Monday, December 30, 2024
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Saturday, December 28, 2024
समय जो सिखाता है वह कोई नहीं सिखाता आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन
Friday, December 27, 2024
आधुनिकता के दौर में बच्चे और बच्चियों संवेदना,मर्म और सहयोग की भावना खोकर रोबोट होते जा रहे हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर के अनुसार, "यदि आज हम बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता का महत्व नहीं समझाएंगे, तो भविष्य में इंसानियत केवल एक इतिहास बनकर रह जाएगी। यह आवश्यक है कि हम बच्चों को न केवल तकनीकी शिक्षा दें, बल्कि उनके भीतर संवेदनाओं, करुणा, और सहयोग की भावना को भी विकसित करें।"
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो बचपन ही वह अवस्था होती है, जब मनुष्य के व्यक्तित्व की नींव डाली जाती है। यह वह समय होता है जब बच्चों में सही और गलत के बीच अंतर करने की समझ विकसित होती है। यदि इस अवस्था में बच्चों को केवल प्रतियोगिता और भौतिक सफलता का पाठ पढ़ाया जाए, तो वे मानवीय मूल्यों से दूर होते चले जाते हैं। इसका परिणाम समाज में बढ़ते हुए एकाकीपन और आपसी अविश्वास के रूप में दिखाई देता है।
चन्द्रपाल राजभर का चिंतन इस बात पर भी जोर देता है कि बच्चों को उनके परिवार, समुदाय और समाज से जोड़ने के लिए भावनात्मक शिक्षा को प्रोत्साहित करना होगा। यह केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि कला, संगीत, और साहित्य के माध्यम से बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता से परिचित कराना चाहिए। राजभर कहते हैं, "कला एक ऐसा माध्यम है जो बच्चों के भीतर सोई हुई संवेदनाओं को जाग्रत कर सकता है।"
मनोविज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि बच्चों को सह-अस्तित्व और सामूहिकता का पाठ पढ़ाने के लिए व्यावहारिक अनुभव आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए, यदि बच्चों को पर्यावरण संरक्षण, वृद्धजनों की सेवा, या जरूरतमंदों की मदद में शामिल किया जाए, तो उनमें करुणा और सहयोग की भावना स्वाभाविक रूप से विकसित होगी।
संस्कृति और सभ्यता की रक्षा केवल भाषणों से नहीं हो सकती। इसके लिए परिवार, विद्यालय और समाज के प्रत्येक सदस्य को सक्रिय भूमिका निभानी होगी। माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों के सामने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें, जिससे वे सीख सकें कि सफलता केवल धन और प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि मानवता और नैतिक मूल्यों से प्राप्त होती है।
राजभर का यह कथन विशेष रूप से प्रेरक है: "यदि हम आज अपने बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ने का प्रयास नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ एक ऐसी सभ्यता का हिस्सा बनेंगी, जो संवेदनहीनता और अलगाव का शिकार होगी।"
यह समय की मांग है कि बच्चों को केवल रोबोटिक दक्षता प्रदान करने के बजाय, उन्हें एक ऐसा इंसान बनाने पर ध्यान दिया जाए, जो संवेदनशील हो, करुणामय हो, और सहयोग की भावना से ओतप्रोत हो। यह केवल भारत की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा का ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज को बचाने का प्रयास होगा।
यह चिंतन न केवल चेतावनी है, बल्कि एक आह्वान भी है—मानवता को बचाने के लिए हमें बच्चों को उनकी संस्कृति और सभ्यता का पाठ पढ़ाना ही होगा।
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI