Friday, February 28, 2025

कजरी गीत स्कूल चलो अभियान

कजरी गीत – "चलो स्कूल हम प्यारे साथी"

चलो स्कूल सब प्यारे साथी
ज्ञान की जोत जलानी है।
नया सवेरा लाया जीवन,
बात ये सबको बतानी है।।

कागज, कलम, किताबें लेकर,
सपनों की राह बनानी है।
शिक्षा से जग रोशन होगा,
हर मन में आस जगानी है।।

माँ-बाबा की आँखों का सपना,
अब पूरा हमको करना है।
आलस छोड़ो, चलो पढ़ने,
भविष्य नया अब गढ़ना है।।

ॲंगना-ऑंगन गूँजे किलकारी,
स्कूल की राह सजानी है।
बेटा-बेटी दोनों पढ़कर,
दुनिया में छाप छोड़ानी है।।

चलो सभी मिलकर के बोलें,
नव भारत हमको बनाना है।
शिक्षा से ही सजे ये धरती,
हर घर दीप जलाना है।।

चन्द्रपाल राजभर

स्कूल चलो रे

स्कूल चलो रे, स्कूल चलो रे 
ज्ञान की ज्योति जगाओ रे
पढ़-लिख कर बन जाओ तारे,
मां-बाप का नाम बढ़ाए रे।।
स्कूल चलो रे, स्कूल चलो रे 

क ख ग की बात है न्यारी,
किताबों में छिपी है दुनियादारी।
गिनती सीखो, खेलो प्यारे,
सपनों की उड़ान लगाए रे।।
स्कूल चलो रे, स्कूल चलो रे 

टीचर जी जब प्यार से बोले,
बात सदा दिल में जो खोले।
सुबह-सुबह बस्ता ले प्यारे,
सपनों के रंग सजाए रे।।
स्कूल चलो रे, स्कूल चलो रे 

खेल-खेल में सीखो प्यारे,
सच्चाई की राह दिखाए रे।
ज्ञान की रोशनी है प्यारी,
हर बच्चा सितारा कहलाए रे।।
स्कूल चलो रे, स्कूल चलो रे 

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Saturday, February 22, 2025

बदरिया रे गीत -शिवरंजनी

बदरिया रे ..,आ बरसो मेरे अंगना ।।2
बरसों हो गए, तुझको देखे , तेरे बिन ये, नैना तरसे 
अब तो आजा, मेरे अंगना, आके प्यास ,बुझा जा संग ना
तेरे बिना सुना है अंगना, अब तो आजा मेरे अंगना
अब तो आजा मेरे अंगना
बदरिया रे ..,आ बरसो मेरे अंगना ।।2

दादुर बोले,बोले कोयलिया 
पनिया भरन जब ,जाऐ सहेलिया
मन में एक ही ,आस जगाये
आके प्यास बुझा रे सहेलिया
आके प्यास बुझा रे सहेलिया
बदरिया रे...

सुनी हो गई, गलियाॅं ये कलियाॅं 
खिलना ना चाहे ,फूलों की कलियाॅं
अब तो आजा हमारी नगरिया 
आके जल बरsसा जा डगरिया 
आपके जल बरसा जा डगरिया 
बदरिया रे...

बरसों बीत गए ,हैं तेरे बिन 






Friday, February 21, 2025

हम तब भी अपने वादों पर खड़े थे

हम तब भी अपने वादों पर खड़े थे, आज भी अपने वादों पर खड़े हैं।
वक़्त बदला, हालात बदले, रिश्तों की परिभाषाएँ बदलीं
मगर हमारी जुबान की सच्चाई आज भी वही है
जो कल थी, जो कल भी रहेगी।

जिसको जहां जाना हो, जाए
जिसको बेवफा होना है, हो जाए।
हमने न कभी राहों को रोका, न किसी के इरादों को बाँधा
जो साथ चला, वो भी अपना, जो छोड़ गया, उसकी भी मरज़ी।

