाने से हर रिश्ता अधूरा लगा।
ख़ुदा से माॅंगी थी जो दुआ तेरे लिए
वही दुआ अब सज़ा सा लगा।

तेरी वफ़ा का हर सितारा बुझ गया
दिल का हर कोना वीरान हो गया।
तेरे साथ जो ख़्वाब सजाए थे कभी
अब वो सारे ख़्वाब धुंधलाने लगे।

तेरे इश्क़ का हर क़िस्सा अधूरा निकला
तेरी हर क़सम से धोखा मिला।
जिसे चाहा था रूह से ज्यादा
वही दिल का ज़ख्म गहरा मिला।

अब शिकवा नहीं, न कोई सवाल बाक़ी 
तेरे बिना जीने का हुनर है बाक़ी।
तेरी बेवफ़ाई ने जो दर्द दिया
वो मेरे ख़्वाबों का हिस्सा बना बाक़ी।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
------------------------------
5
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई का असर

चाहा था जिसे, वो बेगाना हो गया
जो कभी अपना था, अंजाना हो गया।
ख़्वाबों में जिसके सजाया था ज़हाॅं
वो ही मेरे दिल का फ़साना हो गया।

वफ़ा के नाम पर बस छल मिला
उसकी यादों में ग़म का पल मिला।
दिल ने चाहा था जिससे उजाला
वही बन गया अब ॲंधेरे का किला।

ऑंखों ने देखा हर सपना टूटता
रूह ने महसूस किया दर्द झरता।
तेरी हर बात अब ज़हर सी लगती है
तेरी यादें भी दिल को कुरेदती हैं।

मग़र अब तेरी चाहत का ख़्वाब नहीं
तेरी बेवफ़ाई का हिसाब नहीं।
तेरे बिना जीना सीख लिया मैंने
ख़ुदा से बस अपना नसीब माॅंग लिया मैंने।
------------------------
6
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई की रातें

चाॅंदनी रातें अब काली लगती हैं
तेरी बातें बस खाली लगती हैं।
जिसे सोचा था सुकून का सहारा
वही वज़ह मेरी बदहाली लगती हैं।

तेरी क़समों के टुकड़े समेटे हैं मैंने
हर ज़ख्म को अश्कों से धोते हैं मैंने।
जिस दिल को तेरा मोल न समझ आया
उस दिल से सारे ख़्वाब तोड़े हैं मैंने।

तेरी हॅंसी में वो चुभन छुपी थी
तेरी वफ़ा भी एक कहानी बनी थी।
जिसे चाहा था रूह से गहराई तक
उसकी चाहत अब बेवफ़ा बनी थी।

अब तन्हाई से दोस्ती कर ली है
दिल की हर चीख़ दबी कर ली है।
तेरे दिए दर्द को गले लगाकर
इस बेवफ़ाई की हद क़बूल कर ली है।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
------------------
7
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई का दर्द

तूने जो राहें अलग चुन लीं
हमने वो मंज़िलें छोड़ दीं।
तेरे बिना हर ख़्वाब अधूरा
तेरे बिना हर ख़ुशी तोड़ दी।

जिस दिल ने तुझसे वफ़ा निभाई
उसी दिल को तन्हाई सौंप दी।
तेरे नाम की जो थी धड़कन
उस धड़कन को भी रोक दी।

तेरी मोहब्बत से बड़ी चाहत थी
पर तूने क़दर न जानी थी।
तेरी वफ़ा का हर रंग झूॅंठा 
हमने अपनी रूह से पहचानी थी।

अब तेरी यादें सुकून नहीं देतीं
बस ज़ख्मों में नमी भर देतीं।
तेरी बेवफ़ाई का हर लम्हा
दिल की हर ख़ुशी छीन लेती।

लेकिन अब दर्द का सागर थम गया है
बेवफ़ाई का हर लम्हा ख़त्म गया है।
तेरी यादें भी अब धुंधला गईं
और मेरी ज़िंदगी नए रास्ते पर चल पड़ी है।
------------------------
8
ग़ज़ल 
बेवफ़ाई के आँसू

तेरी बाहों में जो सुकून था कभी
अब वही दर्द का फ़साना हुआ।
जिसे माना था ख़ुदा से बढ़कर
वो शख़्स अब बेगाना हुआ।

तेरी वफ़ाओं के झूॅंठे क़िस्से
मेरे दिल को हर रोज़ जलाते हैं।
जो ख़्वाब थे तेरे साथ के
अब वही ख़्वाब रुलाते हैं।

चाहा था तुझे रूह की गहराई तक
पर तेरा दिल किसी और का हो गया।
मेरे हिस्से आई तन्हाई की रातें
और तेरा जहाॅं रोशन हो गया।