मोहब्बत और वफ़ा के मायने अगर बदलते हैं
तो बदलने दो, हमें परवाह नहीं।
हम नफरत से नहीं, मोहब्बत से जिए हैं
आज भी उसी सोच पर अडिग खड़े हैं।

रिश्ते सौदों में बदल जाएं, तो अफ़सोस नहीं
हमने न खरीदा, न बेचा, सिर्फ़ निभाया है।
जो लौटकर आए, दरवाज़ा खुला है
जो मुड़कर न देखे, उसके लिए भी दुआएँ हैं।

हम तब भी अपने वादों पर खड़े थे
आज भी अपने वादों पर खड़े हैं।

*आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर* 
*लेखक SWA MUMBAI*

Tuesday, February 18, 2025

विद्यालय प्रबंध समिति (SMC) पर प्रेरणादायी गीत


(कहरवा ताल में)

(स्थायी)
शिक्षा का दीप जलाना है, आगे कदम बढ़ाना है।
विद्यालय को संवार चलो, सबको ज्ञान दिलाना है॥
शिक्षा का...

(अंतरा 1)
सपनों को अब साकार करो, हर बालक को अधिकार दो
ज्ञान की गंगा बहे सदा, ऐसी शिक्षा की धार दो।
बच्चों के मन में आशा हो, उजियारा हर घर आना है॥
शिक्षा का...
विद्यालय को...

(अंतरा 2)
मिल-जुल के नित विचार करें, नव पीढ़ी को तैयार करें
शिक्षा की रोशनी फैले, हर आंगन को गुलजार करें।
अब अंधकार को दूर करें, नव भारत हमें बनाना है॥
शिक्षा का...
विद्यालय को ...

(अंतरा 3)
न कोई डर, न भेदभाव, शिक्षा बने नविन सौगात
बालिकाओं को अधिकार दो, बढ़े हर बच्चा सौ गुणा।
हर इक मन में विश्वास जगे, हर सपनों को सजाना है॥
शिक्षा का...
विद्यालय को...

Sunday, February 16, 2025

आसाक्षर के साथ पढ़े-लिखे लोग गुलाम।। आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन


दो प्रकार से लोग गुलाम बनते हैं एक अभाव में और दूसरा प्रभाव से इसमें आसाक्षर के साथ कुछ पढ़े-लिखे लोग और कुछ कर्मचारी, अधिकारी, और अन्य लोग भी आते हैं आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर का एक चिंतन

मनुष्य के विचार और व्यवहार दो शक्तिशाली तत्व हैं, जो उसे या तो स्वतंत्र बनाते हैं या गुलामी की जंजीरों में जकड़ देते हैं। गुलामी का यह स्वरूप केवल शारीरिक नहीं होता, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर भी देखा जा सकता है। आमतौर पर लोग दो कारणों से गुलाम बनते हैं—एक अभाव में और दूसरा प्रभाव में। यह स्थिति समाज के हर वर्ग में देखने को मिलती है, चाहे वह आम नागरिक हो, कोई कर्मचारी हो, अधिकारी हो या कोई पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी।

अभाव में गुलामी
जब किसी व्यक्ति के पास मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन नहीं होते, तो वह अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी और पर निर्भर हो जाता है। यह निर्भरता धीरे-धीरे उसकी स्वतंत्र सोच और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करने लगती है। आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी, सामाजिक असुरक्षा और अवसरों की अनुपलब्धता के कारण व्यक्ति मजबूर होकर उन शर्तों को स्वीकार कर लेता है, जो उसे मानसिक और शारीरिक रूप से गुलाम बना देती हैं। उदाहरणस्वरूप, किसी गरीब मजदूर को अगर अपने परिवार का पेट पालना है, तो उसे अमानवीय परिस्थितियों में काम करना भी स्वीकार करना पड़ता है। उसकी सोच और आत्मसम्मान धीरे-धीरे दबते जाते हैं, क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प नहीं बचता।

प्रभाव में गुलामी
दूसरी ओर, जब कोई व्यक्ति किसी प्रभाव के कारण अपनी स्वतंत्र सोच खो देता है, तब भी वह गुलामी का शिकार हो जाता है। यह प्रभाव कई रूपों में सामने आता है—राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक या फिर व्यक्तिगत। प्रभावशाली लोग अपनी सत्ता और वर्चस्व को बनाए रखने के लिए दूसरों की सोच को नियंत्रित करते हैं, जिससे वे उनके अनुसार व्यवहार करने लगते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से पढ़े-लिखे लोगों, कर्मचारियों और अधिकारियों में अधिक देखने को मिलती है।

एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति जो सत्य और असत्य में भेद करने में सक्षम होता है, वह भी कई बार प्रभाव में आकर अपने विवेक का प्रयोग नहीं करता। वह किसी संगठन, विचारधारा, या व्यक्ति विशेष के प्रभाव में अपनी स्वतंत्र सोच को दबा देता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी सरकारी कर्मचारी को गलत आदेश दिया जाता है, लेकिन वह अपने उच्च अधिकारियों के दबाव में उसे मान लेता है, तो यह प्रभाव में गुलामी की स्थिति है। इसी तरह, कई बुद्धिजीवी, लेखक और पत्रकार भी किसी राजनीतिक या व्यावसायिक हित के प्रभाव में आकर सच को छिपाने या तोड़-मरोड़कर पेश करने लगते हैं। यह प्रभाव उनकी वैचारिक स्वतंत्रता को समाप्त कर देता है।

मनोवैज्ञानिक विश्लेषण:
मानव मस्तिष्क सहज रूप से स्वतंत्र रहना चाहता है, लेकिन जब परिस्थितियाँ विपरीत होती हैं, तो वह स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए समझौता करने लगता है। यह समझौता धीरे-धीरे आदत बन जाता है और व्यक्ति अपनी मानसिक स्वतंत्रता को खो देता है। इसे ‘सीखी हुई असहायता’ (Learned Helplessness) कहा जा सकता है, जिसमें व्यक्ति यह मान लेता है कि वह जो कुछ भी कर रहा है, वही उसकी नियति है और उससे बाहर निकलना असंभव है।

समाधान की दिशा में चिंतन:
इस समस्या का समाधान केवल आर्थिक या सामाजिक सुधार से नहीं हो सकता, बल्कि मानसिक स्तर पर भी आवश्यक परिवर्तन लाने होंगे। शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यक्ति में तर्कशीलता और स्वतंत्र सोच विकसित करना भी होना चाहिए। जो लोग अभाव में हैं, उनके लिए संसाधनों की उपलब्धता आवश्यक है, लेकिन साथ ही उन्हें यह भी सिखाना होगा कि वे मानसिक रूप से मजबूत रहें और परिस्थितियों से समझौता न करें।

वहीं, जो प्रभाव में हैं, उनके लिए आत्मविश्लेषण और नैतिक जागरूकता आवश्यक है। उन्हें यह समझना होगा कि उनके विचार और निर्णय उनके अपने होने चाहिए, न कि किसी बाहरी दबाव या प्रभाव से संचालित। एक कलाकार, लेखक, पत्रकार, या शिक्षक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि वह समाज को मानसिक गुलामी से मुक्त करने के लिए काम करे, न कि स्वयं किसी प्रभाव में आकर अपनी स्वतंत्रता खो दे।
 मानसिक स्वतंत्रता ही सच्ची स्वतंत्रता है। जब व्यक्ति अपनी सोच को प्रभाव और अभाव से मुक्त कर लेता है, तभी वह वास्तव में एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर जीवन जी सकता है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
लेखक SWA MUMBAI