अब शिकवा नहीं, गिला भी नहीं
बस ज़ख्मों से रिश्ता जुड़ गया है।
तेरी बेवफ़ाई ने जो दर्द दिया
वो मेरा अपना सा बन गया है।

तू ख़ुश रहे अपनी दुनियाॅं में
मैं भी अब ज़िंदा रहना सीख लूॉंगा।
तेरी यादें जो जलाएंगी मुझे
उनसे अपना रास्ता रोशन कर लूॅंगा।
ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 

Wednesday, December 11, 2024

कल्पना कीजिए, यदि समाज से अच्छे लोग पूरी तरह हट जाएं, तो शेष समाज का स्वरूप कैसा होगा? आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

                   आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
     
कल्पना कीजिए, यदि समाज से अच्छे लोग पूरी तरह हट जाएं, तो शेष समाज का स्वरूप कैसा होगा? आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

     समाज का स्वरूप किसी भी व्यक्ति, परिवार, या समूह के सामूहिक प्रयासों और मूल्यों का प्रतिबिंब होता है। जब एक समाज में सकारात्मकता, सहयोग, और प्रोत्साहन का माहौल होता है, तब वह समाज विकास और सामूहिक उत्थान की ओर अग्रसर होता है। लेकिन यदि अच्छे लोगों को नीचा दिखाने, बदनाम करने या उनके प्रयासों को हतोत्साहित करने का चलन बढ़ने लगे, तो वह समाज न केवल अपने नैतिक और सांस्कृतिक स्तर को खो देता है, बल्कि दीर्घकालिक रूप से आत्म-विनाश की ओर अग्रसर हो जाता है।

ऐसी परिस्थितियों में, जहां अच्छाई को तिरस्कार और बुराई को महत्व दिया जाए, वहां समाज का संतुलन बिगड़ने लगता है। अच्छे लोग, जिनके प्रयासों से समाज को दिशा मिलती है, यदि निरंतर आलोचना और हतोत्साहन का शिकार हों, तो उनकी ऊर्जा, रचनात्मकता, और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कमजोर पड़ने लगती है। परिणामस्वरूप, समाज में नकारात्मकता का प्रसार तेज हो जाता है, और एक ऐसा वातावरण तैयार होता है जहां स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा, और असंतोष मुख्य धारा बन जाते हैं।

मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें, तो प्रोत्साहन और सराहना किसी भी व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह एक प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा है, जो व्यक्ति को न केवल अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने में मदद करती है, बल्कि उसे अपने कार्य को और अधिक प्रभावी ढंग से करने की प्रेरणा भी देती है। सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर एक साधारण लाइक, कमेंट, या प्रशंसा भले ही छोटी प्रतीत हो, लेकिन इसका प्रभाव गहरा होता है। यह संदेश देता है कि किसी का प्रयास न केवल देखा जा रहा है, बल्कि उसकी कद्र भी की जा रही है।

अच्छे लोगों को नीचा दिखाने का प्रयास करने वाले लोग अक्सर अपनी असुरक्षा, ईर्ष्या, और स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। वे यह नहीं समझते कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे समाज की जड़ों को कमजोर कर रहे हैं। ऐसे लोगों का उद्देश्य केवल अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुंचाना होता है, और इसके परिणामस्वरूप समाज में विघटन और असंतुलन बढ़ता है।

समाज को इस गिरावट से बचाने के लिए आवश्यक है कि हम अच्छे लोगों की पहचान करें और उनके प्रयासों को खुले दिल से प्रोत्साहित करें। चाहे वह कलाकार हो, शिक्षक हो, लेखक हो, या समाजसेवी—उनके प्रयासों की सराहना करना हमारी जिम्मेदारी है। यह सराहना केवल उनके काम को मान्यता देने का माध्यम नहीं है, बल्कि एक ऐसा तंत्र है जो समाज में सकारात्मकता और रचनात्मकता का प्रसार करता है।

कल्पना कीजिए, यदि समाज से अच्छे लोग पूरी तरह हट जाएं, तो शेष समाज का स्वरूप कैसा होगा? यह एक ऐसा भयावह चित्र होगा जहां कोई मूल्य, कोई दिशा, और कोई प्रेरणा शेष नहीं रहेगी। यह वह स्थिति होगी जहां स्वार्थ, नैतिक पतन, और अराजकता का बोलबाला होगा। इसलिए यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि हम अच्छाई को संरक्षित करें, उसका पोषण करें, और उसे बढ़ावा दें।

प्रोत्साहन न केवल व्यक्तियों को उनकी सीमाओं से परे जाने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि समाज को एकजुट और प्रगतिशील बनाता है। इसलिए, हर व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने शब्दों, कार्यों, और समर्थन के माध्यम से अच्छाई का साथ दे। केवल तभी हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जो न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक प्रेरणा बन सके।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक-SWA MUMBAI
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