Sunday, February 9, 2025

ग़ज़ल 67

मन की अभिलाषा

तेरा हौंसला ही तेरी राह बनाता है 
जो ख़ुद से लड़े, जग वही जीत पाता है।

क़दम डगमगाए तो मत हार जाना तू
संघर्ष का दीपक ही उजास लुटाता है।

जो आग दिलों में सुलगती है भीतर से
हर एक ॲंधेरे को वो धूल चटाता है।

गिरा भी, डगमगाया भी, मग़र बढ़ता रहा निरंतर
वही दरिया के मोती निकाल पाता है 

खु़दी को जगाकर, चलो रोशनी थाम लो
नसीब से पहले, समय आजमाता है।

हर दर्द को ताकत बना, हंस के तू जी ले
जो धीरज न खोए, वही फल को पाता है।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
---------------------
2

हौसलों की उड़ान हो, गगन से मिलना चाहिए
जो भी सपना देख लें, उसे तो खिलना चाहिए।

धूप आए, छाँव आए, राह चाहे मोड़ ले
हर क़दम पर हौंसलों का दीप जलना चाहिए।

हार से मत डर कभी, हर एक ठोकर सीख है
जो गिरे फिर उठ सके, उसे ही चलना चाहिए।

सोच जितनी ऊँची होगी, जीत उतनी ही पास होगी
ख़ुद से ख़ुद की जंग हो, उसे तो जीतना चाहिए।

सिर्फ चाहत से नहीं, मेहनत से मिलती है रोशनी
मन की जो भी अभिलाषा, वो तो मिलनी चाहिए।

Saturday, February 8, 2025

ग़ज़ल 66 टाइप

1
अभिलाषा के दीप

अभिलाषा के दीप जलते रहे
ख़्वाब पलकों पे रोज़ सजते रहे।

चाॅंदनी रात में भी ॲंधेरा मिला
हम उजालों की आस करते रहे।

खु़शबुओं से सजी थी जो बाग़ कल
आज वीरानियों में बदलते रहे।

हमनें चाहा था प्यार की एक छाँव
मग़र धूप में ग़म के फूल खिलते रहे।

ज़िन्दगी की ड़गर थी बहुत ही कठिन
मग़र हम  हौसले में चलते रहे।

जो मिली हर खु़शी, बेवजह लग गई
दर्द दिल में मग़र मचलते रहे।
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2
अभिलाषा के रंग

अभिलाषा के रंग फीके हुए
ख़्वाब भी आज फिर अधूरे हुए।

चाहतों की किताब खोली तो क्या
सारे लफ्ज़ों के अर्थ रूखे हुए।

हमने सोचा था मंज़िल मिलेगी ज़रूर
मग़र हर तरफ़ से रास्ते सूने हुए।

जो दिया था भरोसा किसी ने हमें
वो भी टूटा तो ज़ख़्म गहरे हुए।

ज़िन्दगी की तलाश में निकले थे हम
पर ग़म के दरिया में ही डूबते गए।

अब न उम्मीद है, न कोई गिला 
अब तमन्ना के दीप भी बुझते गए।

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3
मेरी अभिलाषा

ख़ुद अपने इरादों पे विश्वास चाहिए
चलने को बस थोड़ा सा उजास चाहिए।

मुश्किल से घबरा के क्यों बैठ जाएं हम
हर मोड़ पे इक नया अहसास चाहिए।

छूने हैं अंबर के ऊँचे किनारे हमें
परवाज़ को हौसले की साॅंस चाहिए।

रुक जाएं तो कैसे सफ़र तय करेंग
हर क़दम पे जलता उजास चाहिए।

जो सोचें वो सच में बदल भी सके
ऐसे इरादों का इतिहास चाहिए।

हिम्मत अगर संग हो राहों में हरदम
तो जीत का सुंदर प्रयास चाहिए

ग़ज़ल 
 आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
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4
मेरी अभिलाषा

हर दर्द को हॅंसकर मिटाना पड़ेगा
ॲंधेरों में दीपक जलाना पड़ेगा।

जो सपने उगाए हैं ऑंखों के अंदर
हक़ीक़त में उसको पाना पड़ेगा।

जो रुकने की सोची, तो थम जाएंगे
हमें आँधियों से लड़ जाना पड़ेगा।

अगर जीतना है तो डरना नहीं है
हर इक घाव पर मुस्कुराना पड़ेगा।

सफ़र में अगर काॅंटें मिलते रहें तो
हमें पाॅंव अपना बचाना पड़ेगा।

कभी हार मत मान, तूफ़ान से तू
समंदर को ख़ुद ही आना पड़ेगा।
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5
चुनौती 

हर एक चुनौती को अपनाना ही होगा,
ग़म है अगर तो मुस्काना ही होगा।

जो चाहा है दिल से, मिलेगा यक़ीनन
ख़ुद अपने जुनू को समझाना ही होगा।

बढ़े हैं जो आगे, वही जीत पाएंगे 
हमें इक ज़माना बनना ही होगा 


गिरे तो भी हिम्मत न खोना कभी तुम
हर इक दर्द को आज़माना ही होगा।

अगर पंख हैं तो उड़ाना भी होगा
हवा के इशारों को पढ़ना भी होगा।

छू लेंगे हम भी नई मंज़िलों को
बस ख़ुद को आगे बढ़ाना ही होगा

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
-----------------
6
हौसला 

मंज़िल की चाहत में चलना पड़ेगा,
हर एक अंधेरों से लड़ना पड़ेगा।

जो ठोकर लगी है, सबक़ ले वहीं से
ख़ुद अपने ज़ख़्मों को सिलना पड़ेगा।

सपनों की राहों में कांटे भी होंगे
मग़र हौसलों से संभलना पड़ेगा।

जो मुश्किलों से हिम्मत गंवा दोगे यारों
तो फिर से जमाने से लड़ना पड़ेगा 


जो चाहत है ऊँचाइयों को छूने की
तो तूफ़ान से भी निकलना पड़ेगा।

मेरा हौसला ही मेरी रहनुमाई 
मुझे रोशनी बन जलना पड़ेगा।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

-------------
7
उड़ान 

जो ठान लिया है, निभाना पड़ेगा
हर इक मुश्किलों से टकराना पड़ेगा।

जो काँटों से डरकर रुके हैं सफ़र में
उन्हें ख़ुद ही रस्ता बनाना पड़ेगा।

अगर आसमाँ को छूना है सच में
तो तूफ़ान से भी उलझना पड़ेगा।

जो सपने संजोए हैं आँखों में हमनें 
उन्हें हौसलों से सजाना पड़ेगा।

मुक़द्दर नहीं बस इरादा है अपना
जहाॅं को मेहनत से झुकाना पड़ेगा 

अभी तो हमें और ऊँचा है उड़ाना
हमें ख़ुद को सूरज बनाना पड़ेगा।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर
--------------
8

अभिलाषा 

ख़ुद अपनी उड़ानों से उड़ना पड़ेगा
हर इक मुश्किलों से लड़ना पड़ेगा।

अगर राह में आँधियाँ आ भी जाएं
तो दीपक सा हमको चमकना पड़ेगा।

जो ठोकर लगी हैं, वही सबक़ देंगी 
संभलकर हमें फिर से चलना पड़ेगा।

सफ़र में ॲंधेरे तो आते रहेंगे
मग़र हौंसले से उबरना पड़ेगा।

किसी और से क्या शिकायत करें हम
हमें अपने हिस्से का करना पड़ेगा।

अभी और ऊँचाइयाँ हैं बुलाती मुझे 
हमें अपने सपनों को बुनना पड़ेगा।

ग़ज़ल 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर

Thursday, February 6, 2025

गीत एल्बम 65

तेरे प्यार की धुन में बसा, कोई गीत बना दूॅं मैं 
आ जाओ जीवन में,हर पल को सज़ा दूॅं मैं।

हर दर्द की सिहरन को अब गीत बना दूॅं मैं
ख़ुशियों की चादर में हर स्वप्न सज़ा दूॅं मैं।
तुम मेरे सुरों को अपनी लय बना कर देखो 
मैं प्यार की धुन में बसा एक गीत सज़ा दूॅं मैं।

न रात की खामोशी, न सुबह की हलचल हो
बस दिल के तारों से भर दो मेरा हर पल।
जीवन की धारा को तुम रस भरा कर दो,
प्यार की धुन में बसा मेरा गीत नया कर दो।

तेरे बिन अधूरी सी लगती है हर राह,
संग तेरे बहारों का लगता है हर माह।
आकर मेरे दिल को तुम सजीव बना कर दो,
प्यार की धुन में बसा मेरा गीत नया कर दो।

Wednesday, February 5, 2025

सरस्वती वंदना गीत

सरस्वती वंदना (कहरवा ताल में)

वीणा वादिनी वर दे, माँ बुद्धि का वर दे।।2।।
अंधकार मिटा दे माॅं।।2।।
ज्ञान दीप जला दे॥
वीणा...

वाणी में मधुरता, शुभ मन में विचार हो।
हर शब्दों में शक्ति, निर्मल आधार हो॥
तू ही ज्ञान की गंगा ।।2।।
निर्मल आधार हो
अंधकार मिटा दे माॅं, ज्ञान दीप जला दे॥
वीणा...

तेरी कृपा से माँ, जीवन संवर जाए।
जो कुछ बोलूं मैं माॅं, सत्य ही स्वर आए॥
संस्कारों की माटी में।।2।।
आशीष माॅं भर दे।
अंधकार मिटा दे माॅं, ज्ञान दीप जला दे॥
वीणा...

विद्या की जोत जलाए, उजियारा कर दे।
मेरा हृदय मन मंदिर माँ, तेरा घर कर दे॥
सद्ज्ञान का अमृत माॅं।।2।।
 जन-जन को दे दे।
अंधकार मिटा दे माॅं, ज्ञान दीप जल दे॥
वीणा...

रचना 
आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 

Monday, February 3, 2025

मोनालिसा गीत 64 एल्बम

1
(स्थायी)
मोनालिसा सी सूरत तेरो, नजरिया नै मारे
हाय! नजरिया नै मारे
मन में उठे अजब हिलोर, साजन मोहे तड़पावे।
मोनालिसा...

(अन्तरा)
चुपके से मुस्काए तू, दुनिया नै बहकावे
कोई जाने तेरी चाल, कोई जिया गवाँवे।
भीनी-भीनी बोले बैना, कोयल सी लहराए
तेरी अदाओं की लाली, चंदा पे भी छाए।
मोनालिसा...

झील से गहरी अखियन में, जाने क्या छुपाए
देख के डूबे नैया, कोई पार न पाए।
रूप की चादर ओढ़े, चितवन नै लुभाए
साँस-साँस में मिठास, मन को बैरन बनाए।
मोनालिसा...

पलकों की घटा घिरी, सावन सा बरसाए
रूप सलोना देख के, मनवा बैचैन हो जाए।
आ! सजना कर ले अपनाई, अब न सताओ
मोनालिसा सी सूरत तेरो, दिल नै बहकाए।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI
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2
(स्थायी)
मोनालिसा सी छवि तुम्हारी, मन को खूब लुभाए,
भीनी-भीनी बात नयन की, कोई भेद न पाए।

(अंतरा1)
झील सी गहरी अँखियन, सपनों में बुलाए,
हौले से जो मुस्काए, दिल की दुनिया सजाए।
साँझ सकारे छवि तुम्हारी, चंदा को शरमाए,
मन बंजारो बनके बोले, पास अब तो आए।

(अंतरा 2)

ओढ़ के घूँघट अलबेली, जैसे कोई नई नवेली,
हर अदा में प्रेम छलकता, जैसे कोई सगी सहेली।
रंग-रंग की छवि निराली, दिल पे जादू कर दे,
रूप तेरा देख बावरा मन, गीत नए रच दे।

(अंतरा 3)
बात अधूरी, लाज ज़रा सी, फिर भी कुछ कह जाए,
मोनालिसा सा रूप तुम्हारा, मन मंदिर महकाए।
साजन अब ना देर लगाओ, प्यार में बह जाओ,
प्रेम की गागर छलक उठे, नयनों से बरसाओ।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI
---------------------
3
(स्थायी)
चुपके से जो मुस्काई तुम, मन में आग लगाई तुम
नज़रों से दिल छूकर मेरा, प्रेम कहानी गाई तुम।

(अंतरा 1)
पलकों की छाँव में छुपकर, मौसम को बहकाया
बात अधूरी कहकर भी, मन को क्यों भरमाया?
हवा चली संग खुशबू आई, याद तेरी ले आई
सपनों में आकर चुपके से, प्रीत की ज्योत जगाई।

(अंतरा 2)
चंदा से प्यारी सूरत तेरी, तारे भी लजाएँ
बिन बोले दिल की भाषा, आँखों से पढ़ जाएँ।
रंग सजाए रूप अनोखा, काजल की रेखा
देख के तुझको बावरा दिल, मांगे तेरा देखा।

(अंतरा 3)
धीमे-धीमे बोलो ऐसे, मधुर सुरों में गाए
प्रेम भरे मीठे शब्दों से, जीवन रंग सजाए।
पास बुलाकर दूर न जाओ, प्रीत को और बढ़ाए
बाहों में अब आ भी जाओ, सपन सजीव हो जाए।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI
----***------
4
मोनालिसा सी सूरत तेरी, चंचल नैना काजल धारे,
हौले से जो हँस दी तुम, दिल के दरद मेरे हरे।।

(अंतरा 1)
नयन तुम्हारे काजल वाले, जैसे हो सावन की घटा,
भीनी-भीनी बात जो बोले, लगे बहारों की बेला।
धीमे-धीमे हँसी जो छलके, जादू सा कर जाए
मदमस्त पवन संग बँध जाए, मनवा कहीं खो जाए।

(अंतरा 2)
ओठ तुम्हारे पंखुरी जैसे, मिश्री घुली बतियाँ
रंगों की दुनिया में बिखरी, प्रेम भरी सब रीतियाँ।
चाँद भी तेरा रूप निहारे, लाज से छुप जाए
दिल की वीणा तान सुनाकर, प्रीत तेरी गाए।

(अंतरा 3)
तेरी छवि में प्यार बसा है, जैसे कोई तसवीर
मन में उठे मीठी हिलोरें, संग ले जाए पीर।
साजन मेरे पास तो आओ, अब न यों तरसाओ
प्रीत की माला तुम बिखराओ, जिया में मोरे समाओ

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI
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5
(स्थायी)
तेरी मुस्कान में छुपा है, सौंदर्य ये मंजर
तेरी आँखों में बसा है, रहस्यों ये समंदर।
गजब है तेरा, रूप ये मंज़र ।

(अंतरा 1)
झील सी गहरी आँखों में, सपना कोई जागे है 
हौले-हौले चुपके से, दिल की दुनिया भागे है।
रूप तेरा देख के साजन, दिल भी गीत सुनाए है 
हर धड़कन के सुर में तेरी, छवि बसी रह जाए है।

(अंतरा 2)
तेरी सुंदरता की छवि में, प्रेम मधुर बहता है 
चुपके से तेरी बातों में, कोमल भाव रहता है।
मोनालिसा की छवि सी तू, मुस्कान में तेरे जादू है 
जो देखे तुझको एक दफा, वो तुझमें ही खो जाए है।

(अंतरा 3)
बता नहीं सकता कैसे, तू इतनी प्यारी है 
चंदा भी तुझसे सीखे, चाँदनी की सवारी है।
दिल के बागों में हर घड़ी, तेरी याद महकाए है 
तेरी मुस्कान का जादू, दुनिया को बहकाए है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI
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6

(स्थायी)
मोनालिसा सी छवि तुम्हारी, क्या राज़ ये गहरा है 
मुस्कान में जादू छुपा है, रूप लगे सुनहरा है।
तेरी आँखें, तेरी बातें, जैसे कोई अफ़साना है 
रहस्य भरी हर अदा तेरी, लगे प्रेम का पैमाना है।

(अंतरा 1)
धीमे-धीमे सुर में बोले, साज़ बजे हैं मन के
तेरी नजरों की गलियों में, खो गए हैं रम के।
चुपके से जो देखे तुझको, मदहोश वो हो जाए
तेरी सूरत के रंग अनोखे, चित्रकार भी घबराए।

(अंतरा 2)
सावन जैसी झील हैं अखियाँ, लहरों में बह जाए
जो भी तुझको देखे साजन, सपनों में ही खो जाए।
बातें तेरी प्रेम रस घोले, ग़ज़ल सी लहराए
तेरी छवि में दिल ये अपना, हरदम डूबता जाए।

(अंतरा 3)
चंदा भी सरमाए तुझसे, रंग भरे ये काजल
हौले-हौले चलती जाये, बनके मधुर ये बादल।
तेरी हँसी में गीत छुपे हैं, दिल को खूब लुभाए
मोनालिसा की छवि में साजन, प्रेम नया मुस्काए।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 
------------------
7
(स्थायी)
मोनालिसा की छवि निराली, मुस्कान में है जादू 
देखे जो एक बार साजन, दिल हो जाये बेकाबू ।

(अंतरा 1)
नयनों में गहराई ऐसी, जैसे सागर की लहरें 
चुपके से कुछ बोल रही हैं, छू जाए दिल के पहरे।
चित्र बना जीवंत लगे है, जैसे कोई ऐहसास भरे
देख के तुझको मन मेरा ये, हर आहट मुस्कान भरे।

(अंतरा 2)
काजल की हल्की रेखा में, अनगिन भाव छुपाए है
रूप सलोना ऐसा तेरा, चंदा भी शरमाए है।
तेरी छवि में गीत बसे हैं, प्रेम मधुर कहानी है
जो भी देखे बिन बोले ही, दिले पीर बयानी है।

(अंतरा 3)
तू मुस्काए और बहकाए, मन में जादू कर जाए
रंगों की दुनिया में तेरा, रूप अनोखा छा जाए।
तूलिका भी तुझ पर ठहरी है, शब्दे मौन जाए,
तेरी छवि में श्रृंगार बसा है, रूप सुहाना हो जाए।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI 
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(स्थायी)
तेरी सूरत में  जादू है, तेरी मुस्कान है कमाल
एक नज़र जो देखे तुझको, हो जाए वो बेहाल।

(अंतरा 1)
तेरी आँखों की गहराई, जैसे कोई सागर है 
बिन बोले भी कहती हैं, प्रेम भरे कुछ आखर है।
तेरी अदाएं मतवाली , मन को खूब लुभाए है 
सावन जैसी झील हैं अखियाँ, सपनों में ले जाए है।

(अंतरा 2)
रहस्यमयी यह छवि तुम्हारी, अनबूझ कोई पहेली है 
चित्रकार भी सोचे देखे, रंगों की अलबेली है।
तेरी हँसी में प्रेम छुपा है, नजरों में इकरार है 
दिल में तूफान उठे है, बिन बोले हर बार है।

(अंतरा 3)
काजल की हल्की रेखा, चुपके से कुछ बोले है
तेरी छवि में खोकर साजन, शब्द भी हैं डोले है।
मोनालिसा सी सूरत तेरी, रूप तेरा बेमिसाल है 
जो देखे वो कहे साजन, प्रेम तेरा है कमाल है।

आर्टिस्ट चन्द्रपाल राजभर 
लेखक SWA MUMBAI